तमिलनाडु के नीलगिरी के गुडलूर के 100 से अधिक आदिवासी निवासियों ने सोमवार को एक दिवसीय उपवास में हिस्सा लिया और मांग की कि सरकार मुदुमलाई टाइगर रिजर्व के भीतर उनके “अवैध” पुनर्वास के प्रभावों को कम करने के लिए सुधारात्मक कदम उठाए.
गुडालूर इलाके के 100 से ज्यादा आदिवासियों ने वन विभाग पर ये आरोप लगाया है कि उन्होंने पुर्नवास के समय जितना मुआवजा देने का वादा किया था, उतनी राशि उन्हें प्राप्त नहीं हुई है.
इसके अलावा आदिवासियों ने ये भी आरोप लगाया है कि जो सरकारी जमीने उन्हें दी गई है, उसके भी पट्टे अभी तक नहीं मिले हैं.
इन सभी आदिवासियों को मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व (mudumalai tiger reserve) से विस्थापित किया गया था. इन 100 आदिवासियों में पानिया, कट्टुनायकन और गैर-आदिवासी समुदाय शामिल थे.
इस मामले में मिली जानकारी के मुताबिक प्रशासन द्वारा इन्हें ज़मीन के बदले 10 लाख रूपये या ज़मीन देने का वादा किया गया था. लेकिन न ही उन्हें वादे के मुताबिक पैसे मिले है और न ही उन्हें मिलने वाली भूमि का पट्टा दिया गया है.
इसी संदर्भ में सामाजिक कार्यकर्ता, सुरेश टी.वी. ने आदिवासियों का समर्थन करते हुए कहा कि ये सभी आदिवासी अब जंगल में वापस जाना चाहते हैं. 2007 में इन आदिवासियों से 10 लाख मुआवज़ा देने की बात कही गई थी.
जो आज के समय में भूमि के मुकाबले बेहद कम है. उन्होंने कहा कि इस भूमि की कीमत अब 25 लाख हो चुकी है.
वी.पी. तमिलनाडु ट्राइबल पीपुल्स एसोसिएशन के सदस्य गुनासेकरन ने कहा कि न केवल एमटीआर में आदिवासियों को उनकी मंजूरी के बिना अवैध रूप से पुनर्वासित किया गया है बल्कि कई लोगों को सरकारी भूमि मिलने के बाद भी पट्टे नहीं दिए गए है.
इसके साथ ही उन्होंने प्रशासन से वन अधिकार अधिनियम को लागू करने का आग्रह किया है.