HomeAdivasi Dailyआदिवासी पहचान के संरक्षण के लिए भाषा और साहित्य अहम - अर्जुन...

आदिवासी पहचान के संरक्षण के लिए भाषा और साहित्य अहम – अर्जुन मुंडा

गुरुवार को दिल्ली में केंद्रीय जनजातीय कार्य और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने जनजातियों के लिए आयोजित आदि व्याख्यान (Adi Vyakhyan) का उद्घाटन किया.

आदिवासी कला को संरक्षित करने के साथ ही बड़े स्तर पर इसका प्रचार करने के लिए सरकार समय-समय पर प्रदर्शनी और कार्यक्रम का आयोजन करती रहती है.

ऐसा ही एक कार्यक्रम गुरुवार को दिल्ली में आदिवासी कला को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया गया था. जिसका केंद्रीय जनजातीय कार्य और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री (Union Minister for Tribal Affairs and Agriculture & Farmers Welfare) अर्जुन मुंडा ने उद्घाटन किया.

इस कार्यक्रम का नाम आदि व्याख्यान (Adi Vyakhyan) है. आदि व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (National Tribal Research Institute – NTRI) द्वारा किया गया है.

आदि व्याख्यान का आयोजन करने का उद्देश्य जनजातियों के बारे में बातचीत करने के साथ ही जनजातीय परंपराओं और संस्कृति की जटिलताओं को गहरी से समझना है.

इसके अलावा इस कार्यक्रम का आयोजन जनजातियों के अस्तित्व की चुनौतियों का पता लगाने के लिए किया गया है. यह आदिवासी पहचान और देश की सांस्कृतिक विविधता में आदिवासियों के योगदान का पता लगाने की एक पहल है.

आदि व्याख्यान कार्यक्रम के द्वारा आदिवासी समुदायों को भारत के सांख्यिकीय इनपुट (statistical input) और संवैधानिक सुरक्षा उपायों से अवगत कराया जाएगा ताकि अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम 1996, (Panchayats Extension of Scheduled Areas – PESA) वन अधिकार अधिनियम, 2006 (Forest Rights Act – FRA) के साथ ही एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम (Prevention of SC/STs Atrocities Act) 1989 की बारीकियों क बारे में बताया जा सके.

यह भी पढ़ें: त्रिपुरा: मुख्यमंत्री के अनुरोध के बाद जनजाति सुरक्षा मंच ने डिलिस्टिंग रैली एक दिन के लिए की स्थगित

ऐसी उम्मीद की जा रहा है कि इस कार्यक्रम के द्वारा जनजातीय शासन और भूमि अधिकारों को आकार देने वाले कानूनी ढांचे में जनजातीय लोगों के लिए गहरी समझ के लिए मंच तैयार करेगा.

इस कार्यक्रम के उद्घाटन में 5 राज्यों के मुंडा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इन पांच राज्य में छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम शामिल है.

आदि व्याख्यान के उद्घाटन में भाषण देते हुए अर्जुन मुंडा ने कहा है कि आदिवासी पहचान को संरक्षित करने के लिए आदिवासी भाषा और साहित्य महत्वपूर्ण हैं.

इसके साथ ही उन्होंने जनजातीय लोगों के विकास के लिए पीएम-जनमन यानी प्रधान मंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान पहल के साथ ही विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में बताया.

उन्होंने एफआरए 2006 पर चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए आदि मंथन की भी सराहना करने के साथ ही पेसा 1996, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 और आदिवासी समुदाय के बीच जागरूकता फैलाने के लिए एनटीआरआई जैसे अनुसंधान संस्थानों की आवश्यकता के बारे में बोला.

इसके साथ ही जनजातीय लोगों को उनसे संबंधित भारत के संविधान के प्रावधानों से अवगत कराने की आवश्यकता भी है.

अर्जुन मुंडा ने यह भी बताया है कि आदिवासी समुदायों के विकास के लिए अतीत, वर्तमान और भविष्य पर दोबारा सोचने की जरूरत ताकि जनजातियों के लिए अच्छे से काम किया जा सके.

इसके अलावा कार्यक्रम में उपस्थित बाकी लोगों ने भी जनजातियों से जुड़ी कई बाते बताई.

एनटीआरआई की विशेष निदेशक प्रोफेसर नूपुर तिवारी ने कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा कि आदि व्याख्यान भारत में आदिवासी समुदायों के साथ चर्चा और बातचीत को प्रोत्साहित करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है.

भारत मुंडा समाज की अध्यक्ष श्री एतवा मुंडा ने कहा है कि इस तरह के सेमिनार से आदिवासियों की भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के साथ ही भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करने में मदद मिलेगी.

इसके अलावा भारत मुंडा समाज की उपाध्यक्ष रूपलक्ष्मी मुंडा ने आदिवासी समाज में महिलाओं की प्रगति और उनकी चुनौतियों के बारे में बात की. उनके लिए आदि व्याख्यान कार्यक्रम आदिवासी महिलाओं की मुक्ति के लिए एक मंच के रूप में काम कर सकती है.

वैसे यह भी गौर करने वाली बात है कि इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से आदिवासों को शायद ही लाभ मिल रहा है.

क्योंकि आज भी कई आदिवासी ऐसे है जो लुप्त होने वाले है और कई आदिवासी गांवों में अभी तक बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments