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छत्तीसगढ़: माओवाद प्रभावित ज़िले के हज़ारों छात्रों ने स्कॉलरशिप परीक्षा में हिस्सा लिया

नेशनल मीन्स कम मेरिट स्कॉलरशिप यानी एनएमसीएमएस की के लिए कांकेर के 4400 छात्र-छात्राएं नें आवेदन दिया था, जिनमें से 4381 परीक्षा में मौजूद हुए.

छत्तीसगढ़ (chattisgarh) के आदिवासी बहुल कांकेर ज़िले (kanker district) के लगभग 4381 बच्चों ने नेशनल मीन्स कम मेरिट स्कॉलरशिप (National means-cum merit scholarship) की परीक्षा में भाग लिया है. ये सभी कक्षा आठवी के छात्र-छात्राएं है.

नेशनल मीन्स कम मेरिट स्कॉलरशिप यानी एनएमसीएमएस (NMCMS) 2008 में शुरू की गई थी. इसके तहत परीक्षा में पास होने वाले छात्र-छात्राओं को हर महीने 1000 रूपये की वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है.

ये वित्तीय सहायता इन्हें बारहवी पास होने तक उपलब्ध करवाई जाएगी. इस स्कॉलरशिप का उदेश्य आठवी के बाद स्कूल ड्रॉप आउट रेट कम करना है.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक स्कॉलरशिप के लिए कांकेर के 4400 छात्र-छात्राएं नें आवेदन दिया था, जिनमें से 4381 परीक्षा में मौजूद रहें.

स्थानीय प्रशासन का दावा है कि क्षेत्र के सभी बच्चें सकॉलरशिप के बारे में जागरूक थे, इसलिए इस परीक्षा में इतनी संख्या में बच्चों ने भाग लिया.

दरअसल यहां ज़िला प्रशासन द्वारा हमर लक्ष्य अभियान (Hamar Lakshya campaign ) चलाया जा रहा  है. इस अभियान की शुरूआत 2021 में हुई थी.

हमर लक्ष्य के इंचार्ज, नवनीत पटेल ने बताया की इस अभियान के तहत हम कक्षा एक से बारहवी तक कई तरह के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते है.

पिछले साल भी 813 बच्चों ने एनएमसीएमएस की परीक्षा में भाग लिया था, जिसमें से 137 बच्चे परीक्षा में सफल हुए थे. अब उन्हें हर महीने सकॉलरशिप के तहत वित्तीय सहायता दी जा रही है.

ये भी पता चला है की स्कूलों में पिछले दो महीनें से सभी छात्र-छात्राओं को मॉक टेस्ट की सहायता से तैयारी करवाई गई है.

वहीं जागरूकता के कारण कोयलीबेड़ा और अंतागढ़ के आदिवासी बच्चे भी स्कॉलरशिप में भाग ले पाए.

शिक्षा की स्थिति

एनएमसीएमएस और अन्य कई स्कॉलरशिप के बावजूद भी राज्य के आदिवासी इलाकों में शिक्षा की स्थिति अभी भी अच्छी नहीं है.

एक स्टडी के अनुसार 100 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के लिए आवेदन तो करते है, लेकिन प्राथमिक स्तर के अंत तक 49.2 प्रतिशत बच्चें अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं. जिसके कई कारण हो सकते है, जिनमें ये मुख्य है-

  • अत्यंत गरीबी के कारण बच्चों का कम उम्र में आर्थिक रूप से परिवार की मदद करना
  • स्कूलों का दूर होना
  • राज्य में कई क्षेत्रों का माओवादी प्रभावित होना
  • शिक्षकों की कमी इत्यादि शामिल है.

इस स्थिति में यह वित्तीय सहायता ज़रूरी कुछ छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करेगी. लेकिन ये भी ध्यान देने वाली बात है की महज़ 2000 छात्र-छात्राओं को ही ये वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी, जबकि सिर्फ कांकेर से ही 4381 छात्र-छात्राओं ने इसमें भाग लिया है.

इसके साथ ही यह बात भी ध्यान रखनी होगी की कांकेर और छत्तीसगढ़ के कई अन्य आदिवासी बहुल ज़िले माओवाद से प्रभावित हैं. इसलिए ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां के छात्रों को इस तरह के प्रयासों के बारे में पता ही नहीं चलता है.

इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि इस तरह की स्कीम का दायरा भी बढ़ाया जाए और कुछ रास्ते तलाशे जाएं जिससे माओवाद प्रभावित या दुर्गम इलाकों के छात्र भी इस तरह की योजना का फायदा ले सकें.

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