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मयूरभंज: नौकरी की आस में ज़मीन देने वाले आदिवासी अभी तक खाली हाथ हैं

आदिवासियों को हक की बजाय केवल उम्मीद मिली. यह एक सोचने का विषय है कि पंडित रघुनाथ मुर्मू मैडिकल कॉलेज 2017 में बनकर तैयार हो गया था किंतु जिन आदिवासियों ने नौकरी के अवसर पाने की उम्मीद में अपनी भूमि दी थी, उन्हें अबतक सही मायने में न तो स्थाई बस्ती बनाने के लिए भूमि मिली है, न ही नौकरी के मौके.   

शंखभांगा पंचायत की महिलाओं, बच्चों और युवाओं सहित सैकड़ों आदिवासियों ने सोमवार को रंगमटिया गांव के समीप जलेश्वर-बारीपदा सड़क को विरोध प्रदर्शन करते हुए बाधित किया.

शंखभंगा मयूरभंज जिले के बारीपदा सदर पुलिस स्टेशन के अंर्तगत आता है. यहां के आदिवासी इस बात से नाराज़ हैं कि क्षेत्र के आम युवा को यहां सरकारी संस्थाओं में नौकरी के अवसर नहीं दिए जाते.

इसके साथ ही जिन आदिवासियों के पास भूमि नहीं है वे स्थाई बस्ती बनाने के लिए भूमि की मांग भी कर रहे हैं.

बांस और घासफूस से अस्थाई बैरिकेड्स लगाकर युवकों के साथ – साथ महिलाएं और बच्चे सड़क पर बैठ गए.

इस प्रदर्शन के कारण बालासोर जिले के जलेश्वर और बारीपदा जिले के बीच सात घंटे से अधिक समय तक वाहनों की आवाजाही बंद रही किंतु आपातकालीन उद्देश्यों जैसे एंबुलेंस के लिए रास्ता छोड़ दिया गया.

रंगमटिया गांव के निवासी रामजीत हंसदा और बादल हेम्ब्रम ने कहा कि पंडित रघुनाथ मुर्मू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की स्थापना के लिए 180 एकड़ जमीन देने के बाद भी स्थानीय जनजातियों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया.

ये भी आरोप लगाए गए हैं कि चिकित्सा संस्थान, ड्राइविंग परीक्षण केंद्र और एफसीआई के चावल भंडार केंद्र के निर्माण के बाद भी इससे प्रभावित आदिवासियों को उनकी योग्यता और क्षमतानुसार कोई नौकरी का अवसर नहीं मिला है.

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आश्वासन के बाद भी भूमिहीन आदिवासियों के पास रहने के लिए स्थाई बस्तियाँ नहीं हैं और वे बदहाली में जीने को मजबूर हैं.   

सदर थाने की प्रभारी अधिकारी  मधुमिता मोहंती ने जानकारी दी कि बारीपद के तहसीलदार ने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया कि वे उनकी मांगों को उच्च अधिकारियों के सामने रखेंगे और उसके पश्चात यह मामला शांत हुआ और सडक जाम हटाया गया.

इस बार भी आदिवासियों को हक की बजाय केवल उम्मीद मिली. यह एक सोचने का विषय है कि पंडित रघुनाथ मुर्मू मैडिकल कॉलेज 2017 में बनकर तैयार हो गया था किंतु जिन आदिवासियों ने नौकरी के अवसर पाने की उम्मीद में अपनी भूमि दी थी, उन्हें अबतक सही मायने में न तो स्थाई बस्ती बनाने के लिए भूमि मिली है, न ही नौकरी के मौके.   

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