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तमिलनाडु की इस आदिवासी बस्ती को दशकों के इंतजार के बाद मिली पक्की सड़क

वालपराई नगर निगम के अध्यक्ष एस. अलागुसुंदरावल्ली (S. Alagusundaravalli) ने बताया कि नेदुंगुंद्रम एटीआर में पहली आदिवासी बस्ती है जिसमें पक्की सड़क बनने वाली है.

तमिलनाडु के कोयंबटूर ज़िले की एक आदिवासी बस्ती को दशकों के इंतजार के बाद पक्की सड़क मिलने वाली है.

कोयंबटूर ज़िले के वालपराई से लगभग 20 किलोमीटर दूर अनामलाई टाइगर रिजर्व (ATR- Aanamalai Tiger Reserve) में नेदुंगुंद्रम (Nedungundram) आदिवासी बस्ती के सदस्य राहत की सांस ले रहे हैं. क्योंकि उन्हें जल्द ही बाहरी दुनिया को जोड़ने वाली एक कोलतार सड़क मिलने वाली है जिसका उनके पूर्वजों ने दशकों से सपना देखा था.

वालपराई नगर पालिका ने मौजूदा 4 किलोमीटर की मिट्टी की सड़क, जिसका नाम कुथिरैवांडी सालाई है, जिसका निर्माण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान किया गया था. उस पर अब कोलतार का काम शुरू कर दिया गया है.

कादर आदिवासी नेता एस. थंगासामी (Kadar tribal leader S. Thangasamy) ने कहा कि राजस्व भूमि पर कोलतार सड़क बनाने के लिए वर्षों से अधिकारियों को बार-बार आवेदन दिया गया. लेकिन अब हमें खुशी है कि आखिरकार सड़क बनाई जा रही है.

वालपराई नगर निगम के अध्यक्ष एस. अलागुसुंदरावल्ली (S. Alagusundaravalli) ने कहा कि नेदुंगुंद्रम एटीआर में पहली आदिवासी बस्ती है जिसमें पक्की सड़क बनने वाली है.

नेदुंगुंद्रम के कादर आदिवासी (Kadar tribal) परिवार के लोग पक्की सड़क नहीं होने के कारण विलोनी तक पहुंचने के लिए जंगल के रास्ते के जरिए करीब 1.7 किलोमीटर का रास्ता तय करते थे. जहां से वालपराई तक परिवहन सुविधाएं पहुंचाई जा सकती है.

इसके अलावा नेदुंगुंमद्रम बस्ती के प्रमुख के. रथिनासामी के अनुसार, अधिकारियों के द्वारा बताया गया है कि विलोनी पिरिवु (Villoni pirivu) से 4 किमी की कुल दूरी में से राजस्व भूमि में लगभग 3.2 किमी की दूरी के लिए पक्की सड़क बिछाई जा रही है और बाकी बची 800 मीटर जगह बाघ अभयारण्य के अंतर्गत आते हैं.

सड़क के आभाव से होने वाली दिक्कतें

पक्की सड़क नहीं होने के कारण नेदुंगुंमद्रम बस्ती के कुछ आदिवासी परिवार अपने बच्चें को शिक्षा दिलाने के साथ ही बेहतर सुविधाओं के लिए वलपराई के आसपास के इलाकों में रहने के लिए चले गए थे.

इसके अलावा बस्ती में ऐसी भी कुछ घटनाएं हुई है, जिनमें अनामलाई पहाड़ियों के विभिन्न बस्तियों के आदिवासी, जिन्हें चिकित्सा सुविधा की जरूरत थी, उनकी उस समय मृत्यु हो गई जब उन्हें मुख्य सड़कों पर अस्थायी स्ट्रेचर पर ले जाया जा रहा था.

अभी बस्ती में कुल 65 परिवार हैं और उन परिवारों की कुल जनसंख्या 159 है.

तमिलनाडु के एकता परिषद की आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता एस. थानराज ने कहा कि नेदुंगुंद्रम को कादर जनजाति का मातृ गांव माना जाता है.

यहां के समुदाय के सदस्य सालों से अनामलाई पहाड़ियों के अन्य हिस्सों और केरल की ओर चले गए. कुछ सालों पहले इस बस्ती में 100 से अधिक परिवार थे और कई लोग बेहतर सुविधाओं के लिए वालपराई के नजदीक स्थानों पर चले गए थे.

हालांकि, टैंगेडको के पास बाघ अभयारण्य के अंदर पक्की सड़कें हैं. लेकिन आदिवासी बस्तियों को इससे वंचित करने के कारण इनमें से कुछ परिवारों को अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़नी पड़ी.

इसके अलावा थानराज चाहते थे कि ज़िला प्रशासन और वन विभाग बाघ आरक्षित क्षेत्र में 800 मीटर सहित पूरी 4 किमी मिट्टी की सड़क को टार-टॉप करने की अनुमति दे.

वैसे कोयंबटूर और तिरुपुर ज़िला क्षेत्रों में 30 से अधिक आदिवासी बस्तियां एटीआर के अंतर्गत आती हैं.

यह पहला ऐसा आदिवासी गांव नहीं है, जहां पर पक्की सड़कें नहीं है. सरकार को आदिवासियों के लिए नई योजनाएं लाने के साथ ही इस बात पर भी ध्यान देने की जरुरत है की उनकी बस्तियों, गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

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