महाराष्ट्र (Maharashtra) के पुणे (Pune) में स्थित सात सरकारी हॉस्टल (Govt hostel) में लगभग 2000 आदिवासी बच्चें रहते हैं, जो या तो अलग अलग विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं या फिर किसी कॉलेज के छात्र-छात्रा हैं. लेकिन अब इनकी पढ़ाई में पैसों की कमी (finance requirement) सबसे बड़ी रुकावट बन गई है.
इन सभी छात्र-छात्राओं की पढ़ाई और अन्य खर्चो के लिए सरकार की डीबीटी योजना (DBT yojna) के तहत इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. लेकिन अब इन्हें ये खर्च नहीं मिल रहा है.
दरअसल अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के 2018 के रेसोलुशन के अनुसार डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) स्किम में ये प्रावधान दिया गया है की अगले सेशन का पैसा उन्हें सेशन के शुरू होने से एक महीने पहले ही मिल जाए.
जून से मई तक इस शैक्षणिक वर्ष को चार भागों में विभाजित किया गया है, जिन्हें चक्र कहा जाता है और अगला चक्र शुरू होने से पहले ही सभी छात्र-छात्राओं को पैसे एक महीने पहले ही मिल जाते हैं.
मसला ये है कि दिसंबर से फरवरी तक शुरू होने वाले तीसरे चक्र के राशि इन्हें नवंबर के दूसरे सप्ताह तक मिल जानी चाहिए थी लेकिन एक बार फिर पैसे मिलने में अत्याधिक देरी हुई है.
पैसे मिलने में एक महीने की ये देरी आदिवासी छात्र-छात्राओं के लिए एक बहुत बड़ी दिक्कत बन गई है. इस देरी की वज़ह से इन्हें मजबूरन हॉस्टल छोड़ना पड़ रहा है और तबतक ये सभी आदिवासी बच्चे अपने घर रहेगें, जबतक इन्हें डीबीटी के अंतर्गत तय राशि मिल नहीं जाती.
इस डीबीटी स्किम के अतंर्गत इन्हें हर तीन महीने में 12,900 रूपये मिलते हैं, ये पैसे इन छात्र-छात्राओं के लिए पुणे जैसे शहर में रहने का एकमात्र ज़ारिया है.
इन 12,900 को भी दो भागों में बांटा गया है, जिसमें से 10,500 खाने-पीने के खर्चे के लिए और 2400 अन्य खर्चो के लिए दिए जाते हैं.
इसके अलावा स्टेशनिरी के खर्चें के लिए 6000 रूपये इंजिनिरिंग के छात्रों को दिए जाता है और 4000 रूपयें मेडिकल के छात्रों को मिलते हैं, ये पैसा इन्हें साल में एक बार वितरित होता है.
इसी सिलसिले में हॉस्टल के एक छात्र विशाल मेश्राम बताते हैं कि डीबीटी में देरी किसी ओर छात्र या छात्रा के लिए इतनी दिक्कत तो नहीं करता है लेकिन मेरे समुदाय के बच्चों और मेरे लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाता है.
विशाल गढ़चिरौली की परधान जनजाति से हैं और फर्ग्यूसन कॉलेज (एफसी) में अर्थशास्त्र बीए के तीसरे वर्ष के छात्र है.
विशाल बताते हैं कि उनका परिवार उसके खर्चे नहीं उठा सकता. वे कई बार प्रतियोगयता में हिस्सा लेते हैं और जीत जाने पर उन पैसों से अपना खर्चा चलाते हैं.
विशाल ने आगे कहा, “ डीबीटी में ये देरी आदिवासियों के जीवन में आग में घी डालने जैसा काम कर रही है. पुणे जैसे शहर में हर दिन मंहगाई आसमान छू रही है. यहां के भोजन, परिवहन, पढ़ाई के लिए सामान और अन्य जरूरतों के खर्चो को पूरा करना बेहद चुनौतीपूर्ण वाला काम है.”
इसके अलावा विशाल ने ये भी आरोप लगाए कि उन्हें योजना के अंतर्गत तय राशि से भी कम पैसा मिल रहा है.
विशाल ने कहा कि मैं कोरेगांव पार्क से अपने कॉलेज तक बस से यात्रा करता हूं, जिसका मासिक खर्च 750 रुपये है. स्टेशनरी के लिए 4,500 रुपये निश्चित किए गए है लेकिन मुझे लगातार ये राशि भी कम मिलती है.
हमारी प्रोजेक्ट रिपोर्ट और असाइनमेंट में फील्डवर्क महत्वपूर्ण है. लेकिन फील्डवर्क के दौरान पूरा खर्च दिखाने के बावजूद हमें केवल 1,000 रुपये की प्रतिपूर्ति मिलती है.
वहीं राशि के वितरण की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए केशव नगर हॉस्टल के वार्डन मनोज शिवपुरकर ने कहा कि पुणे शहर में कुल सात आदिवासी हॉस्टल हैं, जिनमें लड़कों के लिए चार और लड़कियों के लिए तीन हॉस्टल मौजूद है.
इनमें से लगभग 20 प्रतिशत छात्रों को राशि मिल चुकी है, जबकि शेष 80 प्रतिशत को जल्द ही राशि वितरित की जाएगी.
इसके अलावा एक आदिवासी लड़की, जो गोंड गोवारी जनजाति से है और एफसी कॉलेज में पढ़ रही है.
वो बताती है कि वह अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही है. लेकिन शहर में जीवनयापन के लिए पैसों की कमी के कारण वह अपने गांव लौट रही है.
आदिवासी छात्र-छात्राओं ने ये भी आरोप लगाया है कि वे कई समय से हॉस्टल में सोने के लिए बेड की मांग कर रहे हैं लेकिन उन्हें ये अभी उपलब्ध नहीं करवाए गए.
जिसके कारण इन सभी को मजबूरन ज़मीन पर ही सोना पड़ रहा है. वहीं पैसों की कमी के कारण आदिवासी बच्चें अपने खाने में कटौती कर रहे हैं. क्योंकि इन पर अन्य सभी खर्चे अत्याधिक भारी पड़ रहे हैं.
इस मामले में प्रतिक्रिया देते हुए पुणे के आदिवासी विकास आयुक्तालय और सहायक परियोजना अधिकारी (एपीओ) ने कहा,“राज्य में डीबीटी की शुरूआत के बाद से तय राशि में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है.
हालांकि, हमने राशि को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें भोजन खर्चे के लिए प्रति माह 5,000 रुपये और अन्य खर्चो के लिए 1,000 रुपये आवंटित किए गए हैं.”
इसके अलावा एपीओ से मिली जानकारी के अनुसार इन चार हॉस्टल में कुल 1,510 लड़के हैं, जिनमें से 1,492 लड़के योजना के लाभार्थी है.
वहीं लगभग 679 को सफलतापूर्वक धनराशि प्राप्त हो चुकी है, जबकि 806 लड़कों को अभी राशि मिलना बाकी हैं.
लड़कियों के तीन हॉस्टल में कुल 525 छात्राएं है , जिनमें से 485 छात्राएं योजना के लाभार्थी है. अभी तक 194 लड़कियों को धनराशि प्राप्त हो चुकी है, जबकि 257 को अभी भी वितरित किया जाना बाकी है. धनराशि में देरी का कारण आधिकारियों ने पैसों की कमी और तकनीकी दिक्कत बताया है.
डीबीटी योजना के तहत पैसों की ये कमी सिर्फ सरकारी हॉस्टल में ही नहीं बल्कि राज्य के आदिवासी आश्रम स्कूलों में भी देखने को मिली है.
जहां डीबीटी के तहत पैसा न मिलने से आदिवासी बच्चे सर्दी में बिना स्वेटर के स्कूल जाने को मजबूर है.
जिससे ये तो साफ हो जाता है की राज्य सरकार को स्कूल और हॉस्टल में डीबीटी के तहत तय धनराशि को वितरित करने की प्रक्रिया में और सुधार की आवश्यकता है.