HomeAdivasi Dailyकनक राजू: विलुप्त होती कला को बचाने वाला आदिवासी रसोइया

कनक राजू: विलुप्त होती कला को बचाने वाला आदिवासी रसोइया

गोंड आदिवासियों की उपजाति राज गोंड आदिवासियों के लोक नृत्य गुसाडी को लोकप्रिय करने के साथ लोगों को इसका प्रशिक्षण देने के लिए आदिवासी कलाकार कनक राजू(Kanaka Raju) को साल 2021 में कला के क्षेत्र में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

आदिवासी सुमदाय कला और संस्कृति के क्षेत्र में काफी संपन्न हैं. लेकिन समय के साथ कई आदिवासी कला लुप्त होने की कगार पर है.

इन कलाओं को बचाने के प्रयास भी किये जा रहे हैं. ये प्रयास सरकार और कुछ संस्थाएं कर रही हैं. इस काम में कुछ व्यक्ति भी जुटे हुए हैं.

उन आदिवासी कलाकारों में से एक कनक राजू (Kanaka Raju) भी हैं .

कनक राजू, राज गोंड आदिवासियों के द्वारा किए जाने वाले गुसाडी नृत्य (Gussadi Dance) को प्रदर्शित करने के साथ ही इस नृत्य को दूसरे लोगों को सीखाकर गुसाडी नृत्य को नौजवानों तक पहुंचा रहे हैं.

कनक राजू के द्वारा राज गोंड आदिवासियों की गुसाडी नृत्य को संरक्षित करने के इस प्रयास के लिए उन्हें कला के क्षेत्र में साल 2021 में पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया था.

कनक राजू

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित कनक राजू तेलंगाना राज्य के कोमाराम भीम आसिफाबाद ज़िले के जैनूर मंडल के मारलवाई गांव के रहने वाले है.

वह राज गोंड आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते है.

उन्होंने छह दशकों से अधिक का समय गुसाडी नृत्य की दुनिया में ही बिताया है.

कनक राजू बहुत ही सामान्य पृष्ठभूमि(background) से ताल्लुक रखते है.

वह नृत्य सीखाने के अलावा मारलावई गांव के एक कल्याण छात्रावास में रसोइया के रूप में काम करते है.

कनक राजू ने साल 1981 में राज्य की गणतंत्र दिवस परेड में भी भाग लिया था.

इसके अलावा वह तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सामने भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं.

तेलंगाना आदिवासी कला और नृत्य (Telangana tribal art and dance forms) रूपों के शोधकर्ता (researcher) जयधीर तिरुमाला राव (Jayadheer Tirumala Rao) के अनुसार आदिवासी नृत्य के रूपों को आधुनिक रूपों और सिनेमा संस्कृति के द्वारा प्रभावित किया जा रहा था, तब कनक राजू ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और हर राज्य एंव देश में सैकड़ों प्रदर्शनों के माध्यम से गुसाडी पारंपरिक नृत्य रूप को फिर से शुरु किया.

उन्होंने कहा है कि कनक राजू ने पिछले चार दशकों में हजारों आदिवासी युवाओं को इस नृत्य शैली में प्रशिक्षित किया है.

इसके अलावा जयधीर तिरुमाला राव ने कहा कि अगर किसी भी कला को जीवित रहना है तो सबसे पहले कलाकार को जीवित रहना होगा.

यह तभी होगा जब गुसाडी जैसे विलुप्त हो रहे कला रूपों को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले ऐसे और कलाकारों को पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा.

काम

कनक राजू गोंड आदिवासियों के लोक नृत्य गुसाडी को बचाए रखने के लिए अपने अथक प्रयासों के अंतर्गत पिछले 40 से भी अधिक सालों से युवा पीढ़ी को इस नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे हैं.

उन्होंने गुसाडी नृत्य को संरक्षित रखने के लिए सरकारी समर्थन की जरूरत बताई है.

कनक राजू ने एक इंटरव्यू में बताया है कि उन्होंने साल 1980 के दशक की शुरुआत में गुसाडी नृत्य को एक शैली और प्रणाली देने के लिए पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी मदारी तुकाराम के साथ काम किया था.

उन्होंने यह भी बताया है की बहुत पहले वह इंदिरा गांधी के सामने इस गुसाडी नृत्य का प्रदर्शन करने के साथ ही इंदिरा गांधी को गुसाडी की पारंपरिक टोपी भी भेंट कर चुके है.

कनक राजू स्कूल ऑफ गुसाडी डांस

कनक राजू नृत्य सीखने के अलावा आदिलाबाद में शुरू किए गए कनक राजू स्कूल ऑफ गुसाडी डांस (Kanaka Raju School of Gussadi Dance) के लिए सीडीएम यानी मुख्य नृत्य मास्टर (CDM- Chief dance master) के रुप में भी नियुक्त किए जा चुके है.

इस डांस स्कूल में कनक राजू को एक कमरा और स्थान दिया गया है. जहां पर वह गुसाडी नृत्य का प्रशिक्षण देते है.

इसके अलावा इस डास स्कूल की स्थापना की शुरुआत आईटीडीए-उटनूर(ITDA-Utnoor) के द्वारा की गई थी.

कनक राजू स्कूल ऑफ गुसाडी डास के शुरु होने के बाद उनके के गांव के रहने वाले वेंकटेश्वर राव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कनक राजू को आईटीडीए अधिकारियों द्वारा 20,000 रुपये का मासिक मानदेय(honorarium) भी दिया जाएगा.

गुसाडी नृत्य

गुसाडी नृत्य तेलंगाना का लोक नृत्य है. जो राज गोंड आदिवासियों के द्वारा किया जाता है.

यह आदिलाबाद ज़िले के देवताओं के लिए एक प्रसिद्ध नृत्य है. जिसमें वे रंग-बिरंगे परिधान और आभूषण पहनकर तैयार होते हैं.

इस नृत्य को करने वाले लोगों के समूह को दांदरी नृत्य समूह कहते है. जिसमें प्रत्येक सदस्य मोर के पंखों और हिरण के सींगों से बनी पगड़ी, शरीर को ढकने के लिए कृत्रिम दाढ़ी, मूंछ और बकरी की खाल पहनते है.

इसके अलावा एक घेरे में दाएं और बाएं तरफ कदम बढ़ाकर नृत्य करते है.

इस नृत्य में सिर्फ आदिवासी पुरुष हिस्सा लेते हैं.

गुसाडी नृत्य एक स्थानीय देवता से जुड़ा नृत्य है. जिस से डंडारी उत्सव के दौरान आयोजित किया जाता है. जो आमतौर पर दीपावली के बाद शुरू होता है और 10 दिनों तक चलता है.

इस नृत्य में नर्तक लगभग 1,500 मोर पंखों से बनी टोपी पहनते हैं जिसे स्थानीय भाषा में मल बूरा कहते है और अपनी कमर पर जानवरों की खाल लपेटते हैं.

वैसे गुसाडी का प्रदर्शन युवा पुरुष एंव महिलाओं को प्रभावित करने और एक संभावित जीवनसाथी खोजने के लिए किया जाता हैं.

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