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2019 के बाद से आदिवासियों के खिलाफ अपराध 33% बढ़ गए हैं – NCRB रिपोर्ट

आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत जटिल है. जागृत आदिवासी दलित संगठन के नितिन का कहना है कि हालांकि अपराधों का पंजीकरण बढ़ा है लेकिन स्थिति आसान नहीं है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की ‘क्राइम इन इंडिया 2022’ (Crime In India 2022) रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले चार वर्षों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत गैर-आदिवासियों द्वारा अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराधों में एक तिहाई की वृद्धि हुई है.

आदिवासियों के खिलाफ सबसे अधिक अपराध वाले राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा शीर्ष पर हैं. तीन राज्यों में वृद्धि की दर राष्ट्रीय औसत से 33 प्रतिशत अधिक थी.

जागृत आदिवासी दलित संगठन के एक कार्यकर्ता नितिन, आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में वास्तविक और पुलिस द्वारा मामलों के पंजीकरण में वृद्धि दोनों को इस बढ़ोत्तरी का कारण मानते हैं.

हालांकि, उन्होंने कहा कि यह एक स्तरित स्थिति यानि इसके कई कारण हो सकते हैं क्योंकि पुलिस को मामले दर्ज करने के लिए मजबूर करने के लिए आदिवासियों को स्थानों पर खुद को संगठित करना पड़ता है.

आदिवासियों के खिलाफ अपराध संख्या में

इस मामले में आधार साल 2019 में एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामलों की संख्या 7,655 थी. साल 2022 में यह 32.91 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 10,055 हो गई.

इसी अवधि में मध्य प्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि 54.9 प्रतिशत रही. राज्य में साल 2019 के अपराध के 1,922 मामलों से बढ़कर 2022 में 2,979 हो गए. राजस्थान में अपराध के मामलों की वृद्धि 40.28 प्रतिशत रही, जहां मामले 2019 में 1,797 से बढ़कर 2022 में 2,521 हो गए. ओडिशा में 2019 में 576 मामले सामने आए थे जो 2022 में बढ़कर 773 मामले हो गए.

मध्य प्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ अपराध

आदिवासियों के खिलाफ अपराध के अधिक मामले दर्ज किए जा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत जटिल है. जागृत आदिवासी दलित संगठन के नितिन का कहना है कि हालांकि अपराधों का पंजीकरण बढ़ा है लेकिन स्थिति आसान नहीं है.

नितिन का कहना है, “यह ट्रेंड पूरे मध्य प्रदेश के लिए सही नहीं है. पश्चिमी मध्य प्रदेश में आदिवासियों को अपनी एजेंसी पर जोर देने के लिए खुद को संगठित करना होगा और अपना विरोध दर्ज कराना होगा. इससे सरकार पर दबाव बनता है और पुलिस को मामले दर्ज करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.”

नितिन आगे कहते हैं कि आदिवासी पिछले कुछ सालों में राजनीतिक तौर पर सक्रिय रहे हैं. वह कहते हैं कि ऐसे भी उदाहरण हैं जहां राजनीतिक दलों ने यह सुनिश्चित किया है कि आदिवासियों के खिलाफ अपराध कम से कम सार्वजनिक धारणा के दृष्टिकोण से बख्शे नहीं जाएं.

जुलाई में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीधी जिले में एक आदिवासी व्यक्ति पर पेशाब करने वाले एक उच्च जाति के शख्स पर कड़ा प्रहार किया था.

प्रवेश शुक्ला को आदिवासी शख्स पर पेशाब करते हुए एक वीडियो में कैद किया गया था जिसके कारण उनकी गिरफ्तारी हुई और अधिकारियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लागू किया. जहां किसी आरोपी को बिना मुकदमे के एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है और अन्य आरोपों के अलावा एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम भी लागू किया जा सकता है.

हालांकि, नितिन इस बात पर जोर देते हैं कि राज्य के खिलाफ भूमि संघर्ष के कई उदाहरण हैं जहां आमतौर पर मामले दर्ज नहीं होते हैं.

राजस्थान में आदिवासियों के खिलाफ अपराध

एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजस्थान में एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत साल 2019 में 1797 मामले, 2020 में 1878, 2021 में 2121 और साल 2022 में 2521 मामले दर्ज किए गए. आधार वर्ष से 2022 तक कुल वृद्धि 40.28 प्रतिशत थी.

राजस्थान स्थित दलितों और आदिवासियों के अधिकारों पर काम करने वाले और ट्राइबल आर्मी के संस्थापक हंसराज मीना कहते हैं कि कई हस्तक्षेपों के बावजूद 10-15 फीसदी मामले अभी भी दर्ज नहीं हो रहे हैं.

हालांकि, जब उनसे एनसीआरबी डेटा की व्याख्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अधिक मामलों का मतलब यह भी है कि पुलिस मध्य प्रदेश और राजस्थान की तरह अधिक से अधिक मामले दर्ज कर रही है, जहां पिछले पांच वर्षों में अलग-अलग सरकारें देखी गईं.

मीना कहते हैं कि हाशिये पर मौजूद लोगों को दबाने की सामंती मानसिकता सभी सरकारों में बनी हुई है और अहम बात यह है कि कई महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोग काबिज हैं. राजस्थान में तथाकथित शाही वंश हाशिए के लोगों को अपने बराबर के रूप में स्वीकार नहीं करता है.

मीना इस बात पर जोर देते हैं कि मामले दर्ज करना ही एकमात्र उद्देश्य नहीं रहना चाहिए. मीना का कहना है कि न्याय पाने के लिए प्रशासनिक पदों को आदिवासियों, दलितों या अल्पसंख्यकों से भरने पर ध्यान केंद्रित रहना चाहिए.

उन्होंने कहा कि एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की ज़रूरत है ताकि पीड़ितों को सभी कानूनी मदद मिल सके और अभियोजन पक्ष, न्यायाधीश उन मामलों को बिना किसी पूर्वाग्रह के देखें.

ओडिशा में आदिवासियों के खिलाफ अपराध

ओडिशा में 2022 में एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराध के 773 मामले थे, जबकि 2021 में 676 मामले थे; 2020 में 624 और 2019 में 576 मामले दर्ज किए गए थे.

आंचलिक सुरक्षा समिति के अध्यक्ष डेम ओराम का कहना है कि ओडिशा के मामले जमीनी हकीकत नहीं दर्शाते हैं.

सुंदरगढ़ जिले के बंडामुंडा के ओरम कहते हैं कि पांच साल पहले की तुलना में अब कुछ घटनाएं रिपोर्ट की जा रही हैं. हालांकि, जमीनी स्थिति एनसीआरबी रिकॉर्ड से बहुत अलग है क्योंकि कई मामले दर्ज ही नहीं हो पाते हैं और मामलों को दर्ज कराने के लिए बहुत अधिक प्रभाव की आवश्यकता होती है.

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