अपनी मातृभूमि मिज़ोरम से पलायन कर त्रिपुरा में शरण लेने के 24 साल बाद ब्रू-रेआंग आदिवासियों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरु हो गई है.
इसके तहत 5400 रेआंग आदिवासी परिवारों के 35,000 लोगों को त्रिपुरा के अलग-अलग ज़िलों में बसाया जाएगा.
फ़िलहाल, लगभग 650 लोग अंबासा और लोंगतराई घाटी में दो गावों में अस्थायी शिविरों में बसाए जाएंगे. त्रिपुरा सरकार जल्द ही उनके स्थायी निवास की व्यवस्था करेगी.
इन स्थायी निवासों में बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था कर दी गई है. सोमवार को 92 परिवारों के 424 आदिवासी इन शिविरों में शिफ़्ट हुए.
पिछले साल जनवरी में किए गए समझौते के तहत रेआंग आदिवासियों को बसाने के अलावा, त्रिपुरा सरकार उन्हें वित्तीय मदद भी देगी. इसके अलावा इन आदिवासियों को त्रिपुरा की वोटिंग लिस्ट में भी शामिल किया जाएगा.
केंद्र सरकार ने इन आदिवासियों को बसाने के लिए 600 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की है. इसमें से 150 लाख रुपए त्रिपुरा सरकार को ज़मीन प्राप्त करने के लिए दिए जाएंगे, और बाकि इन आदिवासियों के कल्याण के लिए.
इस समझौते के तहत हर विस्थापित परिवार को 40 × 30 वर्ग फुट की ज़मीन दी जाएगी. इसके अलावा 4 लाख रुपए की एक एफ़डी, दो साल के लिए मासिक 5,000 रुपए, मुफ्त राशन और अपना घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये की सहायता.
रेआंग या ब्रू आदिवासियों का मुद्दा दो दशकों से भी ज़्यादा से चल रहा है. 24 साल पहले मिज़ोरम में जातीय दंगों के बाद, ब्रू जनजाति के लोगों ने त्रिपुरा के कंचनपुर और पनीसागर में शिविरों में शरण ली थी.
त्रिपुरा सरकार ने पांच जिलों में कुल 16 स्थानों की पहचान की है जिसमें इन्हें बसाया जाएगा. इसमें गोमती, सेपाहीजला, खोवाई, ढलाई और उत्तरी त्रिपुरा क्षेत्र शामिल हैं.
रेआंग या ब्रू आदिवासी एक आदिम जनजाति यानि पीवीटीजी है.