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दार्जिलिंग के 11 समुदायों का आदिवासी दर्जा पाने का सपना होगा पूरा या फिर से बनेगा ये महज़ चुनावी वादा?

पिछले हफ्ते दार्जिलिंग में स्थित गोरखा भारतीय जनजाति महासंघ के सदस्य केंद्रीय आदिवासी मंत्री अर्जुन मुंडा से मिले थे. कई सालों से इनकी ये मांग है की दार्जिलिंग के 11 समुदायों को आदिवासी दर्जा दिया जाए.

देश के पांच राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम, मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव को समाप्त हुए कुछ दिन ही बीते हैं की पार्टियों ने आने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी.

बीजेपी (BJP) द्वारा कई बार पश्चिम बंगाल (West Bengal) में स्थित दार्जिलिंग (Darjeeling) के 11 समुदायों (11 community) को आदिवासी दर्जा (Tribal status) देने का वादा किया गया है.

इसी सिलसिले में 2019 लोकसभा चुनाव के समय पार्टी पर दबाव बनाने के लिए 11 समुदायों के सदस्य दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गए थे.

ये मुद्दा आने वाले लोकसभा चुनाव में एक बड़ा चर्चा का विषय बन सकता है, जिसकी कुछ हद तक शुरूआत भी हो चुकी है.

दरअसल पिछले हफ्ते दार्जिलिंग में स्थित गोरखा भारतीय जनजाति महासंघ के सदस्य केंद्रीय आदिवासी मंत्री अर्जुन मुंडा से मिले थे, जिसका नेतृत्व बीजेपी के सांसद राजू बिस्ता द्वारा किया गया था.

इन 11 समुदायों में भुजेल, गुरुंग, मंगर, नेवार, जोगी, खास, राय, सुनुवर, थामी, यक्का (दीवान) और धिमल शामिल हैं.

इसी संदर्भ में 24 मार्च, 2017 को भारत के रजिस्ट्रार जनरल (ओआरजीआई) के कार्यालय द्वारा जनजातीय मंत्रालय के संयुक्त सचिव को पत्र लिखा गया था. जिसमें ये साफ तौर पर कहा गया था की अगर समुदायों को आदिवासी का दर्जा दिया जाता है तो नेपाली प्रवासियों की संख्या में वृद्धि देखने को मिल सकती है.

इसके अलावा इसमें ये भी लिखा गया था की इन सभी (गोरखा) समुदायों को आदिवासी दर्जा देने का मतलब सिक्किम के लगभग सभी स्थायी निवासी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देना होगा. इससे लेप्चा और भूटिया जैसे अधिक पिछड़े आदिवासी समुदाय वंचित हो जाएंगे.

इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए सदस्यों ने मुंडा को मिटिंग में बताया की 2003 में गोरखा समुदाय के तमांग और लिम्बु को आदिवासी दर्जा दिया गया था, लेकिन दशकीय जनगणना के आंकड़ों में इन्हें नहीं दर्शाया गया.

वहीं मामले की गंभीरता का देखते हुए केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा 2016 में एक समिति का गठन किया था. तब से अब तक तीन बार समिति बन चुकी है.

2019 में इस समिति के अध्यक्ष एम.आर. शेरिंग को बनाया गया था, जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय में संयुक्त सचिव है.

इस समिति द्वारा अंतिम रिपोर्ट भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय को सौंपी गई थी.

पिछले हफ्ते दार्जिलिंग के बीजेपी विधायक, नीरज जिम्बा ने भी केंद्रीय आदिवासी मंत्री से मुलाकात की थी. जिससे साफ तौर पार्टी की 11 समुदायों की मांग पर खास दिलचस्पी दिख रही है.

photo credit:- www.telegraphindia.com

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