मध्य प्रदेश के प्राचीन किले वाले शहर मांडू से लगभग 4 किलोमीटर दूर मालीपुरा गांव के आदिवासी जो कभी थोड़ी-बहुत खेती-किसानी पर निर्भर थे. उन्होंने पर्यटकों के लिए अपने मिट्टी के घर और खेत खोलकर आजीविका का एक नया स्रोत अर्जित किया है.
भील जनजाति के प्रभुत्व वाले मालीपुरा के परिवार विदेशी और घरेलू पर्यटकों के लिए एक पेशेवर मेजबान बन गए हैं. हरे-भरे क्षेत्र और तालाब से घिरे इस गांव ने अपने खेतों और घरों में 6 महीनों में करीब 20 विदेशी पर्यटकों और इतने ही स्थानीय लोगों की मेजबानी की है.
आदिवासियों ने अपने मिट्टी के घरों को होमस्टे में बदल दिया है और घर की महिला सदस्यों द्वारा बनाए गए स्थानीय व्यंजनों – ‘दाल बाटी’, ‘दाल पनिया’, ‘दाल बाफले’ और ‘मक्के की रोटी’ परोसते हैं.
मालीपुरा गांव के एक घर के मालिक किशोर कटारे ने कहा, “मध्य प्रदेश पर्यटन की एक टीम ने हमारे गांव का दौरा किया और हमें होम स्टे प्रोजेक्ट के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि यह कमाई का एक स्रोत कैसे हो सकता है. हम इस अवधारणा से सहमत हुए और एक एनजीओ से ट्रेनिंग ली. तब से हमने एक दर्जन से अधिक पर्यटकों की मेजबानी की है. वे हमारे घर और भोजन की प्रशंसा करते हैं खासकर ‘मक्के की रोटी’ और चटनी की.”
ग्रामीणों ने कहा कि पर्यटक चूल्हे और मिट्टी के बर्तनों में बने पारंपरिक भोजन की मांग करते हैं.
एक अन्य होमस्टे के मालिक दिनेश कटारे ने कहा, “हम पीढ़ियों से यहां हैं लेकिन कभी मेहमानों की मेजबानी नहीं की. यह एक बहुत अच्छा व्यवसाय है और हमें अच्छी आय मिलती है. लोग हमारे आतिथ्य और भोजन को पसंद करते हैं.”
ग्रामीणों ने कहा कि मांडू आने वाले कई पर्यटक प्राकृतिक दृश्यों से आकर्षित होकर गांव में आते हैं और चाय और हल्के जलपान की मांग करते हैं क्योंकि आसपास कोई बड़ा भोजनालय नहीं है.
उन्होंने गांव में और अधिक पर्यटक गतिविधियाँ जोड़ने के लिए नाव चलाना सीखना भी शुरू कर दिया है.
ग्रामीण पर्यटन के हिस्से के रूप में मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड ने स्थानीय हस्तनिर्मित आभूषण और कलात्मक उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए होमस्टे, हस्तशिल्प गांवों, प्रदर्शनी क्षेत्रों और सड़कों को विकसित करने के लिए राज्य भर में विभिन्न समूहों में 100 गांवों की पहचान की है.
बोर्ड ने सीधी, धार, उमरिया, मंडला और डिंडोरी जिलों में जनजातियों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है. बोर्ड पहले ही सीधी जिले के थड़ीपाथर और खोखरा गांवों में 50 से अधिक आदिवासियों को प्रशिक्षित कर चुका है और इसका लक्ष्य मध्य प्रदेश के अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों में लगभग 250 आदिवासियों को प्रशिक्षित करना है.
पर्यटन विभाग के मुताबिक, गांव में दो होमस्टे बनकर तैयार हैं, तीन और तैयार हो रहे हैं. पर्यटन विभाग ने होम स्टे मालिकों के प्रशिक्षण और स्थानीय स्तर पर प्राप्त कच्चे माल, पत्थरों और लकड़ी का उपयोग करके होमस्टे के निर्माण के लिए स्थानीय एनजीओ भागीदारों के साथ सहयोग किया है.