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ईसाई आदिवासियों को ST सूची से हटाने के अभियान कानून और संविधान के विरुद्ध है -AARM

AARM के राष्ट्रीय संयोजक डीआर पुलिन बिहारी बास्की (DR Pulin Behari Baskey) ने कहा कि यह पता चला है कि क्रिसमस के दौरान जेएसएम ने ईसाई आदिवासियों को एसटी सूची से हटाने के लिए त्रिपुरा और झारखंड जैसे विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अत्यधिक उत्तेजक आह्वान किया है.

आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच (Adivasi Adhikar Rashtriya Manch -AARM) ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि जनजाति सुरक्षा मंच (Janjati Suraksha Manch) विभिन्न राज्यों में ईसाई आदिवासी समुदायों (Christian Adivasi communities) को निशाना बनाने के प्रयास तेज कर रहा है.

AARM ने अपनी हालिया राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद (NEC) की बैठक के दौरान एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की. जिसमें कहा गया कि JSM राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा समर्थित है और विभिन्न जाने-माने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं के साथ संबद्ध है.

एएआरएम ने जोर देकर कहा कि ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) की सूची से बाहर करने का जेएसएम का अभियान असंवैधानिक और विभाजनकारी है.

आदिवासी अधिकार मंच ने स्पष्ट किया कि कानून या संविधान के मुताबिक, न तो धर्म और न ही धर्मांतरण किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत करने के लिए मानदंड के रूप में काम करता है.

एएआरएम ने अनुसूचित जनजातियों के भूमि अधिकारों, आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभा के अधिकारों के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा के घोर उल्लंघन और वन अधिकार अधिनियम और पेसा जैसे कानूनों को कमजोर करने वाले संशोधनों का हवाला देते हुए जेएसएम पर मोदी सरकार के तहत कॉर्पोरेट समर्थक, आदिवासी विरोधी नीतियों को बचाने का आरोप लगाया है.

तेलंगाना, त्रिपुरा, झारखंड और छत्तीसगढ़ से ईसाई आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति श्रेणी से हटाने की मांग के कथित उदाहरण सामने आए हैं. सूत्रों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह के आंदोलन की योजना बनाई गई है.

25 दिसंबर को क्रिसमस समारोह के दौरान जेएसएम द्वारा त्रिपुरा में ईसाई आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति श्रेणी से बाहर करने के लिए संविधान में बदलाव की मांग के साथ एक रैली का आह्वान किया गया है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सहित पूर्वोत्तर राज्य में विपक्षी दलों ने जेएसएम की मांग का विरोध किया है.

AARM की तरफ से कहा गया है कि पूरे भारत में आदिवासी जल, जंगल और ज़मीन (जल, जंगल और ज़मीन) की सुरक्षा के लिए लामबंद हो रहे हैं. उन्होंने (सरकार ने) वन संरक्षण अधिनियम, 2023 पारित किया है, हमारे पेसा कानून और आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामसभाओं के अधिकारों पर अंकुश लगा दिया है, हमारी जमीन खनन निगमों को दी जा रही है, हम इसे बंगाल के देवचा पचामी क्षेत्र में देख रहे हैं.

इस बयान में आगे कहा गय कि पुरुलिया के अयोध्या पहाड़ क्षेत्र, झारखंड के लोहाबुरु और घोंटाबुरु के अनुसूचित क्षेत्रों में खनन परियोजनाएं आ रही हैं. कभी-कभी वे इसे सारी और सरना धर्म जैसे धर्मों के नाम पर करते हैं.

इसके अलावा आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच ने कहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले वे समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लाने की कोशिश कर रहे हैं. इससे देश में आदिवासियों की विशेष पहचान ख़त्म हो जाएगी. एक बार पारित होने के बाद यह नियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम जैसे कानूनों को भी समाप्त कर देगा. संविधान के तहत हमारा विशेष दर्जा छीन लिया जाएगा.

वहीं AARM के राष्ट्रीय संयोजक डीआर पुलिन बिहारी बास्की (DR Pulin Behari Baskey) ने कहा कि यह पता चला है कि क्रिसमस के दौरान जेएसएम ने ईसाई आदिवासियों को एसटी सूची से हटाने के लिए त्रिपुरा और झारखंड जैसे विभिन्न राज्यों में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अत्यधिक उत्तेजक आह्वान किया है.

एएआरएम की एनईसी ने देश भर में अपनी सभी इकाइयों से प्रदर्शनों और धरनों सहित एक मजबूत अभियान के माध्यम से जेएसएम के आह्वान का मुकाबला करने का आह्वान किया.

एएआरएम ने देश की सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों से जेएसएम की आड़ में आरएसएस-भाजपा के इस कथित डिजाइन के खिलाफ आवाज उठाने का भी आग्रह किया है. साथ ही इसने राज्य सरकारों से जेएसएम द्वारा ऐसी उत्तेजक गतिविधियों के लिए क्रिसमस के दौरान अनुमति देने से इनकार करने का भी आह्वान किया है.

बास्की ने कहा कि आरएसएस का पूर्वी क्षेत्रीय मुख्यालय पश्चिम बंगाल के खड़गपुर के पास गोपाली में है, जहां से वे कथित तौर पर क्षेत्र में रैलियों की योजना बना रहे हैं.

उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान जनजातीय प्रवासियों के युवा दिमागों को उनके हितों के खिलाफ प्रशिक्षित करने वाले स्कूल शुरू करके विभाजनकारी मानसिकता पैदा करने के प्रयासों के अनुरूप नहीं है.

बास्की ने कहा, “पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, झाड़ग्राम, पश्चिम मेदिनीपुर और बांकुरा के आदिवासी बहुल जिलों में 1500 से अधिक ऐसे स्कूल एक घातक अभियान चला रहे हैं. एसटी कोटा किसी धर्म पर आधारित नहीं है. वे जो कर रहे हैं वह असंवैधानिक बात है. वे देश भर में आदिवासियों की एकता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं और आदिवासी समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं. वे आदिवासी लोगों के लिए नहीं बल्कि कॉरपोरेट्स के हित में काम कर रहे हैं.”

मणिपुर की एक प्रमुख आदिवासी कार्यकर्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग की शिक्षाविद् डॉ. मैरी ग्रेस ज़ोउ ने जोर देकर कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342 आदिवासियों को विशिष्ट रीति-रिवाजों और प्रथाओं के आधार पर अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल होने का अधिकार प्रदान करता है.

जबकि अनुच्छेद 341 के तहत किसी को एससी बनने के लिए हिंदू होना आवश्यक है, अनुच्छेद 342 में एसटी होने के लिए कोई मानदंड नहीं है.

डॉ. ज़ोउ ने स्पष्ट किया कि एसटी होना धर्म के बारे में नहीं है बल्कि आदिवासी रीति-रिवाजों और प्रथाओं के बारे में है.

उन्होंने अनुसूचित जनजाति समुदायों में जाति व्यवस्था की अनुपस्थिति पर भी प्रकाश डाला.

उन्होंने मौलिक अधिकारों में बदलाव के बारे में चिंता व्यक्त की और संविधान की अखंडता के संरक्षण का आग्रह करते हुए कहा कि यह हमारे संविधान को बनाए रखने के बारे में है, न कि भावनाओं के बारे में. मेरा जन्म एक धर्मनिरपेक्ष देश में हुआ है और मैं हमेशा इसकी धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को बरकरार रखूंगी.

वहीं पश्चिम मेदिनीपुर जिले में ईसाई आदिवासियों के एक प्रमुख कार्यकर्ता फिलिप हेम्ब्रेम ने जोर देकर कहा कि धर्मांतरित आदिवासियों को एसटी दर्जे से हटाना संविधान को नष्ट कर देगा.

उन्होंने आदिवासियों द्वारा अपनाए जाने वाले सरना या साड़ी धर्म के खिलाफ अभियानों की आलोचना करते हुए कहा कि आदिवासी वर्गीकरण में धर्म कोई भूमिका नहीं निभाता है.

हेम्ब्रेम ने आगे बताया कि मैंने एक बार आरएसएस समर्थित सरस्वती विद्यामंदिर स्कूल के शिक्षकों को चुनौती दी थी, जो आदिवासियों को वनवासी या जनजाति के रूप में संदर्भित कर रहे थे. ये दोनों शब्द हमारे लिए अपमानजनक है. ऐसे तो वे आगे हमें बंदर कह सकते हैं क्योंकि हम जंगलों में रहते हैं.

उन्होंन कहा कि जब वे आदिवासी ईसाइयों को सूची से हटाने की बात कर रहे हैं तो उन्हें बताना चाहिए कि एसटी टैग देने का आधार कौन सा धर्म होना चाहिए. वे आग से खेल रहे हैं. उन्होंने आदिवासी इलाकों में गीता पाठ अभियान चलाया, जो सरना या सारी धर्मों के खिलाफ है, जिनका हम पालन करते हैं और पेड़ हमारे भगवान हैं.

आदिवासियों के सरना धर्म के अनुयायी बिमल बास्की ने ईसाई आदिवासियों को एसटी सूची से हटाने की मांग करने वाले अभियानों की निंदा की. बास्की ने ऐसे प्रयासों की निंदा की और इसे घनिष्ठ रूप से जुड़े आदिवासी समाज को विभाजित करने का प्रयास करार दिया.

उन्होंने जोर देकर कहा कि सरना धर्म हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है. उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भविष्य के प्रयासों से धर्म के आधार पर एसटी का दर्जा देने से इनकार किया जा सकता है.

साथ ही बास्की ने आदिवासी समाज को निशाना बनाने वाले “विनाशकारी डिजाइनों” के लिए जेएसएम की आलोचना की.

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