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मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान मारे गए 64 लोगों के शव परिजनों को सौंपे गए

रिपोर्ट के मुताबिक, जातीय संघर्ष के दौरान 175 मौतें हुईं और 169 शवों की पहचान की गई. शीर्ष अदालत ने कहा कि पहचाने गए 169 शवों में से केवल 81 पर पीड़ितों के रिश्तेदारों ने दावा किया था.

मणिपुर में मई में भड़की जातीय हिंसा में मारे गए कुकी और मैतेई समुदायों के 64 लोगों के शव उनके परिजनों को सौंप दिए गए हैं. ये सभी शव मणिपुर के मुर्दाघरों में रखे हुए थे.

मई में मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के दौरान मारे गए इन लोगों में से 60 लोग कुकी समुदाय से थे.

अधिकारियों ने बताया कि चार अन्य शव मैतेई समुदाय के लोगों के हैं जिन्हें चुराचांदपुर के अस्पतालों में रखा गया था. उन्होंने बताया कि शव ‘‘शांतिपूर्वक’’ परिजनों को सौंप दिए गए हैं.

इंफाल में जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान और क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मुर्दाघरों में रखे गए 60 चिन्हित शवों में से 41 चुराचंदपुर में और 19 कांगपोकपी में उनके परिवारों को सौंप दिए गए. वहीं घाटी में चुराचंदपुर जिला अस्पताल के मुर्दाघर से चार शवों का उनके रिश्तेदारों ने दावा किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने हिंसाग्रस्त मणिपुर में जांच, राहत, उपचारात्मक उपायों, मुआवजे और पुनर्वास की जांच के लिए अगस्त में हाई कोर्ट के तीन पूर्व जजों- न्यायमूर्ति गीता मित्तल, न्यायमूर्ति शालिनी जोशी और आशा मेनन की एक समिति बनाई थी.

इसके बाद समिति की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा में मारे गए लोगों को 11 दिसंबर तक दफनाने या दाह-संस्कार करने के निर्देश जारी किए, जिनमें वे 88 लोग भी शामिल हैं, जिनकी पहचान की गई है. लेकिन उनके शवों पर उनके परिवार के सदस्यों ने दावा नहीं किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था, “या तो मृतक के रिश्तेदार शव स्वीकार कर सकते हैं और मणिपुर सरकार द्वारा चिह्नित 9 स्थलों में से किसी पर अंतिम संस्कार कर सकते हैं या राज्य सरकार शवों के अंतिम संस्कार की कार्रवाई नियम अनुसार करे.”

रिपोर्ट के मुताबिक, जातीय संघर्ष के दौरान 175 मौतें हुईं और 169 शवों की पहचान की गई. शीर्ष अदालत ने कहा कि पहचाने गए 169 शवों में से केवल 81 पर पीड़ितों के रिश्तेदारों ने दावा किया था.

समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि 94 लावारिस शवों को राज्य के अधिकारियों द्वारा बनाए गए मुर्दाघरों में संरक्षित किया जा रहा है और कहा गया है कि बड़ी संख्या में शवों को लंबे समय तक संरक्षित करना राज्य के खजाने की बर्बादी है और अंतिम संस्कार करने में विफलता मृतकों के प्रति अनादर दिखाने के समान होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी सहमति व्यक्त की थी कि जिन शवों की पहचान नहीं हुई है या जिन पर दावा नहीं किया गया है, उन्हें मुर्दाघरों में अनिश्चित काल तक रखना उचित नहीं होगा. अज्ञात शवों के लिए अदालत ने राज्य को धार्मिक अनुष्ठानों के साथ दफनाने या दाह संस्कार करने की अनुमति दी थी.

अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल किए जाने के मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में “आदिवासी एकजुटता मार्च” आयोजित किए जाने के बाद 3 मई को मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से 180 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई सौ लोग घायल हो गए.

मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं आदिवासी – नगा और कुकी – 40 फीसजी से कुछ अधिक हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं.  

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