HomeAdivasi Dailyचेरुवयल रमन: बीजों के पद्म श्री पिता, देसी बीजों को बचाने में...

चेरुवयल रमन: बीजों के पद्म श्री पिता, देसी बीजों को बचाने में जुटे हैं

चेरुवयल रमन(Cheruvayal Raman) कहते हैं कि वो जो बीज संरक्षित करते हैं वे बेचे नहीं जा सकते हैं. क्योंकि वे उन्हें वस्तु नहीं प्रेम और देखभाल की भावना मानते हैं. वे सालों से भारत के परंपरागत धान के बीजों की विविधता को बचाने का काम कर रहे हैं.

देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के साथ साथ फ़सलों की विविधता को बचाना एक बड़ी चुनौती है. यह माना जा रहा है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए नए बीजों का इस्तेमाल इंसान और ज़मीन दोनों की सेहत को बिगाड़ रहा है.

इस दिशा में 72 वर्षीय आदिवासी किसान चेरुवयल रमन(Cheruvayal Raman) ने बेहतरीन काम किया है. उन्होंने धान, मसालों और कई जड़ी-बूटियों को संरक्षित किया है.

उनके इस काम के लिए उन्हें इस साल यानि 2023 का पद्म श्री सम्मान दिया गया है.

वह अब तक कम से कम 50 से अधिक किस्मों के धान की खेती करने के साथ ही इन धानों को संरक्षित भी कर चुके है.

चेरुवयल रमन

केरल के वायनाड ज़िले में रहने वाले चेरुवयल रमन को खेती के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किया गया है.

स्थानीय लोग चेरुवयल को ‘विताचन’ (Vithachan) के रूप में जानते है. जिसका मतलब बीजों का पिता है.

ऐसा दावा किया जाता है कि चेरुवयल रमन कुरचिया आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते है.

72 वर्षीय आदिवासी किसान चेरुवयल रमन ने 55 किस्मों के धानों को देसी तरीके से उगाए जाने का दावा किया है.

वह इन 55 तरह के धानों की खेती करने के लिए किसी भी तरीके के रासायनिक खाद(chemical fertilizer) का प्रयोग नहीं करते है.

चेरुवयल रमन को वनस्पति विज्ञान या कृषि विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं था. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने वायनाड ज़िले के कम्मना(Kammana) में अपने छोटे से खेत में 55 से अधिक किस्मों के धानों को संरक्षित किया हुआ है.

ऐसा दावा किया जाता है कि वह चावलों को देखकर, सूंघकर और हाथों से छूकर बता सकते हैं कि चावल किस प्रजाति या किस्म की है.

ऐसा वह इसलिए कर पाते है क्योंकि उन्होंने ने अपना पूरा जीवन इन चावल की प्रजातियों को संजोने में लगा दिया है.

वह धान कटने के बाद धान को जिस घर में रखते हैं वह लगभग 150 साल पुराना है. जो आज भी वैसा ही मिट्टी और फूस का बना है.

उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि बीज बेचा नहीं जा सकता है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं बल्कि प्यार और देखभाल है.

इसके अलावा उन्होंने कहा है कि पद्म श्री पुरस्कार उनके जैसे किसान के देश को मान्यता देते है और इस से उन्हें दूसरों के बीच संरक्षण का संदेश प्रसार करने में मदद मिलेगी.

इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि वह छात्रों, किसानों और शोधकर्ताओं का स्वागत करते हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों से उनकी खेती के प्राकृतिक तरीके के बारे में जानने के लिए उनके पारंपरिक घर में आना चाहते हैं.

चावल के प्रजातियों की लिस्ट

ऐसा दावा किया जाता है कि चेरुवयल ने जिन चावल की प्रजातियों या किस्मों को संरक्षित करके रखा हुआ है उसकी उन्होंने एक लिस्ट बनाकर और चावल का विवरण अपने पास लिखकर रखा हुआ है.

इस लिस्ट में एक चावल की किस्म ऐसी है जो 500 साल से भी ज्यादा पुरानी है. जिसमें चेन्नेलु, थोंडी, वेलियान, कल्लादियारन, मन्नू वेलियन, चेम्बकम, चन्नलथोंडी, चेट्टुवेलियन, पलवेलियन और कनाली वायनाड के सबसे प्रमुख स्वदेशी बीज भी शामिल हैं.

वह कहते हैं कि उनके अनुभव ने उन्हें सिखाया है कि संकर बीजों की तुलना में स्वदेशी बीज रोगों और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं.

उन्होंने बताया है कि बिना बुआई(sowing)के कई वर्षों तक रखे जाने पर भी वे खराब नहीं होते हैं. उनकी खेती के लिए न्यूनतम मेहनत की आवश्यकता होती है.

पुरस्कार

पद्म श्री के अलावा भी चेरुवयल को पांच साल पहले पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार संरक्षण प्राधिकरण(the Protection of Plant Varieties and Farmers Right Authority) के द्वारा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पौधा जीनोम उद्धारकर्ता पुरस्कार(National Plant Genome Saviour Award) से पुरस्कृत किया गया था.

इसके अलावा चेरुवयल को देसी धान की किस्मों को देसी तरीके से संरक्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धी भी मिल चुकी है.

धान की खेती सीखाना

आज के दौर में धान को उगाने के लिए जेनेटिकली मॉडिफाइड और हाइब्रिड-उन्नत किस्मों का इस्तेमाल हो रहा है. जिस वजह से धान की कई देसी प्रजातियां या किस्म विलुप्ति की कगार पर हैं. यह बात चेरुवयल को कई सालों से परेशान कर रही हैं.

वह बताते हैं कि लोग अब देसी धान को भूलते जा रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को इनकी महत्ता से रूबरू करवाने के लिए देसी किस्मों का संरक्षण करना बेहद आवश्यक है.

हालांकि आज के समय में कई किसान देसी किस्मों की खेती दुबारा से करने लगे है. उन्होंने बताया है कि कई किसान खुद उनके पास आकर इन बीजों की मांग करते हैं.

तो वह उन लोगों को बीज देने के साथ ही किसानों को पारंपरिक और देसी बीजों की रसायनमुक्त खेती का ज्ञान भी देते हैं. जिसके लिए वह किसानों से पैसा नहीं लेते है बल्कि देसी बीज देने वाले किसानों को उत्पादन में से ही कुछ बीज लौटाने को कहते है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments