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आदिवासी विधवा को अब भी झारखंड हाई कोर्ट के आदेश पर मुआवजे का है इंतजार

झारखंड हाई कोर्ट ने इस साल अगस्त में आदिवासी ग्रामीण ब्रह्मदेव सिंह की विधवा को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, जो दो साल पहले माओवादी विरोधी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए थे.

लातेहार जिले (Latehar district) में माओवादी होने के संदेह में सुरक्षाकर्मियों द्वारा कथित तौर पर मारे गए एक आदिवासी युवक की पत्नी को फैसले के तीन महीने बाद भी झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) के आदेश के मुताबिक मुआवजा नहीं मिला है.

झारखंड के लातेहार जिले के पीरी गांव (Piri village) की रहने वाली 24 वर्षीय जीरामणी देवी (Jiramani Devi) ने शनिवार शाम को जिले के डिप्टी कमीशनर के कार्यालय के माध्यम से झारखंड के गृह सचिव को संबोधित एक याचिका दायर की थी, जिसमें हाई कोर्ट के निर्देश के मुताबिक चार हफ्ते में मुआवजे के भुगतान में देरी के बारे में बताया गया था.

दरअसल, ने इस साल अगस्त में आदिवासी ग्रामीण ब्रह्मदेव सिंह (Brahmadev Singh) की विधवा को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, जो दो साल पहले माओवादी विरोधी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए थे.

कोर्ट ने तीन महीने के भीतर दोषी पुलिसकर्मियों की पहचान करने के लिए एक स्वतंत्र जांच का भी आदेश दिया था.

जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने जिरामणी की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने फैसले में झारखंड सरकार को निर्देश दिया है कि वह इस मामले की जांच के लिए झारखंड के डीजीपी और सचिव गृह विभाग के माध्यम से एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के तहत जांचकर्ताओं की एक नई टीम का गठन करें और तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें.

अदालत ने राज्य को आदेश की प्राप्ति की तारीख से चार हफ्ते के भीतर याचिकाकर्ता (जीरामनी) के पक्ष में 5 लाख रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया और निर्देश दिया कि इसे झारखंड सरकार के गृह सचिव के माध्यम से उपरोक्त अवधि में लागू किया जाए.

झारखंड पुलिस ने हाई कोर्ट के समक्ष स्वीकार किया था कि सिंह की मौत पुलिस की गोली से हुई थी.

मानवाधिकार संगठनों के गठबंधन झारखंड जनाधिकार महासभा ने दो साल पहले मीडिया के साथ साझा की गई अपनी फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा था कि 12 जून, 2021 को माओवादी खोज अभियान पर निकले सुरक्षा बलों ने पीरी गांव में निर्दोष आदिवासियों पर गोलियां चलाईं, जिस दौरान सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

मोहन सिंह खेरवार, जो महासभा के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, उन्होंने कानूनी लड़ाई में जीरामनी की मदद की है.

उन्होंने कहा, “पुलिस को जिरामनी देवी की एफआईआर दर्ज करने में एक साल से अधिक समय लग गया, जो आदिवासियों के प्रति उसके वास्तविक रवैये को दर्शाता है. फैसले ने फिर दिखाया है कि कैसे निर्दोष आदिवासी फर्जी मामलों/फर्जी मुठभेड़ों/राज्य दमन के शिकार हैं और उनके परिवारों के लिए न्याय पाना कितना मुश्किल है. हाई कोर्ट जाने के बाद भी लगभग तीन महीने हो गए हैं और विधवा को अभी तक एक पैसा भी नहीं मिला है.”

क्या है मामला?

लातेहार जिला के गारू थाना के अंतर्गत पिरी गांव के लोग 12 जून 2021 को हर साल की तरह सरहुल पर्व के लिए पारंपरिक शिकार करने घर से निकले थे. इसी बीच सुरक्षाबलों ने उन पर गोलीबारी शुरू कर दी. इसे नक्सल मुठभेड़ बताया गया. इसमें 24 वर्षीय ब्रह्मदेव सिंह की मौत हो गई.

पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि मौत “क्रॉस-फायरिंग” के परिणामस्वरूप हुई और मृतक सहित छह लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास समेत आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई.

वहीं दूसरी तरफ ब्रह्देव सिंह की पत्नी जीरामणी के हस्तक्षेप के बाद पुलिस के खिलाफ हत्या की एक और एफआईआर दर्ज की गई.

जीरामणी ने अपनी शिकायत में कहा है कि जब सुरक्षा बलों ने गोलियां चलाईं तो सिंह और उनके दोस्तों ने अपनी बंदूकें छोड़ दीं और चिल्लाए कि वो माओवादी नहीं हैं. लेकिन सुरक्षा बलों ने उन पर गोलियां चलाना जारी रखा.

जब ब्रह्मदेव सिंह की मौसी मौके पर पहुंची तो उन्होंने सिंह को घायल हालत में लेकिन जीवित देखा. सुरक्षा बलों ने उन्हें वहां से हटा दिया और सिंह को अपने साथ ले गए. बाद में ब्रह्मदेव का शरीर जंगल में मृत पाया गया.

जीरामणी ने यह भी आरोप लगाया है कि जब वह घर से निकला था तो सिंह ने एक अलग रंग की शर्ट पहन रखी थी और सुरक्षा बलों ने “मुठभेड़” के बाद उसके कपड़े बदल दिए.

पुलिस और जीरामणी दोनों द्वारा दायर एफआईआर की जांच बाद में झारखंड के अपराध जांच विभाग (Crime Investigation Department) ने की. जिसने यह स्वीकार करते हुए क्लोजर रिपोर्ट दायर की कि गलती के कारण ब्रह्मदेव की मौत हुई.

इस मामले में सरकार की ओर से बताया गया था कि घटना के दिन पुलिस के साथ नक्सली मुठभेड़ नहीं हुई थी. पुलिस लातेहार के पिरी जंगल में सर्च अभियान चला रही थी. उसी दौरान कुछ यवकों ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. पुलिस ने भी इसके बाद जवाबी फायरिंग की.

जबकि प्रार्थी की ओर से कहा गया कि मृतक ने कोई फायरिंग नहीं की थी. पुलिस ने उसे नक्सली बता हत्या कर दी थी. अब यह साबित हो चुका है कि इस पूरे मामले में सुरक्षाबलों से ना सिर्फ़ चूक हुई थी, बल्कि उन्होंने पूरे मामले को दबाने का प्रयास किया था.

इस पूरे मामले में अफ़सोस की बात ये है कि पुलिस फ़ायरिंग में मारे गए युवक के परिवार को अभी तक भरण-पोषण के लिए मुआवज़ा नहीं मिला है.

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