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केरल: सात बस्तियों में रहने वाले हज़ारों आदिवासी मुख्यधारा से कट गए

केरल के तिरुवनंतपुरम ज़िले के सात बस्तियों में रहने वाले हज़ारों आदिवासी मुख्यधारा से पूरी तरह कट चुके है. खराब सड़क के चलते इन आदिवाासियों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है.

केरल (kerala) के तिरुवनंतपुरम ज़िले (thiruvananthapuram) के सात बस्तियों (seven tribal settlements) में रहने वाले हज़ारों आदिवासी मुख्यधारा से पूरी तरह कट चुके है. इन सात बस्तियों के नाम चेट्टीवनपारा, चामपोट्टुपारा, अनापेट्टी, मेथोट्टम, कनियारामकोडे, वलियाकलुंगु और पनाक्कोडे हैं.

पहले इन बस्तियों में रहने वाले आदिवासी परांतोड जंक्शन पहुचंने के लिए सात किलोमीटर का लंबा पथरीला रास्ता तय करते थे.

जंक्शन पर केएसआरटीसी की दो बस आया करती थी. लेकिन अब यहां कोई बस नहीं आती है. रास्ता पथरीला है तो कोई प्राइवेट गाड़ी भी यहां नहीं आना चाहती है.

इस सड़क पर हर जगह बड़े- बड़े गड्ढे और नुकीले पत्थर है. इसलिए ना केवल वाहन बल्कि पैदल चलने वालो को रोजमर्रा आने-जाने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

इस स्थिति में गर्भवती महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है.

इस गांव  के लोगों ने बताया कि हाल ही में गर्भवती आदिवासी महिला को प्रसव पीड़ा उत्पन्न हुई थी.

गाँव वाले गर्भवती महिला को स्ट्रेचर के ज़रिए सड़क तक तो ले गए, लेकिन खराब सड़क के कारण ना ही कोई ऑटो और ना ही कोई एंबुलेंस महिला को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए तैयार थी.

सड़क पुन: निर्माण  के लिए सरकार द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 3.5 करोड़ रूपये का प्रस्ताव रखा गया था.

लेकिन कोई भी ठेकेदार इस काम को नहीं लेना चाहता है. क्योंकि ज़्यादातर ठेकदार यह मानते हैं कि प्रशासन जितना पैसा सड़क निर्माण के लिए दे रही है उतने में इस सड़का का निर्माण संभव नहीं है.

इसी कड़ी में एक आशा कार्यकर्ता बताती है की इन बस्तियों में रहने वाले हज़ारों छात्र चार घंटे पैदल चलते हैं. वे रोज नौ बजे स्कूल पहुंचने के लिए सुबह सात बजे घर से निकल जाते हैं. स्कूल आने जाने के लिए रोज चार घंटे पैदल चलना थका देने वाला काम है. इसलिए अब बेहद कम बच्चे ही स्कूल जाने में रुचि दिखाते हैं.

इसके अलावा उन्होंने बताया की दूध या दवा के लिए भी इन्हें परांतोड जंक्शन तक पहुंचना होता है.

केरल एक विकसित राज्य माना जाता है. लेकिन अफ़सोस की बात है कि इस राज्य में आदिवासी इलाकों में अभी तक रास्ते पक्के नहीं हुए हैं.

यह मामला इस बात की तरफ भी इशारा करता है कि कैसे प्रशासन लकीर का फ़कीर बन जाता है. क्योंकि इस गांव तक सड़क के लिए पैसा सामान्य नियमों के हिसाब से उपलब्ध कराया जा रहा है.

जबकि यह एक पहाड़ी और दुर्गम इलाका है जहां सड़क निर्माण में सामान्य से अधिक पैसा ख़र्च होगा.

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