HomeAdivasi Dailyसुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बावजूद, 12500 बोगस आदिवासी सरकारी नौकरी में...

सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बावजूद, 12500 बोगस आदिवासी सरकारी नौकरी में हैं

यह मामला महाराष्ट्र सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुका है. सरकार को राज्य में 11000 से ज़्यादा सरकारी कर्मचारियों पर फैसला लेना है. इन कर्मचारियों ने आदिवासी होने के बोगस सर्टिफिकेट जमा किये थे

महाराष्ट्र में कम से कम 12,500 बोगस आदिासियों की पहचान की गई है. विधान सभा में राज्य सरकार की तरफ सी दी गई जानकारी में यह तथ्य सामने आया है. एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान महाराष्ट्र के आदिवासी मामलों के मंत्री कागड़ा पड़वी ने यह जानकारी दी है. 

उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरियों के लिए इन लोगों ने बोगस आदिवासी/जनजाति प्रमाण पत्र दाखिल किए हैं. उन्होंने बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी.

इस याचिका के दाखिल किये जाने के बाद राज्य सरकार ने इस मामले की जांच की है. उन्होंने बताया कि अब राज्य सरकार को तय करना है कि बोगस सर्टिफिकेट जमा करने वालों के साथ क्या किया जाना है. 

दरअसल यह मामला महाराष्ट्र सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुका है. सरकार को राज्य में 11000 से ज़्यादा सरकारी कर्मचारियों पर फैसला लेना है. इन कर्मचारियों ने आदिवासी होने के बोगस सर्टिफिकेट जमा किये थे.

सरकार इन कर्मचारियों के निकालना नहीं चाहती है. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट का ऑर्डर है और उसको लागू करने का कोई रास्ता सरकार निकाल नहीं पाई है. 

जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अगर कोई व्यक्ति फ़र्जी सर्टिफिकेट पर सरकारी नौकरी हासिल करता है, तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाए. इसी तरह से अगर किसी शिक्षण संस्थान में बोगस सर्टिफिकेट पर दाखिला हासिल हासिल किया गया था तो उस व्यक्ति की डिग्री को अमान्य क़ररा दिया जाए. 

2018 में महाराष्ट्र के आदिवासी विभाग को पता चला था कि कई लोगों ने आदिवासी होने का बोगस प्रमाणपत्र बनवा कर मेडिकल में दाखिला पा लिया था. इतना ही नहीं इन छात्रों को आदिवासी होने के नाते स्कॉलरशिप भी मिल रही थी.

लेकिन बोगस आदिवासी सर्टिफिकेट के सहारे नौकरी हासिल करने वाले सरकारी कर्मचारियों की संख्या इतनी अधिक है कि सरकार कोई फैसला लेने से पहले दस बार सोचना चाहती है. 

इस सिलसिले में सरकार के सामने कई तरह के प्रस्ताव हैं. इनमें से एक प्रस्ताव है कि इन लोगों को नौकरी से ना निकाला जाए. बल्कि यह व्यवस्था की जाए कि इन कर्मचारियों को अपने वर्तमान पद और वेतन पर ही काम करना पड़ेगा.

इन कर्मचारियों को प्रमोशन ना दी जाए और रिटायरमेंट तक वो एक ही पद पर काम करते रहें. आदिवासियों के बोगस सर्टिफिकेट का मामला महाराष्ट्र के अलावा गुजरात और मध्य प्रेदश में भी उठाया जाता रहा है.

आदिवासी संगठन यह आरोप लगाते रहते हैं कि आदिवासियों के लिए किए गए आरक्षण के प्रावधान का फ़ायदा उठाने के लिए ग़ैर आदिवासी लोग जनजाति का सर्टिफिकेट बनवा लेते हैं. इन बोगस सर्टिफिकेट के दम पर शिक्षण संस्थानों में दाखिले और नौकरी हासिल की जाती है.

कई राज्यों में तो जनप्रतिनीधियों के लिए चुनाव आरक्षित सीटों पर बोगस आदिवासियों के चुनाव लड़ने के मामले देखे गए हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments