HomeAdivasi Dailyअजय कुमार मण्डावी: कैदियों को कलाकार बनाने वाले आदिवासी शिल्पकार

अजय कुमार मण्डावी: कैदियों को कलाकार बनाने वाले आदिवासी शिल्पकार

एक आदिवासी काष्ठ शिल्पकार अजय कुमार मण्डावी (Ajay Kumar Mandavi) को जब कांकेर जेल में बंद कैदियों के साथ काम करने का मौका दिया तो उन्होंने कैदियों को काष्ठ शिल्पकार(wood craft artist) बना दिया. उन्हें साल 2023 में कला के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित भी किया गया है.

किसी को भी अपराध के दुनिया से निकाल कर कुछ काम करके पैसे कमाने का जरिया देना बेहद ही मुश्किल का काम है.

ख़ासतौर से जो हत्या जैसे अपराध करते हुए खतरनाक मुजरिम बन जाए तो उन्हें बदलना बेहद कठिन होता है.

लेकिन यह काम एक आदिवासी काष्ठ शिल्प कलाकार (wood craft artist) अजय कुमार मण्डावी (Ajay Kumar Mandavi) ने कर दिखाया है.

अजय कुमार मण्डावी ने नक्सल गतिविधियों में शामिल जेल में बंद लोगों का ह्रदय परिर्तन कर दिया है. जिन हाथों में एक समय बंदूक होती थी, आज वो कलाकृतियां बना रहे हैं.

अजय कुमार ने उन्हें काष्ठ शिल्प कला सिखाकर पैसे कमाने का साधन दिया है.

उनकी मदद से 400 से भी अधिक कैदियों का जीवन जीने के लिए पैसे कमाने का तरीका बदल गया है.

अजय कुमार मण्डावी को कैदियों को कला सिखाकर पैसे कमाने का जरिया देने के लिए इसी साल यानी साल 2023 में कला के क्षेत्र में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

अजय कुमार मण्डावी

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित अजय कुमार मण्डावी छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले के पास गोविंदपुर गाँव के रहने वाले है.

उनका जन्म 11 अक्टूबर 1967 को एक गोंड आदिवासी परिवार में हुआ. वह कलाकारों और शिल्पकारों के परिवार से ताल्लुक रखते है.

उनके पिता आरपी मण्डावी मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं, उनकी माता जिनका नाम सरोज मण्डावी है, पेंटिंग करती हैं. इसके अलावा उनके भाई विजय मण्डावी एक अभिनेता हैं.

शिल्पकार के परिवार से ताल्लुक रखने वाले अजय कुमार मण्डावी बचपन से ही कला के क्षेत्र में असाधारण प्रतिभा के धनी थे.

उन्होंने कभी भी काष्ठ नक्काशी के लिए कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया. अजय ने अपने पिता से ही काष्ठ शिल्प कला सीखी है.

कैसे बने काष्ठ शिल्पकार?

उन्होंने लकड़ी पर नक्काशी करना गाँव में नदी के किनारे छोटी नाव और लकड़ी के खिलौने बनाते हुए शुरू हुई है.

इसके साथ ही वह भगवान गणेश की छोटी-छोटी मूर्तियां भी बनाते थे. कुछ साल के बाद उन्होंने राष्ट्रगान, दूसरे महत्वपूर्ण प्रतीकों और कुछ पौराणिक चेहरों सहित कई अन्य वस्तुओं की भी लकड़ी पर नक्काशी की.

लेकिन उन्हें उस समय प्रसिद्धि नहीं मिली. लेकिन जब अजय ने कांकेर जेल में बंद कैदियों को प्रशिक्षित करने के लिए कहा गया, तो कांकेर जेल में प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने कुछ उत्कृष्ट कलाकृतियां बनाई.

इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली.

उन्हें कांकेर की ज़िला जेल के लिए लकड़ी के अक्षरों में वंदे मातरम की विशाल कृति बनाने का श्रेय मिला हुआ है.

अजय के मार्गदर्शन में कुल 9 कैदियों ने दिन-रात मेहनत करके 20 फीट चौड़ी और 40 फीट लंबी लकड़ी की तख्ती पर राष्ट्रीय गीत को काष्ठशिल्प के रूप में उकेरा था.

इसके अलावा अजय कुमार मण्डावी ने शांता कला समूह का भी गठन किया है. जिसके ज्यादातर सदस्य अलग-अलग समय में माओवादी गुटों से निकल कर आए थे और कला के माध्यम से समाज के मुख्यधारा में शामिल हुए है.

काम

अजय कुमार मण्डावी ने जेल में बंद कई कैदियों को काष्ठ शिल्प कला(wood craft art) सिखाई है. जिस से कैदियों ने बंदूकें छोड़कर कला के जरिए पैसा कमाना शुरु कर दिया है.

काष्ठ नक्काशी के आदिवासी शिल्पकार अजय मण्डावी, पर्यावरणविद् और समाज सुधारक भी हैं.

काष्ठ शिल्प कला ट्रेनर

अजय कुमार मण्डावी ने बताया है कि जब वह जेल परिसर में प्रवेश करते है. तो वह एक काष्ठ शिल्प कला ट्रेनर (wood art trainer) से अधिक यानी एक सलाहकार(counsellor) बन जाते हैं. क्योंकि कई कैदी अपने अतीत के बारे में पूछे बिना भी अजय को अपने दर्द और समस्याएं बताते हैं.

ऐसा दावा किया जाता है कि उन्हें साल 2010 में जब ज़िले में माओवादी खतरा अपने चरम पर था. तब कांकेर ज़िले के तत्कालीन कलेक्टर ने जेल के कैदियों को काष्ठ (लकड़ी) कला सिखाने के लिए कहा था.

उन्होंने जेल में जिन सैंकड़ों कैदियों के साथ काम किया है उनमें से ज़्यादतर की पृष्ठभूमि माओवादी रही है.

अजय ने कला के माध्यम से कैदियों को हिंसा की निरर्थकता के साथ जीवन को शांतिपूर्ण और पूरी तरह जीने की आवश्यकता को समझाया था.

अजय ने बताया है कि उन्होंने कभी भी कैदियों से उनके अतीत के बारे में नहीं पूछा है. लेकिन अक्सर कैदी अपना दर्द एंव समस्याएं उनके को बताते है और वह उन कैदियों के बात धैर्यपूर्वक सुनते है.

जिसके कारण धीरे-धीरे उनकी भूमिका एक कला ट्रेनर से बढ़कर एक सलाहकार की हो गई है.

उन्होंने यह भी कहा है कि उनको भी कैदियों की काउंसलिंग करना अच्छा लगता है.

अजय कुमार मण्डावी ने यह बताया है कि उन्होंने अब तक कांकेर ज़िले के जेल के लगभग 400 कैदियों को पढ़ाया है.

उन 400 कैदियों में से 250 कैदियों को नक्सली-संबंधित घटनाओं के लिए गिरफ्तार किया गया था. उनमें से लगभग सभी जेल की सजा पूरी करने के बाद जेल से बाहर आ गए हैं.

अजय ने बताया कि सभी छात्र उन्हें प्यार से “गुरुजी” कहते हैं. उनका कहना है कि उन्हें इस बात की खुशी है कि उनके छात्रों ने जेल से रिहा होने के बाद भी काष्ठ कला को छोड़ा नहीं है.

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