HomeAdivasi Dailyमणिपुर हिंसा: दो बार पहले भी ख़ारिज हुई थी मैतई की मांग

मणिपुर हिंसा: दो बार पहले भी ख़ारिज हुई थी मैतई की मांग

मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश के बाद से ही मणिपुर में संघर्ष जारी है. दरअसल हाई कोर्ट नें मैतई समुदाय की मांग को मंजूरी दे दी थी. मैतई समुदाय इसे पहले भी दो बार अपनी मांग रख चुका है. जिसे 1982 और 2001 में ख़ारिज कर दिया गया था.

मणिपुर हाई कोर्ट (Manipur high court) के आदेश के बाद पिछले कई महीनों से मैतई (Meitei) और आदिवासी समुदाय कुकी (kuki) के बीच संघर्ष जारी है.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक इस पूरी हिंसा में अब तक लगभग 180 लोग मारे जा चुके हैं. ना जाने कितने ऐसे मामले रहे होंगे जिन्हें शायाद दर्ज भी ना किया गया हो.

महीनों से चल रही हिंसा के बारे में पूरी दुनिया ने तब जाना जब दो आदिवासी महिलाओं का एक अपमानजनक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था.

आज भी मणिपुर से कुकी या मैतई समुदाय के किसी ना किसी व्यक्ति की मरने की खबरे सामने आती रहती है. अर्थात ये हिंसा अभी तक थमी नहीं है.

मैतई समुदाय की मांग

इसे पहले भी मैतई समुदाय, पिछले चार दशक में दो बार अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किये जाने की मांग कर चुका है.

1982 में गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) के निर्देश पर रजिस्ट्रार जनरल ( Office of the Registrar General of India (ORGI) ने अपनी जांच में कहा की मैतई समुदाय के बारे में मिली जानकारी के मुताबिक उन्हें अनूसूचित जनाजाति की सूचि में शामिल नहीं किया जा सकता.

जिसके लगभग 20 साल बाद सामाजिक न्याय मंत्रालय (Ministry of Social Justice) द्वारा राज्यों और केंद्र सरकार की एससी और एसटी लिस्ट को संशोधित किया जा रहा था. तब मणिपुर सरकार ने फिर से मैतई समाज की मांग को रखा.

जिस पर 3 जनवरी 2001 में मणिपुर के जनजातीय विकास विभाग (Tribal Development Department of Manipur) ने कहा की वह 1982 में रजिस्ट्रार जनरल द्वारा दिए गए सुझावों से सहमत है.

वहीं मणिपुर के मुख्यमंत्री रहें डब्ल्यू नपामाचा सिंह (Chief Minister W. Napamacha Singh) ने भी कहा था की मैतई समुदाय मणिपुर में काफी सालों से प्रभावशाली रहा है और इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है. इसके अलावा उन्होंने बताया की मैतई समुदाय हिंदु समाज के क्षत्रिय हैं.

जब हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश एम.वी. मुरलीधरन (Chief Justice M.V. Muralidharan) की बेंच  के सामने इस संबंध में याचिका की सुनावाई की जा रही थी, तब केंद्र सरकार ने 1982 और 2001 के रिकॉर्ड को सुनवाई के दौरान जमा नहीं कराया था.

27 मार्च 2023 के दिन हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने मैतई समुदाय की इस याचिका को मंजूरी दे दी थी. जिसके बाद मणिपुर में हिंसा फैल गई थी.

अनुसूचित जनजाति सूचि में शामिल होने की प्रक्रिया

अनुसूचित जनजाति सूचि में शामिल होने की प्रकिया बेहद लंबी होती है. अर्थात इसमें काफी समय लग जाता है.

सबसे पहले राज्य या केंद्र सरकार द्वारा प्रस्ताव जारी किया जाता है. इस प्रस्ताव में सबसे पहले रजिस्ट्रार जनरल द्वारा सुझाव दिया जाता है.

रजिस्ट्रार जनरल 1965 के लोकुर समिति द्वारा दिए गए सुझावों के ज़रिए चुनाव करता है. जिसमें विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर किसी और समुदाय के साथ संपर्क ना करना और पिछड़ेपन के संकेत शामिल है.

लोकुर समिति (Lokur Committee) के प्रस्ताव को आज भी माना जा रहा है. हालांकि 2014 में अनुसूचित जनजाति की परिभाषा को बदलने की बात हुई थी.

2022 में सरकार ने इस प्रस्ताव को रोक दिया. इसलिए अभी भी लोकुर समिति द्वारा दिए गए प्रस्ताव को ही स्वीकार किया जाता है.

जहां तक मणिपुर के मैतई समुदाय का सवाल है रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यह कह चुका है कि यह समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किये जाने के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है.

लेकिन मैतई समुदाय मणिपुर की राजनीति में एक प्रभावशाली समूह है. इसलिए इस समुदाय की तरफ से लगातार अदालत और सरकार पर यह दबाव बनाया जाता रहा है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जाए.

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