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धर्मांतरितों को ST सूची से हटाने की मांग तेज़, दिल्ली कूच करेंगे 5 लाख आदिवासी

JDSSM ने इससे पहले इसी साल 26 मार्च को गुवाहाटी के खानापारा में वेटरनरी कॉलेज में एक जन रैली "चलो दिसपुर" कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों से 60 हज़ार से अधिक आदिवासियों ने भाग लिया था.

एक अखिल भारतीय संगठन, जनजाति सुरक्षा मंच (Janajati Suraksha Manch) और असम स्थित संगठन, जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच (Janajati Dharma Sanskriti Suraksha Manch) के बैनर तले 5 लाख से अधिक आदिवासी धर्मांतरित आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) सूची से हटाने की अपनी मांग के समर्थन में संसद तक मार्च करेंगे.

जेडीएसएसएम के कोऑर्डिनेटर और कार्यकारी अध्यक्ष बिनुद कुंबांग ने एक बयान में कहा है कि इस साल नवंबर के अंत में इस मार्च को निकाल रहे हैं. JSM और JDSSM के 5 लाख से अधिक सदस्य इसके चलो दिल्ली कार्यक्रम के तहत एक प्रदर्शन करेंगे. जिसमें दोनों संगठन द्वारा केंद्र सरकार से भारत के संविधान के अनुच्छेद 342A में संशोधन करने की मांग की जाएगी.

कुंबांग ने कहा कि जेएसएम और जेडीएसएसएम पिछले 18 वर्षों से देश के अनुसूचित जनजाति के लोगों के अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं और एसटी सूची से परिवर्तित आदिवासियों को हटाने की मांग करते हुए अनैतिक धर्मांतरण को रोकने के लिए देश भर में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक रैलियां कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य भारत के अनुसूचित जनजाति के लोगों की मूल पहचान और उनकी मूल जीवंत संस्कृति, रीति-रिवाजों, परंपराओं और भाषा की रक्षा करना, अनैतिक धर्मांतरण को रोकना और कई परिवर्तित अनुसूचित जनजाति द्वारा लिए गए दोहरे लाभों (एसटी और अल्पसंख्यक) को रोकना है, जो कि असंवैधानिक और अनैतिक है.”

JDSSM ने इससे पहले इसी साल 26 मार्च को गुवाहाटी के खानापारा में वेटरनरी कॉलेज में एक जन रैली “चलो दिसपुर” कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें राज्य के विभिन्न हिस्सों से 60 हज़ार से अधिक आदिवासियों ने भाग लिया था.

आदिवासी नेता ने कहा, “हमने मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और गुजरात, असम सहित भारत के 8 राज्यों की राजधानियों में भी बड़े पैमाने पर रैलियां आयोजित की थीं. हम 18 जून को राजस्थान में रैली करने की योजना बना रहे हैं. हम 14 अन्य राज्यों में रैलियां करने की प्रक्रिया में हैं.”

जेडीएसएसएम ने 13 जून को असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया के माध्यम से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को मेमोरेंडम भेजकर भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 में संशोधन के लिए संसद में कानून बनाने की मांग की है.

आरएसएस का सहयोगी संगठन साठ के दशक में सबसे पहले कांग्रेस सांसद कार्तिक उरांव द्वारा उठाई गई एक मांग को आगे बढ़ा रहा है.

कार्तिक उरांव ने यह दावा करते हुए इस मुद्दे को उठाया था कि एसटी धर्मांतरितों को आरक्षण लाभ का एक बड़ा हिस्सा मिल रहा है. 1968 में इस मुद्दे की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया.

यह मांग करने वाले संगठन अक्सर यह कहते हैं कि ईसाई धर्म अपनाने वालों को दोहरा लाभ मिल रहा है. वे अपने बच्चों को अल्पसंख्यक के रूप में लाभ लेते हुए ईसाई स्कूलों में डालते हैं और अनुसूचित जनजाति का लाभ लेते हुए छात्रवृत्ति, नौकरी और पदोन्नति लेते हैं.

हालांकि कई बार संसद और सुप्रीम कोर्ट में यह बहस हो चुकी है. ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों के आरक्षण को खत्म करने की मांग सुप्रीम कोर्ट जब पहुँची थी तो कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया था.

लेकिन आरएसएस के संगठन इस मांग को लगातार जीवित रखे हुए हैं. यह भी देखा गया है कि जब से बीजेपी केंद्र में सत्तारूढ़ हुई है यह मांग देश के अलग अलग राज्यों में ज़ोर पकड़ रही है.

डिलिस्टिंग की मांग करने वाले संगठन कहते हैं कि परिवर्तित एसटी मंत्री, सांसद, विधायक और स्वायत्त निकायों के सदस्य के रूप में चुनाव लड़कर लोकतांत्रिक कवायदों में हिस्सा लेते हैं और अपनी परंपरा को जीवित रखने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले आदिवासियों के अधिकारों को छीन रहे हैं.

डिलिस्टिंग की मांग करने वाले संगठनों का कहना है कि वे इस मांग पर पहले से ही समर्थन हासिल करने के लिए स्वायत्त परिषदों के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों सहित आदिवासी नेताओं के एक क्रॉस-सेक्शन तक पहुँच चुके हैं.

उनका यह दावा है कि लोकसभा और राज्यसभा के 400 से ज्यादा सांसद उनका समर्थन कर रहे हैं. हांलाकि इस आंकड़े में हैरान करने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि 2019 के बाद बीजेपी के सांसदों की संख्या ही इतनी हो जाती है.

अभी तक डिलिस्टिंग को बीजेपी की राजनीतिक पैंतरबाजी मान कर नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है. लेकिन हाल ही में छत्तीसगढ़ में इस मामले के आस-पास इस तरह के संगठनों ने आदिवासियों को ही एक-दूसरे से भिड़ा दिया था.

छत्तीसगढ़ के अलावा भी यह मुद्दा कई राज्यों में अशांति का कारण बन सकता है.

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