HomeAdivasi Dailyअक्षय तृतीया पर आदिवासियों में बाल विवाह रोकने के लिए गुप्त तंत्र,...

अक्षय तृतीया पर आदिवासियों में बाल विवाह रोकने के लिए गुप्त तंत्र, नज़रिया सही है?

इस मसले को सिर्फ़ क़ानून व्यवस्था या सामााजिक बुराई के तौर पर देखने के नज़रिए से समाधान नहीं निकलेगा. इस मसले का समाधान तभी निकल सकता है जब इस मसले की वजह को समझा जा सके. इसके लिए आदिवासी समुदायों की सामाजिक व्यवस्था और उसमें आ रहे बदलाव की संजीदगी से स्टडी करने की ज़रूरत है.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले डिंडौरी में 14 मई यानि अक्षय तृतीया पर के मौके पर सामूहिक विवाह कार्यक्रम होते हैं. कोविड 19 के दौरान सामूहिक विवाह कार्यक्रम ख़तरनाक साबित हो सकते हैं. लेकिन ज़िला प्रशासन की एक और चिता है. 

आमतौर पर इस तरह के विवाह कार्यक्रम में आदिवासी परिवारों में बाल विवाह की आशंका भी बनी रहती है. पिछले कई सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के मामले सामने आते रहे हैं.

कई मौक़ों पर प्रशासन ने बाल विवाह रोके भी हैं. इस बार भी प्रशासन इस मामले में चौकन्ना है. प्रशासन ने विशेष अवसरों सहित अक्षय तृतीया पर बाल विवाह की निगरानी व रोकथाम के लिए बाल विवाह निषेध टीम का गठन किया गया है.

इस सिलसिले में संबंधित अधिकारियों के मोबाइल नंबर भी जारी किए गए हैं.  बाल विवाह की रोकथाम के लिए जिला स्तर पर कंट्रोल रूम वन स्टाप सेंटर डिंडौरी में बनाया गया है.

इस टीम को ग्रामीण इलाक़ों में बाल विवाह रोकथाम के लिए गुप्त सूचना तंत्र बनाने को कहा गया है. इस काम के लिए आंगनवाड़ी केंद्र, आशा वर्कर एनजीओ

के नेटवर्क को इस काम के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. इस सिलसिले में प्रशासन आदिवासी बस्तियों के बारे में आँकड़े जुटाने की कोशिश भी कर रहा है.

आदिवासियों में बाल विवाह की वजह से महिला स्वास्थ्य और बच्चों की मृत्यु दर भी चिंता का विषय हो जाता है

डिंडोरी ज़िले में कुल आबादी में 64 प्रतिशत आदिवासी हैं. बैगा आदिवासी यहाँ का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है. बैगा को आदिम जनजाति माना जाता है और सरकार ने इस समुदाय को पीवीटीजी यानि बेहद पिछड़े विशेष आदिवासी समुदाय की श्रेणी में रखा है. 

आदिवासी समुदायों में कम उम्र में ही शादी करना सामान्य बात है. पहली नज़र में यह मामला ग़ैर क़ानूनी और सामाजिक बुराई का नज़र आता है. इस लिहाज़ से प्रशासन का कंट्रोल रूम बनाना या फिर एक गुप्त तंत्र स्थापित करना बेशक ज़रूरी लग सकता है.

प्रशासन के इस कदम से बाल विवाह करने वालों में क़ानून का कुछ भय पैदा हो सकता है. इस से आदिवासियों में बाल विवाह की घटनाओं में कमी भी आ सकती है. 

लेकिन इस मसले को सिर्फ़ क़ानून व्यवस्था या सामााजिक बुराई के तौर पर देखने के नज़रिए से समाधान नहीं निकलेगा. इस मसले का समाधान तभी निकल सकता है जब इस मसले की वजह को समझा जा सके.

इसके लिए आदिवासी समुदायों की सामाजिक व्यवस्था और उसमें आ रहे बदलाव की संजीदगी से स्टडी करने की ज़रूरत है.

आदिवासी समुदायों में बाल विवाह अगर समस्या है तो उसका लेना देना उनकी आर्थिक, सामाजिक और उनकी पढ़ाई लिखाई की स्थिति से भी है. 

(इस रिपोर्ट में पहली तस्वीर गोंड आदिवासी समुदाय के एक विवाह की है. यह तस्वीर प्रतीकात्मक है, इस तस्वीर में दुल्हन और दुल्हा बालिग़ हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments