छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग राज्य के उत्तरी भाग में बसा हुआ है. यह आदिवासी बहुल क्षेत्र है. इसलिए सरगुजा संभाग की राजनीति में आदिवासी विशेष दखल रखता है.
6 ज़िले से बने सरगुजा संभाग में 14 विधानसभा सीटें हैं. इन 14 विधानसभा सीटों में से 9 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है और बाकी की 5 सीटें सामान्य वर्ग के लिए है.
इस लिहाज से सरगुजा संभाग में आदिवासी वोटर काफी अहमियत रखता है.
2018 के विधान सभा चुनाव में सभी 14 विधानसभा सीटों में कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत की झंडा लहराया था. जिसमें से तीन विधायकों को भूपेश बघेल के कैबिनेट में जगह मिली थी.
छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में विधानसभा चुनाव के लिए ज़्यादातर सीटों के लिए बीजेपी अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है. 14 विधानसभा सीटों में से 13 सीटें बीजेपी के प्रत्याशी के नामों की घोषणा की जा चुकी है.
जिन सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशी घोषित किए हैं, इनमें प्रतापपुर को छोड़कर शेष सभी विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को लगातार पिछले दो विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है.
भाजपा ने प्रत्याशियों के चयन के लिए जातिगत समीकरण को विशेष रूप से ध्यान में रखकर सत्तासीन कांग्रेस को चुनौती देने की कोशिश की है.
रामानुजगंज क्षेत्र में रमन सरकार के पूर्व मंत्री एवं पूर्व राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम को फिर से चुनाव मैदान में उतारा गया है.
वहीं, लुंड्रा सीट से लगातार हार झेल रही भाजपा ने अम्बिकापुर के पूर्व महापौर प्रबोध मिंज को प्रत्याशी बनाया गया है.
अभी वर्तमान की बात करें तो अम्बिकापुर के विधायक टीएस सिंहदेव हैं. सिंहदेव पिछले तीन विधानसभा चुनाव 2008, 2013 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी.
दूसरी तरफ बीजेपी सिंहदेव के खिलाफ कोई मजबूत कैंडिडेट की तलाश में है.
2018 चुनाव के हाल
अगर हम 2018 विधानसभा चुनाव की बात करें तो सरगुजा ज़िले में कुल 5 लाख 90 हजार मतदाता रहे थें.
इनमें से 2 लाख 94 हजार 13 पुरुष मतदाता और 2 लाख 96 हजार 430 महिला मतदाताओं की संख्या थी.
मतदाताओं का आंकड़ा देखा जाए तो पुरुष के मुकाबले महिला मतदाता अधिक थी.
2023 में चुनाव की स्थिति कितनी बदल गई है
इस बार की विधानसभा चुनाव की बात करें तो सरगुजा ज़िल में कुल मतदाताओं की संख्या 6 लाख 49 हजार 49 हजार 319 हो चुकी है.
इनमें से 3 लाख 21 हजार 113 पुरुष और 3 लाख 28 हजार 190 महिला मतदाओं की संख्या रही थी.
इस बार के चुनाव में पुरुष के में महिला मतदाताओं के की संख्या 7 हजार 77 ज्यादा हो चुकी है.
सरगुजा में आदिवासी मुद्दे
भाजपा ने छत्तीसगढ़ में लगातार धर्मांतरण और डिलिस्टिंग जैसे मुद्दे उठाए हैं. बीजेपी को उम्मदी है कि यह मुद्दा चुनाव में आदिवासियों को उसके पाले में ला सकता है.
हांलकि चुनाव की घोषणा के बाद अब बीजेपी इस मुद्दे पर थोड़ी ख़ामोश नज़र आ रही है.
इसके अलावा कांग्रेस की तरफ से बीजेपी पर आदिवासियों के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण के प्रस्ताव को गवर्नर के ज़रिए रोकेने का आरोप लगाया जा सकता है.
बीजेपी की तरफ से आदिवासियों को सम्मान और पहचान देने जैसे दावे किये जा सकते हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार की आदिवासियों के लिए विभिन्न योजनाओं की चर्चा भी बीजेपी चुनाव में ज़रूर करेगी.
कोयला खनन
सरगुजा क्षेत्र घने जंगल और महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों के लिए जाना जाता है. इसे एक समय नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता था, लेकिन बाद में इस खतरे पर काबू पा लिया गया.
यहां का प्रमुख मुद्दा मानव-हाथी संघर्ष और कोयला खनन रहे हैं.
अंमबिकापुर में आवंटित कोयला खदान के कारण प्रभावित लोंगों के लिए पुनर्वास और नौकरियां क्षेत्र की कुछ सीटों पर प्रमुख मुद्दा रहा है.
एक अन्य मुद्दा जंगली हाथियों का है जो गाँव के इलाकों में उत्पात मचा रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों में गुस्सा है.
स्थानीय प्रशासन का कहना है कि अब एक हाथी गलियारे पर काम किया गया है. इसके साथ ही एक नई रिंग रोड बनाई जाएगी. जिससे आदिवासी क्षेत्रों में रहने वालों लोगों को सुविधा मिल सकें.
हसदेव अरण्य आंदोलन
सरगुजा संभाग में हसदेव अरण्य में कोयला खदान के लिए पेड़ों की कटाई के विरोध में आदिवासियों ने एक बड़ा आंदोलन तैयार किया था.
इस आंदोलन की गूंज दिल्ली तक पहुंची थी. इस आंदोलन के दबाव में कांग्रेस की राज्य सरकार को इस परियोजना पर रोक लगानी पड़ी थी.
लेकिन क्या यह मुद्दा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है. यह देखना होगा क्योंकि यह देखा गया है कि गुजरात में भी आदिवासियों ने सरकार को नदी जोड़ो परियोजना को रोकने पर मजबूर कर दिया था.
लेकिन इसका असर चुनाव में सत्ताधारी दल की संभावना पर नहीं पड़ा था. बल्कि सत्ताधारी बीजेपी को आदिवासी इलाकों में 2018 की तुलना में फायदा ही हुआ था.
सरगुजा ज़िले में आदिवासियों की जनसंख्या
2011 की जनगणना के अनुसार सरगुजा जिले की जनसंख्या 2,361,32 9 है. इस जिले की कुल जनसंख्या का 55% हिस्सा अनुसूचित जनजातियों का है. आदिम (PVTG) में पंडो और कोरवा हैं , जो अभी भी जंगल में रहते हैं.