मिज़ोरम (Mizoram) में विधानसभा की 40 सीटों के लिए एक ही चरण में 7 नवंबर को मतदान होना है. इस बार यहां मुख्यमंत्री जोरमथांगा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ नेशनल फ्रंट (MNF), ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट (ZPM) और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है.
1987 में राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद से मिज़ोरम पारंपरिक रूप से मुकाबला मिज़ो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस के बीच होता रहा है. लेकिन इस बार चीजें बदली हुई नजर आ रहीं हैं.
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में इस राज्य में बड़ा उलटफेर देखने को मिला था. एमएनएफ ने 26 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया, जबकि कांग्रेस वोट शेयर के मामले में मिज़ोरम में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही और 5 सीटें हासिल करने में कामयाब रही. ZPM उम्मीदवारों ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और उन्हें 6 सीटें मिलीं.
ऐसे में मिज़ो नेशनल फ्रंट ने जहां 10 साल से सत्ता में काबिज कांग्रेस को हराकर राज्य की कमान संभाली थी तो वहीं ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट ने विधानसभा चुनावों में प्रमुख विपक्ष के रूप में कांग्रेस की जगह ले ली थी. इस बार भी ऐसा ही उलटफेर होगा या नहीं, ये तो 3 दिसंबर को नतीजे आने पर साफ होगा.
फिलहाल हम आपको बता रहे हैं कि इस चुनाव में कौन-कौन से मुद्दे हावी रहेंगे, कौन सी सीट अहम है और कौन-कौन सी पार्टी मैदान में है.
मतदाताओं के लिए क्या मायने रखता है?
मणिपुर हिंसा का असर मिज़ोरम चुनाव पर पड़ने की संभावना है. मई में हिंसा के बाद राज्य में मणिपुर से लगभग 13 हज़ार लोग शरणार्थी बने हुए हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मिज़ोरम के सीएम ज़ोरमथांगा ने कहा कि वह राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा नहीं करेंगे. पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में ज़ोरमथांगा ने कहा था कि पीएम मोदी अगर राज्य के दौरे पर आएंगे तो मैं उनके साथ मंच साझा नहीं करूंगा.
सीएम ज़ोरमथांगा मणिपुर हिंसा की शुरुआत से ही कुकी शरणार्थियों के समर्थन में खड़े रहे हैं.
इस बीच भाजपा की नजर राज्य के दक्षिणी हिस्से में रहने वाले भाषाई अल्पसंख्यकों जैसे चकमा, ब्रू, मारा और लाई समुदाय के लोगों के वोटों पर है.
2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में 39 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी ने इस बार 23 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इसके अलावा भगवा पार्टी ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण और असम के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद के समाधान समेत अन्य का वादा किया है.
बीजेपी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वामलालमुआका कहते हैं कि हमारा मकसद इस राज्य में विकास की गति को तेज़ कर इसे राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करना है.
वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लालसावता ने दावा किया है कि कांग्रेस मिज़ोरम में अगली सरकार बनाएगी और कहा कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो 1 लाख लोगों के लिए नौकरियां पैदा करेगी. कांग्रेस ने प्रत्येक परिवार को 15 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करने का भी वादा किया है.
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी बीते हफ्ते मिज़ोरम का दो-दिवसीय दौरा कर चुके हैं. उन्होंने इस दौरान कहा कि पार्टी अबकी यहां सत्ता हासिल करने के प्रति बेहद गंभीर है.
मिज़ो राष्ट्रवाद एक और मुद्दा है जो सत्तारूढ़ दल के पक्ष में काम कर सकता है. मिज़ोरम और असम के बीच सीमा विवाद एक लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा है. जुलाई 2021 में असम और मिज़ोरम के पुलिस बलों के बीच हिंसक झड़प में 6 लोगों की जान चली गई थी.
कुल मिलाकर चुनाव प्रचार के दौरान सीमा पार म्यांमार और बांग्लादेश के अलावा पड़ोसी मणिपुर से भारी तादाद में शरणार्थियों का आना, मणिपुर हिंसा और असम के साथ सीमा विवाद प्रमुख चुनावी मुद्दे के तौर पर उभरे हैं.
इन विधानसभा सीटों पर रहेगी नजर
1. आइजोल पूर्व-I: मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने 2018 के चुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी. इस बार फिर से वो आइजोल पूर्व-I से ताल ठोक रहे हैं. ज़ोरम पीपल्स मूवमेंट ने उपाध्यक्ष लालथनसांगा को यहां से उतारा है, जबकि कांग्रेस ने लालसांगलुरा राल्टे को टिकट दिया है.
2. सेरछिप: जेडपीएम नेता और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालदुहोमा इस सीट से खड़े हैं. वहीं एमएनएफ से नवागंतुक जे माल्सावमज़ुअल वानचावंग और कांग्रेस से आर वानलालट्लुआंगा उम्मीदवार हैं.
3. हच्छेक: त्रिपुरा सीमा के पास ममित जिले में आने वाली हच्छेक सीट से कांग्रेस विधायक लालरिंदिका राल्टे मैदान में हैं. उनके खिलाफ एमएनएफ के वर्तमान राज्य खेल मंत्री रॉबर्ट रोमाविया रॉयटे खड़े हैं.
4. आइजोल पश्चिम-III: आइजोल पश्चिम-III सीट पर एमएनएफ, जेडपीएम और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है. जेडपीएम के विधायक वीएल जैथनजमा को इस बार कांग्रेस अध्यक्ष लालसावता और एमएनएफ उम्मीदवार के. सावमवेला चुनौती दे रहे हैं.