HomeIdentity & Lifeओडिशा सरकार ने आदिवासियों के खिलाफ 48,000 दर्ज मामलों को वापस लिया

ओडिशा सरकार ने आदिवासियों के खिलाफ 48,000 दर्ज मामलों को वापस लिया

ओडिशा में राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. राज्य सरकार ने आदिवासियों के ख़िलाफ़ 48,000 मामलों को वापस ले लिया है. इनमें आबकारी विभाग के 36,581, गृह मंत्रालय के 9846 और वन और पर्यायवरण विभाग के 1591 मामले शामिल है.

बुधवार को ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक (Odisha chief minister Navin patnayak) ने आदिवासियों के खिलाफ 48,000 दर्ज मामलों को वापस लेने आदेश दिया है.

इन 48,000 मामलों में आबकारी विभाग के 36,581, गृह मंत्रालय के 9846 और वन और पर्यायवरण विभाग के 1591 मामले शामिल है.

सरकार का कहना है की इन मामलों को वापस लेने से कोर्ट पर दबाव थोड़ा कम होगा.

सरकार ने आदिवासियों से जुड़े मामलों की जांच के बाद यह पाया कि आदिवासी समुदाय के लोगों के खिलाफ़ दायर मामले खिंचते चले जाते हैं. जिसके कारण आदिवासियों पर मानासिक और वत्तीय बोझ बनता है.

इसलिए राज्य सरकार ने आदिवासियों से जुड़े मामलों को वापस लेने का फैसला किया है.

शराब के मामले सबसे अधिक हैं

ओडिशा सरकार ने जो 48000 मुकदमे वापस लेने का फैसला किया है उसमें सबसे अधिक मामले आबकारी विभाग में दर्ज हैं. ज़ाहिर है कि आबकारी विभाग के ये मामले शराब से जुड़े हुए हैं.

आदिवासियों की पंरपराओं और पूजा-पाठ में शराब एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. आदिवासी त्योहारों या उत्सवों में शराब पी भी जाती है और देवी-देवताओं को चढ़ाई भी जाती है.

आदिवासी ज़्यादातर अपने घरों में ही शराब बनाते है, जो कानून के नज़रिए में अवैध है.

इसके अलावा वन और पर्यायवरण विभाग के आदिवासियों के खिलाफ़ मुकदमें दूसरे नंबर पर हैं. देश भर में आदिवासी और वन विभाग के बीच जंगल के अधिकार को लेकर वर्षो से संघंर्ष चला आ रहा है.

अफ़सोस की बात ये है कि वन अधिकार कानून 2006 आने के बाद भी वन विभाग आदिवासी का जंगल पर अधिकार मानने को तैयार नहीं होता है. 

दरअसल वन विभाग (Forest Department) वन अधिकार कानून 2006 के बावजूद खुद को जंगल का मालिक मानता है. वह आदिवासियों या जंगल में रहने वाले अन्य समुदायों के अधिकार को मानने को तैयार नहीं है.

चुनाव और राजनीति के दबाव में लिया गया फ़ैसला

इन 48,000 मामलों के वापस लेने के अलावा राज्य सरकार ने ओडिशा लघु बना यात्रा योजना के अतंर्गत 100 करोड़ खर्च करने का फैसला किया है.

इस योजना के तहत राज्य सरकार ने यह घोषणा की वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आदिवासियों के 60 वन उपज को खरीदेंगे.

ओडिशा सरकार के ये सारे फ़ैसले चुनाव में फ़ायदा लेने की नज़र से किये गए हैं. लोकसभा के अलावा इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी होंगे.

क्योंकि विधान सभा और लोकसभा दोनों ही चुनावों में आदिवासी मतदाता बेहद अहम है.

लोकसभा में ओडिशा की 21 सीटों में से 5 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है और राज्यसभा में राज्य की 147 सीट में से 33 सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित की गई है.

ओडिशा आदिवासी जनसंख्या के लिहाज़ से देश भर में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर आता है. ओडिशा में साल 2011 की जनगणना के अनुसार कुल आदिवासी जनसंख्या 95 लाख 90 हज़ार 756 है. राज्य में कुल 62 आदिवासी समुदाय रहते हैं.

ओडिशा में आदिवासियों के खिलाफ़ कायम मुकदमों को वापस लेना, लघु वन उत्पाद का न्युनतम समर्थन मूल्य घोषित करना और आदिवासी भाषाओं के लिए एक आयोग का गठन करना नवीन पटनायक के तीन बड़े फ़ैसले हैं.

इन फ़ैसलों को चुनाव की नज़र से गेमचेंजर बताया जा रहा है. लेकिन यह भी सच है कि राज्य सरकार पर आदिवासियों के पक्ष में कुछ बड़े फ़ैसले लेने का दबाव था. इसका पहला कारण उसका अपना ही एक फ़ैसला था.

ओडिशा सरकार ने हाल ही में यह फैसला लिया था कि आदिवासी अपनी ज़मीन बेच सकते हैं. इस फैसले की राज्य ही नहीं बल्कि देश में भारी आलोचना हुई थी.

इस फ़ैसले से राज्य के आदिवासी इलाकों में सत्ताधारी बीजेडी का आधार हिल गया. सरकार ने इस फ़ैसले को वापस ले लिया है. लेकिन यह माना जा रहा था कि आदिवासियों को इस फ़ैसले के बाद राज्य सरकार की मंशा पर शक हो गया था.

इसलिए राज्य सरकार के लिए यह ज़रुरी हो गया था कि वह आदिवासियों के लिए कुछ बड़ी घोषणआएं करें.

इसके अलावा ओडिशा में साल 2019 के चुनाव में बीजेपी राज्य में मुख्य विपक्षी दल बन कर उभरा था. बीजेपी ने राज्य विधान सभा की कुल 22 सीटें जीत ली थीं. इनमें से आधी यानि 11 सीटें आदिवासी इलाकों की थीं.

इसके अलावा लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने राज्य की कुल 21 लोकसभा सीटों में से 8 सीटें जीती थीं.

बीजेपी ने राज्य में अपना आदिवासी आधार बढ़ाने के लिए राज्य की जानीमानी आदिवासी नेता द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद पर पहुंचाया है.

पिछले साल यानि 2023 के नवबंर महीने में संविधान दिवस के भाषण में देश के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की मौजूदगी में कहा था कि जेल में बंद आदिवासी ज़मानत के बाद भी छूट नहीं पाता है.

उन्होंने कहा था कि ज़्यादातर आदिवासियों के पास ज़मानत का पैसा ही नहीं होता है. उन्होंने न्यायपालिका से ऐसे मामलों में ध्यान देने का आग्रह किया था.

राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मु के आग्रह पर न्यायपालिका ने अलग अलग राज्यों की जेलों से ऐसे मामलों की एक रिपोर्ट भी मांगी थी.

इस पृष्ठभूमि में ओडिशा सरकार का यह फ़ैसला बेशक देर से लिया हुआ और चुनाव की दृष्टि से किया गया है. यह फ़ैसला अगर चुनाव में गेमचेंजर साबित होगा या नहीं यह भी अभी कम से कम नहीं कहा जा सकता है.

लेकिन ये तीनों ही फ़ैसले आदिवासियों के लिए ज़रूरी और बड़े फ़ैसले हैं.

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