HomeAdivasi DailyChhattisgarh Assembly Election 2023: सरगुजा संभाग में कांग्रेस को जीत की उम्मीद

Chhattisgarh Assembly Election 2023: सरगुजा संभाग में कांग्रेस को जीत की उम्मीद

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान 7 नवंबर को हो चुका है और दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है. ऐसे में बीजेपी और सत्ताधारी कांग्रेस प्रदेश के आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान 7 नवंबर को हो चुका है और दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को होना है. ऐसे में बीजेपी और सत्ताधारी कांग्रेस प्रदेश के आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.

कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनावों में उत्तरी छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग में अपनी सभी 14 सीटों पर कब्जा कर लिया था, जब पार्टी ने भाजपा के 15 साल के शासन को समाप्त करने के लिए 90 में से 68 सीटें जीती थीं.

वर्तमान विधानसभा चुनावों में छह जिलों मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी), कोरिया, सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर और जशपुर में चुनावी दौड़ में आगे दिखने के बावजूद मौजूदा कांग्रेस को विभिन्न बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है.

पूरे क्षेत्र में कई स्थानीय निवासियों द्वारा उठाए गए सबसे बड़े मुद्दों में बेरोजगारी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है. कांग्रेस सूत्र मानते हैं कि स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षकों की भारी रिक्तियां हो गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा की गुणवत्ता खराब हो गई है.

वहीं सरगुजा ज़िले के मुख्यालय अंबिकापुर में भी कोई सरकारी कॉलेज नहीं है जो बी.एड का पाठ्यक्रम प्रदान कराता हो. जबकि यह शहर संभाग में सबसे विकसित शहर है.

सरगुजा में रोजगार की स्थिति
कई युवा रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं. बेरोजगारी का संकट यहां अब और गहराता जा रहा है. क्योंकि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 2022 के फैसले के मद्देनजर सरगुजा जैसे आदिवासी क्षेत्रों में क्लास 3 और क्लास 4 की सरकारी नौकरियां अब स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित नहीं हैं.

कई स्थानीय निवासी इस क्षेत्र में अधिक कारखाने और औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं क्योंकि यह खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है.

उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की खेल के क्षेत्र की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है और और विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए जिला खनिज निधि का भी उचित उपयोग नहीं किया जा रहा है.

अंबिकापुर और उत्तर प्रदेश के रेनुकूट के बीच रेल कनेक्शन की भी सार्वजनिक मांग रही है, जो शहर को उस क्षेत्र में एक प्रमुख जंक्शन बना देगा, जो मध्य प्रदेश, यूपी, झारखंड और ओडिशा के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है.

चुनाव की तैयारियां
उपमुख्यमंत्री और पूर्ववर्ती सरगुजा के शाही परिवार के वंशज, अंबिकापुर विधायक टीएस सिंह देव इस क्षेत्र में कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसमें नौ अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीटें हैं.

टीएस देव ने बताया कि पिछले चुनाव में सरगुजा डिवीजन में कांग्रेस ने “पहली बार सभी 14 सीटें जीतकर इतिहास रचा था.” उन्होंने दावा किया कि पार्टी मौजूदा चुनावों में यह उपलब्धि दोहराएगी. उन्होंने इस क्षेत्र में कम से कम 10 से 11 सीटें जीतने का विश्वास जताया.

2013 के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने सरगुजा संभाग में 7-7 सीटें जीती थीं. एक स्थानीय निवासी ने कहा, “2018 के चुनाव में जब सिंह देव विपक्ष के नेता (एलओपी) थे, स्थानीय लोगों ने भी उन्हें सीएम के रूप में देखने की उम्मीद में कांग्रेस को वोट दिया था, जिससे क्षेत्र में और अधिक विकास सुनिश्चित होता.इस बार ऐसा नहीं लगता क्योंकि निवर्तमान सीएम भूपेश बघेल स्पष्ट रूप से चुनाव के लिए पार्टी का चेहरा बनकर उभरे हैं.

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि कांग्रेस को “अपनी किसान-समर्थक नीतियों से लाभ होगा”, जिसे पार्टी ने जारी रखने और बढ़ाने का वादा किया है. स्थानीय लोगों का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में काम किया गया है. हालांकि और काम करने की जरूरत है.

वहीं अंबिकापुर में कम वोल्टेज बिजली की समस्या का समाधान किया गया है और चुनावी वर्ष में इसकी सड़कों की मरम्मत की गई है. लेकिन कांग्रेस फिलहाल गुटबाजी और अंदरूनी कलह से जूझ रही है जो पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है.

पार्टी ने संभाग के अपने 14 मौजूदा विधायकों में से चार को टिकट देने से इनकार कर दिया है. जिसमें रामानुजगंज में बृहस्पत सिंह, प्रतापपुर में पूर्व मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम, मनेंद्रगढ़ में विनय जयसवाल और सामरी में चिंतामणि महाराज शामिल है.

रामानुजगंज में अंबिकापुर के दो बार मेयर रहे कांग्रेस नेता अजय तिर्के ने बृहस्पत की जगह ली है, जिन्होंने देव पर कथित तौर पर उन्हें “नुकसान पहुंचाने की साजिश” करने का आरोप लगाया था. देव ने कहा था कि वह आहत हैं और बृहस्पत के लिए प्रचार नहीं करेंगे.

वहीं चिंतामणि वापस भाजपा में चले गए हैं और कहा जा रहा है कि उनका अन्य सीटों पर भी कुछ प्रभाव है. सीतापुर सीट पर कांग्रेस की दो बागी महिलाएं मंत्री और चार बार के विधायक अमरजीत भगत के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं.

भगत का मुकाबला भाजपा के नए चेहरे 33 वर्षीय रामकुमार टोप्पो से है, जो पूर्व सीआरपीएफ जवान हैं. जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए 13 साल की सेवा के बाद इस्तीफा दे दिया था.

टोप्पो ने कहा कि मैंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि लोगों ने मुझे चुनाव लड़ने के लिए एक हजार से अधिक पत्र लिखे और उन्होंने मुझसे भाजपा में शामिल होने के लिए कहा. भाजपा ने भी इस क्षेत्र से अपने कुछ दिग्गजों को मैदान में उतारा है.

केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह भरतपुर-सोनहत सीट से चुनाव लड़ रही हैं जबकि बीजेपी सांसद गोमती साय पत्थलगांव से चुनाव लड़ रही हैं. भाजपा ने रामानुजगंज सीट से पूर्व मंत्री राम विचार नेताम और कुनकुरी से पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णु देव राय को भी मैदान में उतारा है.

विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा के दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव के पूर्व शासक परिवार के प्रभाव को देखते हुए, जशपुर जिले की दो सीटों पर भी कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा. बिलासपुर संभाग से जूदेव परिवार के दो सदस्य चुनाव लड़ रहे हैं.

हालांकि, आदिवासी पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) नौ सीटों पर और उसकी सहयोगी बसपा पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जीजीपी चार सीटों- भरतपुर-सोनहत, मनेंद्रगढ़, बैकुंटपुर और प्रेमनगर में परिणाम निर्धारित करने में भूमिका निभा सकती है. जहां उसे 2018 में जीत के अंतर से अधिक वोट मिले थे.

जीजीपी के एक नेता ने कहा कि अरविंद नेताम के नेतृत्व वाली सर्व आदिवासी समाज की हमार राज पार्टी भी इन चार सीटों पर उनका समर्थन कर रही है. बाकी की 10 सीटों से नवोदित हमार राज चुनाव लड़ रहे हैं.

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