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ओडिशा: आदिवासियों के दमन के खिलाफ वनाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एकजुटता का आह्वान

ओडिशा (odisha) में 22 आदिवासी प्रदर्शन कार्यकाताओं पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) और शस्त्र अधिनियम के तहत आरोप लगाते हुए गिरफ़्तार किया गया है. इसके अलावा 160 आदिवासियों पर भी सामान्य आरोप लगाए गए है.

ओडिशा के नियमगिरी और काशीपुर में 22 आदिवासी प्रदर्शन कार्यकाताओं पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) और शस्त्र अधिनियम के तहत आरोप लगाते हुए गिरफ़्तार किया गया है. इसके अलावा 160 आदिवासियों को इसी तरह के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है.

दरअसल, 2023 में वन सरंक्षण अधिनियम में बदलाव किए गए. जिसके तहत ग्राम सभा से सहमति लेना अनिवार्य नहीं है. इसके अलावा इस पूरे अधिनियम के तहत वनों के निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. साथ ही राज्य सरकार के अधिकार को कम करके केंद्र को अधिक शक्तियां दी गई है.

जिसके फलस्वरूप रायगढ़ और कालाहांडी में फैले नियमगिरि और सिजिमाली पहाड़ियों में अत्याधिक खनन देखने को मिला.

यूके की सैटेलाइट कंपनी वेदांता ने निकटवर्ती, सिजिमाली और कुटुरमाली पर्वत श्रंखला में खनन का काम किया था. इसके साथ ही माइथ्री इंफ्राटेक कंपनी (वेदांता की एक उप-कंपनी) द्वारा भी सिजिमाली पर्वत श्रृंखला में प्रवेश करने की कोशिश कर रही है.

खनन से इन ज़गहों को कई नुकसान पहुंच सकता है. साथ ही यहां पर रहने वाले आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन भी करवाया जा सकता है. इसी डर से आदिवासियों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन करने का फैसला किया.

पहली घटना

वेदांता और माईथ्री कंपना द्वारा किए जा रहे खनन के खिलाफ रायगढ़ ज़िले के काशीपुर ब्लॉक में 250 आदिवासियों ने इकट्ठा होकर प्रदर्शन किया था.
ये सभी आदिवासी कंपनी के लोगों के साथ पुलिस बल को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक रहे थे. जिसके बाद पुलिस ने 200 लोगों पर रिपोर्ट दर्ज की.

इसके अलावा 12 अगस्त को कंपनी के कुछ सदस्यों ने सिजिमोली पहाड़ियो पर पेड़ काटने और सर्वे करना शुरू किया था. जिसके दौरान वहां मौजूद आदिवासियों ने उन पर पथराव किया.

जितनी बार भी आदिवासियों ने कंपनी की सिजिमोली में प्रवेश का विरोध किया उतनी ही बार यानी 5, 6, 8, 12 और 13 अगस्त को आदिवासियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई.

अब तक इस पूरे मामलें में 22 आदिवासियों की गिरफ़्तारी हो चुकी है. हैरानी की बात ये है की सभी आदिवासियों को कई समय तक जेल में रखा जाता है. जबकि कानून के अनुसार गिरफ़्तारी के बाद 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट अदालत में पेश करना होता है. जो इन 22 आदिवासियों के साथ नहीं किया गया.

दूसरी घटना

दूसरी घटना 5 अगस्त की है. इस घटना में लखपदर के रहने वाले एनएसएस के तीन सदस्य द्रेंजू, कृष्णा और बारी सिकोका पर पुलिस ने अपनी मनमानी की थी.
विश्व आदिवासी दिवस की व्यवस्था करने के लिए कृष्णा और बारी कालाहांडी ज़िले से लाजीगढ़ गए थे. जहां से उनको पुलिस ने खदेड़ दिया.

जिसके बाद 6 अगस्त को लखपदर गांव के लोगों ने कल्याणसिंहपुर पहुंच कर प्रदर्शन किया. लेकिन जब वो प्रदर्शन करके लौट रहे थे तभी कोंध समाज के आदिवासी नेता द्रेंज सिकोका का पुलिस ने अपहरण किया.

हालांकि इसके बाद आदिवासी डरे नहीं बल्कि उन्होंने पुलिस अपहरण को लेकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. इसके साथ ही 9 लोगों पर अब तक एफआईआर दर्ज करवाई जा चुकी है

एफआईआर में आदिवासियों पर आरोप लगया है की उनके पास हथियार थे और इसी हथियार से आदिवासियों ने पुलिस पर हमला किया था. कोंध आदिवासियों के समाज में कुल्हाड़ी का सांस्कृतिक महत्व है. इसे हर कोंध आदिवासी द्वारा ले जाया जाता है. इसलिए पुलिस के आरोप पर संदेह किया जा रहा है. साथ ही उनके पास ना ही कोई पुख्ता सबूत है की आदिवासी प्रदर्शन के समय हिंसक थे.

मूलनिवासी समाजसेवक संघ (MSS) ने की प्रेस कांफ्रेंस

वहीं मूलनिवासी समाजसेवक संघ (MSS) ने वन सरक्षंण अधिनियम में हो रहे बदलाव को देखते हुए प्रेस कांफ्रेंस की थी. इसमें वकील कॉलिन गोंज़ाल्वेस, दिल्ली विश्वविद्यालय के फैकल्टी सदस्य जितेंद्र मीणा और एमएसएस नेता मधु शामिल थे.

गोंज़ाल्वेस ने बताया कि पूरे देश में एक-चौथाई वन क्षेत्र ‘अधिसूचित वन’ है और तीन-चौथाई ‘गैर-अधिसूचित’ वन है. पुराने कानून के मुताबिक अधिसूचित या गैर-अधिसूचित वन के किसी भी क्षेत्र के पट्टे लेने के लिए ग्रामसभा की सहमति अनिवार्य होती थी. लेकिन संशोधन के बाद गैर-अधिसूचित क्षेत्रों के लिए इस आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया.

वहीं मधु ने आरोप लगाते हुए कहा ओडिशा सरकार ने फरवरी में ग्रामसभा की सहमति के बिना अवैध रूप से खनन के लिए पट्टे दिए थे, शायद उन्हें ये पता था कि केंद्र जल्द ही अधिनियम में संशोधन करेगा। उन्होंने ये भी बताया की इन दो खनन परियोजनाओं से 180 गांवों और 2 लाख आदिवासी लोगों का विस्थापन हो सकता है.

ओडिशा में हो रहे निरन्तर दमन और अत्याचार पर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने भी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए एक महीने में 22 खनन विरोधी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की घोर निंदा की है. इसे लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा जारी साझा बयान में आंदोलन के सभी गिरफ्तार साथियों को तत्काल रिहा करने, सारे एफआईआर रद्द करने व स्थानीय निवासियों की बगैर सहमति खनन कंपनियों के प्रवेश पर रोक लगाने की माँग की गई है.

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