HomeAdivasi Dailyतेलंगाना: पोडु भूमि को लेकर आदिवासी और वन अधिकारी भिड़े

तेलंगाना: पोडु भूमि को लेकर आदिवासी और वन अधिकारी भिड़े

रविवार को वन अधिकारियों ने गंदलागुडेम में पोडु भूमि पर आदिवासियों को काम करने से रोक दिया. इसके बाद ग्रामीणों और उनके बच्चों ने वन अधिकारियों के विरोध में सड़कों पर उतर आए. उन्होंने धमकी दी कि 'अगर वन अधिकारियों का उत्पीड़न जारी रहा तो वे जहर खा लेंगे.'

हर गुजरते दिन के साथ तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडेम ज़िले में पोडु भूमि का मुद्दा गरमाता जा रहा है, जिससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो रही है. रविवार को एक और घटना में असवरोपेट मंडल के गांदलागुडेम गांव में आदिवासियों और वन अधिकारियों के बीच झड़प हो गई.

दरअसल आदिवासी गांव में पोडु भूमि पर वन अधिकारियों द्वारा फसल के बागानों को नष्ट करने के बाद भिड़ गए. ग्रामीणों ने दावा किया कि वे कई वर्षों से जमीन पर खेती कर रहे हैं.  वहीं वन अधिकारियों ने बताया कि गांदलागुडेम गांव में 160 एकड़ जमीन वन क्षेत्र के अंतर्गत आती है और गांव वाले अवैध रूप से खेती कर रहे थे.

रविवार को वन अधिकारियों ने गंदलागुडेम में पोडु भूमि पर आदिवासियों को काम करने से रोक दिया. इसके बाद ग्रामीणों और उनके बच्चों ने वन अधिकारियों के विरोध में सड़कों पर उतर आए. उन्होंने धमकी दी कि ‘अगर वन अधिकारियों का उत्पीड़न जारी रहा तो वे जहर खा लेंगे.’ उन्होंने घंटों तक वन अधिकारियों के वाहनों को घेर कर रखा.

विरोध करने वाले एक ग्रामीण ने कहा, “हमारे पूर्वज 2,000 वर्षों से इन जमीनों पर खेती कर रहे थे. हम में से कुछ को वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार के दौरान जमीन के लिए पट्टे मिले, जबकि अन्य अभी भी इंतजार कर रहे हैं. वन अधिकारी अक्सर गांव का दौरा करते रहे हैं और हमारी फसलों को नष्ट कर रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “हमारे पास गुजारा करने के लिए और कोई साधन नहीं है. हम अपने परिवारों का पेट पालने के लिए इन जमीनों पर फसल उगाने का कठिन परिश्रम करते हैं. लेकिन वन अधिकारी अक्सर हमें परेशान कर रहे हैं.”

इस बीच, फॉरेस्ट रेंजर अब्दुल रहमान ने कहा कि ग्रामीण वन भूमि पर अवैध रूप से खेती कर रहे थे. उन्होंने कहा, “जब हम उन्हें रुकने के लिए कहते हैं तो वे अधिकारियों पर हमला करते हैं.”

पोडु भूमि मुद्दा क्या है?

पोडू खेती, जिसमें फसल उगाने के लिए जंगल की जमीन को जलाकर साफ किया जाता है, ये आदिवासियों के लिए आजीविका का एक बड़ा साधन है. लेकिन वन विभाग पर्यावरण की रक्षा और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए इसका विरोध करता है.

वहीं इस वनों की कटाई को रोकने के लिए सरकार खेती के लिए जमीन आवंटित करके खेती करने वालों को घने जंगलों से बाहर के इलाक़े में ले जाना चाहती है. मुख्यमंत्री राव ने पिछले साल राज्य विधानसभा को आश्वासन दिया था कि सरकार वनों की रक्षा और अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए एक अभियान शुरू करेगी.

पोडु खेती सीधा आदिवासियों के भूमि अधिकारों से जुड़ी है. इस विवाद का एक और पहलू है तेलंगाना सरकार की हरिता हरम योजना, जिसके तहत राज्य के फ़ॉरेस्ट कवर को बढ़ाने की योजना है. लेकिन इसके लिए पेड़ जिस भूमि पर लगाए जाने हैं, उसपर आदिवासी अपना दावा पेश करते हैं.

सरकार ने कहा है कि दशकों से परंपरागत रूप से खेती करने वाले आदिवासी किसान अवैध अतिक्रमणकारियों के खिलाफ इस अभियान से प्रभावित नहीं होंगे. बल्कि आदिवासियों को भू-स्वामित्व के पट्टे यानि मालिकाना हक़ दिया गया है. अधिकारियों ने कहा है कि राज्य भर में आदिवासी किसानों को 3 लाख एकड़ से अधिक भूमि आवंटित की गई है.

क्या है सरकार के कदम की स्थिति?

सरकार ने मुख्य सचिव सोमेश कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था जिसने पोडू किसानों से भूमि के स्वामित्व और वन क्षेत्रों के बाहर भूमि आवंटन के लिए आवेदन आमंत्रित किए. प्रक्रिया की निगरानी के लिए गांव, मंडल और जिला स्तर पर जांच समितियां गठित की गईं. हालांकि यह प्रक्रिया जल्दी ही चरमरा गई क्योंकि 7 लाख एकड़ से अधिक वन भूमि पर दावा करने वाले 1 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे.

वन मंत्री रेड्डी के अनुसार, आवेदनों की जांच करने, आदिवासियों और गैर-आदिवासियों की भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया जारी थी और उन्हें भूमि स्वामित्व दस्तावेज जारी करने में कुछ समय लगेगा.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को मूल आदिवासियों और आदिवासियों से कोई समस्या नहीं है जो हमेशा जंगलों में रहे हैं.  हालांकि, गैर-आदिवासियों द्वारा अतिक्रमण किया गया है. हमने लोगों को आश्वासन दिया है कि जो कोई भी पोडु खेती को छोड़कर जंगल से बाहर जाना चाहता है, उसे अतिरिक्त लाभ के साथ मुफ्त में जमीन दी जाएगी.

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