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पश्चिम बंगाल: पुलिस अफ़सर ने 19 वर्षीय आदिवासी लड़की को पीटा, तीन दिन बाद सस्पेंड हुए

पीड़िता ने कहा, “ पुलिस इंस्पेक्टर ने मेरे आदिवासी होने पर मुझे गाली दी और मेरे काले रंग का भी मज़ाक बनाया. सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने मेरे घर में भी तोड़-फोड़ की.

पश्चिम बंगाल (Tribes of West Bangal) के पुरुलिया ज़िले (Purulia) के एक गांव में 19 साल की आदिवासी लड़की के साथ पुलिस ने मारपीट (Beaten tribal Girl) की है. इस मामले में दोषी पुलिस इंस्पेक्टर (Police inspector suspend) को निलंबित कर दिया गया है.

इस महिला के पिता पर आरोप था कि वह अवैध शराब बेचता है. जब पुलिस ने उसके घर की तलाशी ली तो घर से 2 लीटर शराब बरामद हुई.

इस शराब के बारे में घर पर मौजूद पिता ने पुलिस को बताया कि यह शराब उनके अपने पीने के लिए रखी गई है.

परिवार का आरोप है कि घर पर ही पुलिस ने पूछताछ के दौरान लड़की के साथ मार पीट की थी.

जिस पुलिस अफ़सर पर लड़की के साथ मार पीट का आरोप है उसका नाम बिश्वनाथ रॉय है. यह अफ़सर पुरलिया ज़िले के कोटशीला पुलिस स्टेशन में काम करते हैं.

आदिवासी महिला ने पुलिस को अपनी शिकायत में बताया की पुलिस अफ़सर ने पूछताछ के दौरान उसे पिटने लगा.

पीड़िता ने कहा, “ पुलिस इंस्पेक्टर ने मेरे आदिवासी होने पर मुझे गाली दी और मेरे काले रंग का भी मज़ाक बनाया. सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने मेरे घर में भी तोड़-फोड़ की.

घटना के बाद जब महिला अपने इलाज़ के लिए सोमवार को स्वास्थ्य केंद्र पहुंची तो पुलिस की धमकी की वज़ह से उन्होंने इलाज़ करने से मना कर दिया.

कोटशीला के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा की मुझे जांच के बारे में मंगलवार को पता चला था.

उन्होंने आगे बताया की जब पीड़ित महिला ने शाम को पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई, तब हमने थाना इंचार्ज के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दिया था और बुधवार के दिन सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया है.

देश में आदिवासियों को शोषण से बचाने के लिए अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून मौजूद है. लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि इस कानून को लागू करने के ज़िम्मेदार लोग यानि पुलिस ही आदिवासियों को सताने में नहीं चूकती है.

कल यानि 21 फ़रवरी को ओडिशा सरकार ने आदिवासी समुदायों के खिलाफ़ मामूली मामलों में दर्ज 48000 केस वापस लेने का ऐलान किया है. इनमें से 36000 से ज़्यादा केस अवैध शराब से जुड़े हुए हैं.

इससे यह अहसास होता है कि अवैध शराब के नाम पर आदिवासियों को कितनी आसानी से सताया जा सकता है.

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