HomeAdivasi Dailyकर्नाटक में 83 प्रतिशत वन अधिकार के दावे खारिज, आदिवासियों में नाराजगी

कर्नाटक में 83 प्रतिशत वन अधिकार के दावे खारिज, आदिवासियों में नाराजगी

30 नवंबर तक कर्नाटक में प्रस्तुत किए गए 2 लाख 85 हजार 874 व्यक्तिगत वन अधिकार और 5 हजार 862 सामुदायिक वन अधिकार दावों में से 14 हजार 783 आईएफआर और 1 हजार 344 सीएफआर दावों के टाइटल वितरित किए गए. जबकि 2 लाख 40 हजार 794 आईएफआर और 3 हजार 766 सीएफआर दावों को राज्य में खारिज कर दिया गया.

कर्नाटक में वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act) के तहत व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights) और सामुदायिक वन अधिकार (Community Forest Rights) के अधिकांश दावों को खारिज किया जा रहा है. जिससे आदिवासी समुदाय के लोगों में गुस्सा है.

कर्नाटक के मैसूर और चामराजनगर सहित कई जिलों में आदिवासी बड़ी संख्या में हैं.

आदिवासी मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक नवंबर के अंत तक कर्नाटक में एफआरए के तहत 2 लाख 91 हजार 736 दावे प्रस्तुत किए गए थे.

इनमें से 2 लाख 44 हजार 560 को इसी अवधि में खारिज कर दिया गया था. सोमवार को लोकसभा में चार सांसदों द्वारा उठाए गए एक सवाल के जवाब में बिश्वेश्वर टुडू ने ये जानकारी दी.

30 नवंबर तक कर्नाटक में प्रस्तुत किए गए 2 लाख 85 हजार 874 व्यक्तिगत वन अधिकार और 5 हजार 862 सामुदायिक वन अधिकार दावों में से 14 हजार 783 आईएफआर और 1 हजार 344 सीएफआर दावों के टाइटल वितरित किए गए. जबकि 2 लाख 40 हजार 794 आईएफआर और 3 हजार 766 सीएफआर दावों को राज्य में खारिज कर दिया गया.

एचडी कोटे में बसवनगिरी बस्ती से राज्य आदिवासी मंच के संयोजक विजयकुमार ने कहा कि आदिवासी परिवारों को तीन फॉर्म भरने के लिए जारी किए गए थे – व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व के लिए फॉर्म ए, सामुदायिक अधिकारों के लिए फॉर्म बी, और वन संसाधनों के लिए फॉर्म सी.

अधिनियम के अनुसार, हाड़ी स्तर की बैठकों में लिए गए निर्णय अंतिम होते हैं. ये बैठकें पंचायत विकास अधिकारियों (Panchayat Development Officers) द्वारा की गई थीं.

उन्होंने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत हैमलेट यानि बस्ती स्तर की बैठकों में लिए गए निर्णयों को उच्च स्तर पर खारिज कर दिया गया जिसके परिणामस्वरूप यह संकट उत्पन्न हुआ.

राज्य के पहले आदिवासी एमएलसी शांताराम बुदना सिद्दी ने कहा कि वह इस देरी के शिकार लोगों में से एक हैं. उन्होंने कहा, “इस मुद्दे को कई मंचों पर उठाया गया है और समस्या को हल करने के प्रयास किए जा रहे हैं.”

आवेदन की अस्वीकृति ही एकमात्र समस्या नहीं है. उन्होंने कहा कि आंशिक भूमि अधिकारों को मंजूरी देना भी एक चुनौती है. निजी तौर पर मैं भी इससे प्रभावित हूं.

सिद्दी ने कहा, “जब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने बेंगलुरु का दौरा किया तो हमने इसे आयोग के संज्ञान में लाया. आयोग अप्रैल में एक जाँच समिति भेज रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि बड़ी संख्या में आवेदन क्यों खारिज किए गए. यह समिति चामराजनगर और रामनगर का दौरा करेगी. यह अन्य जिलों के आदिवासी समुदाय के सदस्यों/संगठनों के साथ भी बातचीत करेगी.”

कर्नाटक के अलावा अगर अन्य राज्यों व्यक्तिगत वन अधिकार आवेदनों और वितरित दावों को देखे तो… आंकड़ों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में जमा किए गए 2 लाख 84 हजार 725 आवेदनों में से 2 लाख 19 हजार 803 शीर्षक वितरित किए गए. असम में 1 लाख 48 हजार 965 आवेदनों में से 58 हजार 802 शीर्षक जारी किए गए. छत्तीसगढ़ में 9 लाख 22 हजार 346 दावे प्राप्त हुए और 4 लाख 91 हजार 805 टाइटल डीड जारी किए गए.

जबकि गुजरात में 1 लाख 90 हजार 56 दावे प्राप्त हुए और 96 हाजर 283 टाइटल डीड जारी किए गए. मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में 6 लाख 27 हजार 513 दावे प्राप्त हुए और 2 लाख 94 हजार 585 टाइटल जारी किए गए. वहीं पश्चिम बंगाल में 1 लाख 42 हजार 81 दावों के मुकाबले 45 हजार 130 टाइटल डीड जारी किए गए. महाराष्ट्र में 3 लाख 74 हजार 716 दावों की तुलना में 45 हजार 188 टाइटल डीड जारी किए गए.

कर्नाटक में मई महीने में विधान सभा के चुनाव है, उम्मीद है कि सरकार चुनाव के दबाव में ही सही आदिवासी संगठनों की माँग पर कुछ ठोस कार्रवाइयाँ करेगी.

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