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महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कोलम आदिवासी सामाजिक और आर्थिक शोषण से जूझ रहे हैं

कोलम आदिवासियों को महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में पीवीटीजी की श्रेणी में रखा गया है. इस समुदाय में बुनियादी सामाजिक बदलाव देखे गए हैं जिनसे महिलाओं की स्थिति ख़राब हुई है.

कोलम आदिवासियों (Kolam tribe) को कोलंबोली, कुल्मे और कोलमी के नाम से भी जाना जाता है. यह आदिवासी महाराष्ट्र (Tribes of Maharashtra), मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश (Tribes of Andhra Pradesh) में रहते हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार कोलम आदिवासियों की कुल जनसंख्या 2,39,583 हैं.

कोलम जनजाति अलग-अलग कुलों में विभाजित है. मसलन चल देवे, पच देवे, साहा देवे और सत देवे. कोलम आदिवासी अपने कुलों के नाम को उपनाम के रूप में उपयोग करते हैं.

कोलम आदिवासियों में एक ही कुल के बीच विवाह की अनुमति नहीं होती है. इनका समाज पितृसत्तात्मक होता है. इसका अर्थ है की कोलम समाज में सभी छोटे-बड़े फैसले पुरूषों द्वारा लिए जाते हैं. इसके अलावा परिवार का प्रमुख भी पुरूष ही होता है.

यह आदिवासी मराठी, गोंडी और तेलुगु भाषा बोलते हैं. इसके अलावा लिपि में देवनागरी का उपयोग करते हैं.

इन आदिवासियों को महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश राज्य में विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति (पीवीटीजी )की श्रेणी में रखा गया है. 2018 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा कातकरी, कोलम और मारिया गोंड को राज्य की पीवीटीजी श्रेणी में रखा गया था.

पीवीटीजी समुदायों के लिए सरकार द्वारा विशेष योजनाएं बनाई जाती है. पीवीटीजी की श्रेणी में उन समुदायों को रखा जाता है, जो खेती में पांरपरिक तकनीक का इस्तेमाल करते हो, आर्थिक रूप से पिछड़े हो और जनसंख्या घट रही हो.

कुंवारी माताएं और सामाजिक बदलाव

महाराष्ट्र के कोलम आदिवासी समूह में बिना शादी के लड़कियों के मां बनने पर कई स्टडी मौजूद हैं. इन अध्ययनो के मुताबिक़ महाराष्ट्र की कई तहसीलों में कोलम लड़कियां बिना शादी के ही मां बन जाती हैं.

इस सिलसिले में यह बताया जाता है कि आमतौर पर ये लड़कियाँ आस-पास के ग़ैर आदिवासी पुरूषों के शोषण का शिकार होती हैं. ये पुरुष अक्सर आदिवासी समुदाय के मुखिया को कुछ पैसे दे कर बच जाते हैं.

कोलम आदिवासी एक पीवीटीजी (आदिम जनजाति) समुदाय है. यह समुदाय आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर काफ़ी कमजोर है. इसलिए इस समुदाय में गर्भ निरोधक उपायों पर जागरुकता नहीं के बराबर मिलती है.

कोलम समुदाय मूल रूप से मातृ सत्तात्मक समाज माना जाता है. लेकिन अन्य समुदायों के संपर्क से इस समाज में भी काफी सामाजिक बदलाव आया है.

एक वक्त में किसी बच्चे को उसके पिता का नाम नहीं बताना पड़ता था. लेकिन अब इस समुदाय में अविवाहित मां को बहिष्कृत कर दिया जाता है.

कोलम आदिवासियों का रहन सहन

कोलम आदिवासी मुख्य ग्राम से कुछ दूरी पर टोला बनाकर रहते हैं. इस टोला के चारों ओर कृषि भूमि होती है. गाँव के मध्य में पूर्वोन्मुख चवडी (चौरी) होता है. यह एक तरह का बैठक घर होता है.

जहां गाँव के सभी पुरूष इकट्ठा होकर, गाँव में होने वाली परेशानियां और समस्याएं सुलझाते हैं.

कोलम आदिवासियों में अधिकतर घर बांस के बने होते हैं.

कोलम आदिवासियों का खान-पान और रोज़गार

कोलम आदिवासियों में ज्यादातर ज्वार की रोटी, उड़द, मूंग, तुवर, बरवटी की दाल, मौसमी सब्जी खाते हैं. इसके अलावा जंगली कंदमूल, फल और भाजी और मछली, मुर्गी और बकरा का मांस भी खाया जाता हैं.

यह आदिवासी ज्यादातर अपने जीवन व्यापन के लिए खेत मज़दूरी पर निर्भर है. इस समुदाय के लोग खेती भी करते हैं. खेती में ज्वार, तुवर, उड़द, मूंग, तिल जैसे फसलों की खेती की जाती है.

यह देखा गया है कि ग़ैर आदिवासी इन आदिवासियों की ज़मीन हड़प लेते हैं. अक्सर पैसे की ज़रूरत के लिए ये आदिवासी अपनी ज़मीन कुछ साल के लिए पट्टे पर देते हैं. लेकिन दबंग लोग लीज़ खत्म होने के बाद भी इनकी ज़मीन नहीं लौटाते हैं.

चंद्रपुर ज़िले के कम से कम 82 गाँवों में ऐसे मामले मीडिया में रिपोर्ट हुए थे.

कोलम आदिवासियों में शादी

कोलम समाज में विवाह के लिए मामा या बुआ की लड़की को प्राथमिकता दी जाती है. कोलम आदिवासियों में लड़को की शादी 17 से 20 वर्ष और लड़कियों की शादी 14 से 18 वर्ष में की जाती है.

इन आदिवासियों में विधवा और तलाकशुदा का पुनर्विवाह मान्य होता है. इसके अलावा विधवा की शादी माता-पिता की अनुमति के बाद ही होती है है. लेकिन अगर विधवा स्त्री के माता-पिता अनुमति ना दें, तो लड़की अपने सर पर पानी का घड़ा लेकर अपने मनपंसद पति के घर चले जाती है.  

जन्म और मृत्यु

जन्म – कोलम आदिवासियों में शिशु पैदा होने के पांच दिन बाद शुध्दिकरण क्रिया की जाती है. इसके अलावा बच्चा होने के बाद माता को तकात के लिए जड़ी-बुटी, गुड़ और सोंठ आदि खिलाते हैं.

वहीं शिशु होने के पैतालीसवे दिन मुण्डन तथा नामकरण किया जाता है.

मृत्यु – कोलम आदिवासियों में मृत्यु के बाद शव को दफनाया जाता है. इसके अलावा मृत्यु के दसवें दिन बाद सूतक माना जाता है. इस दिन नदी या तालाब में मुर्गा की बली देकर स्नान किया जाता है और गाँव के सभी लोगों को मृत्युभोज करवाया जाता है.

कोलम आदिवासियों के नाच-गाने और त्योहार

कोलम आदिवासियों के प्रमुख त्योहारों में साती(गांव बंधोनी), नववर्ष (कोरार), उराभीम पूजा (बुमी) दीवाली, सिमगा (होली) और मुरी शामिल हैं.

महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में रहने वाले कोलम आदिवासियों में डंडोरी नृत्य प्रमुख है, इसे गुसदी और डिमसा कहा जाता है.

विवाह के अवसर पर महिलाएं नृत्य करती हैं और पुरूष वाद्य यंत्र जैसे टापरा (ढोल) और बांस (बांसुरी) बजाते हैं.

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