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इरूला आदिवासी: सांप का ज़हर निकालने के लिए “मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल” को पद्म श्री दिया गया

साल 2023 में सामाजिक क्षेत्र में पद्म श्री हासिल करने वालों में दो सांप पकड़ने वाले आदिवासियों का नाम भी शामिल है. जिनका नाम मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल(Vadivel Gopal and Masi Sadaiyan) है. ये दोनों सांप का ज़हर जमा करने के लिए मशहूर आदिवासी समुदाए इरुला से ताल्लुक रखते है.

मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल चेन्नई में इरुलर स्नेक कैचर्स को ऑपरेटिव सोसाइटी(Irula Snake Catchers Industrial Cooperative Society) के सदस्य है. जो भारत में सांप का सबसे अधिक ज़हर जमा करने वाली संस्था है.

सांप का यह ज़हर जमा किया जाता है जिस से एंटी वेनम(anti-venom) का उत्पादन किया जा सके. ऐंटी वेनम सांप के काटने पर लगाया जाने वाला इंजेक्शन है.

मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल दोनों को सांप पकड़ने में माहिर हैं और इन्हें सांप का ज़हर (anti-venom extraction) निकालने में विशेषज्ञ माना जाता है. इस काम के लिए मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल जिन तकनीकों का प्रयोग करते हैं उसकी तारीफ़ की जाती है.

यह तकनीक दरअसल इरुला आदिवासियों के स्थानीय ज्ञान का हिस्सा हैं. इस समुदाय में यह ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाता रहा है. मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल ने कई अन्य देशों में साँप पकड़ने वालों के साथ भी अपना पारंपरिक ज्ञान को साझा किया है.

साल 2017 के जनवरी महीने में फ्लोरिडा के लागों में आक्रामक बर्मी अजगरों का पता लगाने और पकड़ने के लिए खोजी कुत्तों के साथ काम करने के लिए तमिलनाडु की इरुला जनजाति से इन्हीं दोनों को यानी “मासी सदैयान और वडिवेल गोपाल” को ले जाया गया था.

फ्लोरिडा में इन्होंने दो सप्ताह से भी कम समय में 14 अजगरों को पकड़ लिया था. इसके अलावा इन दोनों ने मिलकर अब तक लगभग 27 अजगर को पकड़ा है.

एंटी वेनम

एंटी वेनम नाम की एक इंजेक्शन या टीका बहुत प्रभावशाली होता है. जो शरीर में पहुंचते ही जहर से मुकाबला कर जहर के प्रभाव को खत्म कर देती है.
साँप से डसे गए मरीजों को यह एंटी वेनम टीका लगाया जाता है.

अगर कम शब्दों में कहा जाए तो एंटी साँप के काटने या डसने वाले मरीजों को मरने से बचाने वाली एक बेहद ज़रूरी दवाई है.

इरुलर स्नेक कैचर्स को ऑपरेटिव सोसाइटी

सन् 1978 में रोमुलस व्हिटेकर (वन्यजीव संरक्षणवादी) ने इरुला आदिवासी के एक समूह की मदद से एक सहकारी समिति की स्थापना की.उनका उद्देश्य सहकारी समिति के माध्यम से इरुला के आदिवासियों के पारंपरिक कौशल को स्थानीय रोजगार पैदा करने वाले अवसरों में बदलना था.

इस समिति की शुरुआत 11 इरुला सदस्यों के साथ हुई थी और अब इसमें 160 महिलाओं सहित 350 सदस्य शामिल हैं.

इरुला लोग अनुभव और सहज ज्ञान से उन स्थानों को जानते हैं जहां सांप छिपते हैं और वे सांपों को उनके निशान, गंध और मल से ढूंढ सकते हैं. इस पूरे मामले में कमाल की हात ये है कि इरुला जनजाति के लोग सांप के ज़हर का इलाज करने वाली दवा बनाने के लिए काम करते हैं. लेकिन खुद इस दवा का इस्तेमाल नहीं करते हैं.

वे साँप के काटने का इलाज पचाई एलाई मरुन्धु नाम की एक जड़ी बूटी से करते हैं. ये आदिवासी सांप काटने पर या फिर किसी और बीमारी के इलाज के लिए ज्यादातर मामलों में अस्पताल जाने से बचते हैं.

इरुला आदिवासी तमिलनाडु के प्रमुख जनजातीय समूहों में से एक है. जो तमिलनाडु के उत्तर पश्चिमी ज़िलों विशेषकर चेंगलपेट ज़िले में रहते है. इसके अलावा ये केरल और कर्नाटक में भी रहते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि इरूला शब्द का अर्थ अंधेरे में अपना रास्ता खोजने में सक्षम होना है. जो इरुला की एक प्रमुख विशेषता है.

इरुला आदिवासी छह सबसे पुरानी आदिवासी जनजातियों में से एक हैं. जो इरुला पारंपरिक चिकित्सा और उपचार पद्धतियों में विशेषज्ञ हैं. यह विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) है.

इसके अलावा इस आदिवासियों के लोगों को इरुलर भी कहा जाता है.

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