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तेलंगाना चुनाव: आदिवासी की अहमियत और मुद्दे

तेलंगाना सहित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम राज्यों में नवंबर के अलग अलग तारीखों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इन सभी राज्यों में आदिवासियों के मुद्दे का चुनाव में गहरा असर पड़ेगा.

मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh), छत्तीसगढ़ (chhattisgarh), तेलंगाना (Telangana) और मिजोरम (Mizoram) के चुनावों की तारीख़ घोषित हो चुकी है. इन सभी राज्यों में नवंबर महीने की अलग अलग तारीखों को वोट डाले जाएंगे.

इन राज्यों में दक्षिण भारत के तेलंगाना की बात की जाए तो यहां की मौजूदा सरकार का कार्यकाल जनवरी 2024 में समाप्त होगा. लेकिन चुनाव आयोग ने यहां भी नवंबर महीने में ही बाकी राज्यो के साथ चुनाव कराने का फैसला किया है.  

इसी कड़ी में तेलंगाना के विधानसभा चुनाव 2023 (Telangana assembly election 2023) के लिए वोटिंग 30 नवबंर को होगी. यहां एक ही चरण में चुनाव हो रहा है. राज्य के चुनाव का नतीजा बाकी राज्यों के साथ ही 3 दिसंबर को आएगा.

तेलंगाना में आदिवासी

नवंबर महीने में जिन राज्यों में चुनाव हो रहा है उनकी ख़ास बात ये है कि उन सभी राज्यों में आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं. इसलिए इन चुनावों में आदिवासियों की ख़ास चर्चा हो रही है.

तेलंगाना राज्य भी इसमें शामिल है. 2011 जनगणना के मुताबिक तेलंगाना में 32 आदिवासी समुदाय रहते हैं.

इस राज्य में आदिवासियों ौकी कुल जनसंख्या का 9.8 प्रतिशत हैं. यानी इस राज्य में आदिवासियों का वोट चुनाव में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है.

तेलंगाना में 119 विधानसभा सीटें (Assembly seats) हैं. जिनमें से अनुसूचित जनजाति (schedule tribe) के लिए 12 सीटें आरक्षित है

फ़िलहाल तेलंगाना में बीआरएस (BRS) की सत्ता है और राज्य के मुख्यमंत्री केसी राव (K C Rao) है. ये बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति (bharat rashtra Samithi) से है.

बीआरएस को पहले टीआरएस यानि तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से जाना जाता था. मौजूदा वक्त में इस पार्टी का मुख्य मुकाबला बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) पार्टी से है. यानि राज्य में त्रिकोणिय चुनाव होने की संभवाना बन रही है.

2018 के चुनाव में बीआरएस पार्टी ने 87 सीटें जीती थीं. वहीं कांग्रेस ने सिर्फ 19 सीटों पर अपना नाम दर्ज किया. जबकि असदुद्यीन ओवैसी की एआईएमआईएम (aimim) को 7 सीटें मिली थी.

वहीं बीजेपी बेहद बुरी तरह हारी और उसे सिर्फ 1 विधानसभा सीट ही हासिल हुई. इसके अलावा तेलुगू देशम पार्टी (Telugu desham party) ने 2 सीटों में विजय प्राप्त की थीं.

तेलंगाना में आदिवासियों के मुद्दे

10 प्रतिशत आरक्षण की मांग

11 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यटन मंत्री और राज्य भाजपा अध्यक्ष जी किशन रेड्डी (G. Kishan Reddy) मुलुगु ज़िले के मेदाराम के दौरे पर आए थे. दरअसल यहां सम्मक्का और सरक्का आदिवासी देवताओं की पूजा आयोजित की गई थी.

पूजा खत्म होने के बाद जी किशन ने कुछ घोषणाएं की. जिनमें उन्होंने कहा की उनकी सरकार आदिवासियों को शिक्षा, नौकरियां और स्थानीय निकाय चुनाव में 10 प्रतिशत का आरक्षण देने का वादा करती है.

दरअसल तेलंगाना आदिवासी कई वर्षो से 10 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं. लगभग 6 साल पहले तेलंगाना विधानसभा में आदिवासी के 6 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने के लिए बिल पास किया गया था. जिसके बाद इसे केंद्र सरकार और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा गया.

लेकिन राज्य सरकार और मुख्यमंत्री केसी राव के कई कोशिशों के बावजूद ये बिल अभी तक लंबित है.

इसलिए ये कहना शायद गलत नहीं होगा की आने वाले चुनाव में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा लगभग सभी पार्टियों द्वारा किया जा सकता है.

पोडु पट्टे भूमि

वहीं चुनाव के इस प्रचार प्रसार की दौड़ में बीआरएस पार्टी भी पीछे नहीं हटी. कुछ महीने पहले ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने पोडु पट्टी भूमि के बटवारें के प्रस्ताव को हरी झंडी दी.

जिसके सिलसिले में आसिफाबाद के कार्यालय परिसर में लाभार्थी आदिवासियों को दस्तावेज़ सौंपे थे.

पार्टी ने ये घोषणा की थी कि राज्य के 26 ज़िलों के लगभग 1.5 लाख आदिवासियों को वन क्षेत्रों में 4 लाख एकड़ से अधिक पोडु भूमि पर खेती का अधिकार दिया जाएगा.

इस 4 लाख एकड़ ज़मीन का 87 प्रतिशत 9 आदिवासी ज़िलों में बाटा जाएगा. जिनमें भद्राद्री कोठागुडेम, महबुबाबाद, कुमुराम भीम आसिफाबाद, आदिलाबाद, मुलुगु, खम्मम, वांरगल, नगरकुर्नूल और मंचेरियल शामिल हैं.

वहीं दावे का 50 हज़ार एकड़ से अधिक ज़मीन अकेले भद्राद्री कोठागुडेम से दिया जाएगा.

क्या है इतिहास (पोडु पट्टे भूमि)

तेलंगाना आदिवासी कई वर्षो से भूमि अधिकार की मांग कर रहे हैं. जिसके चलते कई सालों से वन विभाग और आदिवासियों के बीच संघर्ष देखने को भी मिला है. इस संघर्ष के चलते कई आदिवासियों को अपनी जान भी देनी पड़ी.

करीब 17 सालों के संघर्ष के बाद अब जाकर इनकी मुश्किले दूर होती नज़र आ रही है. 2014 और 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीआरएस पार्टी ने भूमि आधिकार देने का वादा किया था. जिसे 2023 तक पूरा नहीं किया गया.

देश के आदिवासी समाज में सदियों से झूम खेती की जाती है. जिसमें आदिवासी जंगलों को साफ करके खेती करते है. तेलंगाना में इस विधि से खेती को पोडु खेती कहा जाता है.

यहां आदिवासी बरसों से पोडुु ज़मीन पर मालिकाना अधिकार की मांग कर रहे हैं.  

क्योंकि वन अधिकार अधिनियम 2006 आने के बाद भी आदिवासी और वन विभाग के बीच भूमि अधिकार को लेकर संघर्ष चलता रहा है.

वन विभाग ने कई आदिवासियों पर भूमि कब्जे से संबंधित केस भी दर्ज किए थे.

इसी मामले को लेकर अब केसी राव ने अपनी घोषणा में कहा की वे सभी आदिवासियों को पोड़ु पट्टे भूमि का अधिकार देंगे. इस भूमि का वितरण आदिवासी महिलाओं के नाम पर किया जाएगा.

वहीं गैर आदिवासी समुदायों की भूमि मांग को लेकर भी वे जल्द ही कुछ समाधान जरूर उपलब्ध करेंगे.

इसके साथ ही उन्होंने कहा की आदिवासियों पर वन विभाग द्वारा किए गए केस को या तो हटाया जाए या फिर उनमें सुनवाई की जाए.

ज़मीन के संदर्भ में मालिकाना के दावे के आंकड़ो की बात करें तो सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 28 जिलों में 3,94,996  लोगों के 11,55,849  एकड़ जमीन के दावे प्राप्त हुए थे.

इनमें से एसटी यानी अनुसूचित जनजाति व्यक्तियों के दावों में 7,19,704  एकड़ के लिए 2,23,416  दावे शामिल थे. जबकि बाकी 4,36,145  एकड़ के लिए 1,71,580  दावे – अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) और गैर-एसटी लोगों के मिले थे. 

इन सभी मुद्दों पर ही मुख्य रूप से आगमी तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बात किए जाने की संभावना है.

इसके साथ ही किसी भी राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही है या नहीं. ये भी चुनावी माहौल में चर्चा बन सकता है.

आइए अब तेलंगाना आदिवासी के मूलभूत आवश्यकताएं जैसे शिक्षा, सड़क, पेय जल इत्यादि की आपूर्ति पर बात करते हैं.

सड़क

आए दिन तेलंगाना के आदिवासी क्षेत्रों से खराब सड़क की वज़ह से हादसे की खबरें आती रहती है. कुछ महीने पहले ही राज्य के निर्मल जिले मे एम्बुलेंस पहुंचने में देरी की वज़ह से आदिवासी महिला को बीच सड़क में ही बच्चें को जन्म देना पड़ा था.

एम्बुलेंस पहुंचने में देरी की वज़ह खराब सड़कें बाताई जा रही थी. ये आदिवासी क्षेत्रों की खराब सड़क के चलते हादसे की कोई पहली घटना नहीं है. इसे पहले भी भद्राद्री कोठागुडेम ज़िले में खराब सड़क के चलते एम्बुलेंस बीच रास्ते में ही फँस गई. जिसके कारण गाँव के लोगों ने आदिवासी महिला को डोली के सहारे अस्पताल पहुंचाया था.

स्वास्थ्य

इसके साथ ही अगर स्वास्थ्य सुविधा की बात की जाए तो उसमें भी सुधार की आवश्यकता है. राज्य सरकार ने ये दावा किया था की पूरे राज्य में 424 एम्बुलेंस मौजूद है. जिनमें से 108 एम्बुलेंस दिन में कार्य करते है. इन एम्बुलेंस में सरकार ने लगभग 600 करोड़ का खर्चा किया था.

लेकिन अगर ये एम्बुलेंस जरूरतमंद लोगों तक पहुंचेंगे ही नहीं तो क्या इनका कोई फायदा है? इसके साथ ही राज्य सरकार ने योजना की घोषणा की थी. जिनमें एम्बुलेंस और सभी स्वास्थ्य योजना को आदिवासियों तक पहुंचाने का दावा किया गया था.

लेकिन यह योजना सफल होती हुई दिखाई नहीं दी. इसके साथ ही एम्बुलेंस के इन आंकड़ो पर सावाल उठता है.

शिक्षा

वहीं अगर शिक्षा की बात करें तो तेलंगाना आदिवासी कल्याण विभाग की 2018 से 2019 की रिपोर्ट में यह बताया गया था की 319 आश्रम स्कूलों में करीब 90548 बच्चें पढ़ते हैं. पूरे राज्य में प्राथमिक शिक्षा के लिए 2136 स्कूल है. जिनमें लगभग 1,65,216 बच्चें पढ़ते हैं.

ये आंकड़े एक अच्छी तस्वीर पेश करते हैं. लेकिन आदिवासी इलकों में बीच में ही स्कूल छोड़ देने वाले छात्रों के आंकड़े सरकार की वेबसाइट पर नहीं मिलते हैं.

2017 में तेलंगाना के आदिवासी विकास विभाग की रिपोर्ट ही बताती है कि आदिवासी इलाकों में प्राइमरी स्तर पर स्कूल बीच में छोड़ देने वाले छात्रों की संख्या 38 प्रतिशत से भी ज़्यादा है.

जबकि समाज के अन्य समूहों में स्कूल ड्रॉपआउट रेट लगभग 16 प्रतिशत है.           

अफ़सोस की बात ये है कि क्लास 1 से 8 के बीच में तो अनुसूचित जनजाति के बच्चों में से आधे से ज़्यादा (52 प्रतिशत) स्कूल छोड़ देते हैं.

उच्च शिक्षा में स्थिति ख़राब

रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासी कल्याण गुरुकुलम (Tribal Welfare Gurukulam) के अंतर्गत 66 आवासीय जूनियर कॉलेज चलाए जा रहे हैं. जिनमें पढ़ने वालों की संख्या 8,655 बताई गई है. इसके साथ ही राज्य सरकार द्वारा 22 आवासीय जूनियर कॉलेज उपलब्ध कराए गए है. जिनमें 4,912 बच्चे पढ़ते हैं.

अगर रिपोर्ट के अनुसार दिए गए प्राथमिक शिक्षा से उच्च शिक्षा में पढ़ने वाले छात्र और छात्राओं की संख्या पर ध्यान दें. तो इसमें काफ़ी अंतर देखने को मिल जाएगा. इन आंकड़ो में इतना अंतर एक चिंता का विषय है.

इसी कड़ी में राज्य सरकार द्वारा शिक्षा को प्रोतसाहन करने के लिए दी गई योजनाओं की बात करें तो 1,56,627 छात्र और छात्राओं को ही इनका लाभ मिल रहा है.

लेकिन पूरे राज्य में आदिवासियों की जनसंख्या की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे राज्य की आबादी का 9.08 प्रतिशत यानी 30 लाख आदिवासी तेलंगाना में रहते हैं.

जिनमें से प्राथमिक शिक्षा के लिए करीब एक लाख बच्चें पढ़ने जाते हैं. वहीं उच्च स्तर की शिक्षा के लिए बस हज़ारों की संख्या में ही छात्र और छात्राएं पढ़ते है.

ये कुल आदिवासी जनसंख्या का आधा प्रतिशत भी नहीं है. शिक्षा स्तर के ये आंकड़े एक बड़ी चिंता का विषय है.

900 करोड़ के विश्वविद्यालय बनाने का दावा

इसके अलावा पिछले हफ्ते तेलंगाना को दौरा करने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आए थे. उन्होंने ये घोषणा की वे 900 करोड़ रूपये की लागत से समक्का और सरक्का आदिवासी देवताओं के नाम पर राज्य में एक केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना करेंगे.

इसके साथ ही उन्होंने बीआरएस सरकार को भूमि बंटवारे में हुई देरी का दोषी बताया.  

आदिवासी जनसंख्या की अहमियत

तेलंगाना में सबसे ज्यादा लंबाडी आदिवासी रहते हैं. जिनकी कुल जनसंख्या 20.44 लाख बताई गई है. यही वज़ह है की चुनाव के समय सभी पार्टीयां इन्हें खुश करने में लगी रहती है.

लेकिन राज्य में विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति यानी PVTGs की आबादी भी है. इनमें कोलाम (0.44 लाख ), चेंचू (0.16 लाख), थोटी (0.04 लाख) और कोंडा (0.02 लाख) की आबादी रहती है.

इतनी कम जनसंख्या होने की वज़ह से राजनीति में अक्सर इन्हें अनदेखा कर दिया जाता है

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