महाराष्ट्र में धनगर समुदाय आदिवासी होने का दावा करके अनूसुचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग कर रहा है. लेकिन कई आदिवासी समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं और उन्हें इस सूची में शामिल करने के खिलाफ हैं. जिसके कारण आदिवासी संगठन पिछले कुछ वक्त से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं ताकि धनगर समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल न किया जाए.
ऐसा ही एक बड़ा मोर्चा शुक्रवार को गढ़चिरौली जिले में निकाला गया. जिसमें आदिवासी बचाव कृती समिति और विभिन्न आदिवासियों संगठनों ने धनगर समाज को आरक्षण देने के विरोध में मोर्चा निकाला.
इस महामोर्चे में गढ़चिरौली जिले के करीब 20 हजार से अधिक आदिवासी शामिल हुए. यह महामोर्चा संयोजक समिती के अध्यक्ष घनशाम मडावी, सचिव भरत येरमे, पूर्व विधायक डॉक्टर नामदेव उसेंडी, आर. डी. आत्राम और ज़िले के ग्रामसभाओं के नेतृत्व में धानोरा मार्ग के शिवाजी महाविद्यालय के प्रांगण से जिलाधिश कार्यालय आदि द्वारा निकाला गया. इस दौरान बड़ी संख्या में पुलिस बंदोबस्त रखा गया था.
मोर्चे के दौरान धनगर हटाओ, आदिवासी बचाओ के नारे भी लगाए गए. महामोर्चे में काफी ज्यादा संख्या में पुलिस बल भी तैनात थे.
इस मोर्चे में आदिवासी समाज की संस्कृति को भी देखा गया क्योंकि मोर्चे में कई आदिवासी अपनी पारंपारिक वेशभूषा में ढ़ोल-बाजे के साथ शामिल हुए थे.
इसमें कुछ आंदोलनकर्ता नाचते हुए नज़र आए तो कुछ भालू, बाघ के नकाब पहनकर भी मोर्चे में शामिल हुए और यह सब करके आंदोलनकर्ता लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रहे थे.
आंदोलनकर्ता को सौंपा ज्ञापन
मोर्चे में शामिल आदिवासियों ने जिलाधिश कार्यालय पर रूपांतर सभा की और जिसमें विधायक डा. देवराव होली, डा. नामदेव कीरसान डा. नितीन कोडवते, सैनू गोटा समेत अन्य आदिवासी नेता भी पहुंचे.
इस सभा में आदिवासी संगठन के नेताओं ने सभा को संबोधित किया. जिसके बाद आदिवासी संगठन के शिष्टमंडल ने जिलाधीश को अपनी विभिन्न मांगों का ज्ञापन सौंपा.
ज्ञापन में मांगे
शिष्टमंडल द्वारा जिलाधीश को दिए गए ज्ञापन में 26 से अधिक मांगे शामिल हैं. जिसमें महाराष्ट्र राज्य के सच्चे आदिवासियों की सूची में धनगर समाज का समावेश न करने, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सायन्सेस (TISS) मुंबई द्वारा सरकार को पेश की गई धनगर समाज की रिपोर्ट सार्वजनिक करने, आनुसूचित जनजाति में फर्जी जाति प्रमाणपत्र पेश कर सरकारी नौकरी हासिल करने वाले गैर-आदिवासियों पर कार्रवाई कर प्रमाणपत्र खारिज करने जैसी मांगे शामिल हैं.
इसके अलावा गोंडी भाषा और लिपी को सरकार मान्यता देकर अनुसूचित समाविष्ठ करने, कम छात्र संख्यावाले सरकारी स्कूल बंद न करने, स्वास्थ्य सेवा और सरकारी पदभर्ती ठेका पध्दती से न लेने, धान को प्रति क्विंटल 4000 रुपये दाम देने, आदिवासियों को खावटी योजना पूर्ववत करने, सरकारी कार्यालय के रिक्त जगहों पर तत्काल आदिवासी उम्मीदवारों की नियुक्ति करने की मांगे शामिल है.