HomeAdivasi Dailyउत्तर बंगाल को अलग राज्य बनाने की मांग के लिए बना मोर्चा

उत्तर बंगाल को अलग राज्य बनाने की मांग के लिए बना मोर्चा

यूनाइटेड फ्रंट की यह मांग है की उत्तर बंगाल को एक अलग राज्य बनाया जाए. जिसमें पश्चिम बंगाल(separate west bengal) के आठ ज़िलों को शामिल किया जाएगा.

आगामी लोकसभा चुनाव होने में लगभग एक साल रह गया है. लेकिन चुनाव आने से पहले ही पश्चिम बंगाल की राजनीति में गर्मागर्मी का माहौल बना हुआ है.

कुछ राजनीतिक दलों और संगठनों द्वारा कई साल से कामतापुरियों (Kamtapuris), राजबंशियों(Rajbanshis) और गोरखाओं (Gorkhas) के लिए अलग राज्यों की मांग हो रही थी. अब ये सभी संगठन एकजुट हो गए है और इन सभी ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट (united front) के नाम से नए संगठन का निमार्ण किया है.

इन संगठनों की यह मांग है की उत्तर बंगाल (North bengal) को एक अलग राज्य बनाया जाए. जिसमें पश्चिम बंगाल(separate west bengal) के आठ ज़िलों को शामिल किया जाएगा.

इसके साथ ही ऐसी भी मांग की जा रही है की लोकसभा में आठ और विधानसभा में 54 सीटें राज्य के लिए रखी जानी चाहिए.

इस मांग को लेकर फ्रंट जल्द ही अपना पहला कदम उठा सकता है. पहले कदम के रूप में संगठन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन सौंपेगा.

पिछले हफ्ते शुक्रवार को राज्य के सिलीगुड़ी में संगठन की एक मीटिंग रखी गई थी. जिसमें यह फैसला लिया गया की 20 दिसंबर को संगठन द्वारा राजधानी दिल्ली में धरना प्रदर्शन किया जाएगा.

इसके अलावा फ्रंट द्वारा जनवरी में सिलीगुड़ी, कूच बिहार और रायगंज (उत्तर दिनाजपुर) में भी बड़ी रैलियां निकाली जाएगी.

फ्रंट के समन्वयक और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य, दीपेंद्र निरौला ने बताया की पहले अलग-अलग समुदयों द्वारा उत्तर बंगाल को राज्य बनाने की मांग की गई थी. जिसकी वज़ह से क्षेत्र ने तीन अलग-अलग आंदोलन देखे. लेकिन अब हम सब एकजुट हो गए है.

उन्होंने ये भी बताया की सालों से न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने उनकी मांग पर कोई खास दिलचस्पी दिखाई है. इसलिए अब सब एक साथ हो गए है. उनके एक साथ होने की वजह ये भी है की मौजूदा सरकार द्वारा उत्तर बंगाल में कोई विकास कार्य नहीं हुआ है.

फ्रंट ये चाहता है की आगमी शीतकालीन सत्र में मौजूदा सत्ताधारी सरकार बीजेपी संसद में मांग को लेकर अपना पक्ष स्पष्ट कर दें.

फ्रंट के प्रवक्ता और कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता, उत्तम रॉय ने कहा, “ फ्रंट में शामिल हुई कई पार्टियों और संगठन ने बीजेपी का हमेशा सहयोग किया है. पर बीजेपी हम से बस झूठे वादे ही करती आई है. उत्तर बंगाल के लिए कोई भी विकास कार्य नहीं किया गया. हम जल्द अपना ज्ञापन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को सौंपेगे. अगर लोकसभा चुनाव पोलिंग से पहले बीजेपी हमारी मांग को शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में नहीं उठाती तो हम फिर दिल्ली और पश्चिम बंगाल के अलग अलग ज़िलों में धरना करेंगे.”

यह बात भी ध्यान देने वाली है की 2019 के चुनाव में गोरखा, राजबंशी और आदिवासी समुदायों के समर्थन से बीजेपी ने उत्तर बंगाल में सीट जीती थी.

क्या है आंदोलन का इतिहास

1980  में सबसे पहले अलग गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन की शुरूआत नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) के संस्थापक, सुभाष घीसिंग ने की थी. हालांकि उन्होंने आंदोलन के लिए हिंसा का रास्ता चुना था.

फिर संगठन के सहयोगी बिमल गुरुंग अलग हो गए. अलग होने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) का निर्माण किया था. जिसके बाद अलग राज्य की मांग फिर से उठाई गई.

2017 में इस मांग ने फिर से हिंसक रूप ले लिया. दरअसल इस साल दार्जिलिंग पहाड़ियों में 104 दिनों के बंद और हिंसक आंदोलन के साथ यह मुद्दा फिर से उठाया गया.

जिसके फलस्वरूप गुरुंग और अन्य नेताओं के खिलाफ यूएपीए की धाराओं सहित कई मामले दर्ज किए गए थे.

बाद में गुरुंग ने तृणमूल कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया था.

कामतापुरी,  जिन्हें कोच राजबंशी के नाम से जाना जाता है. ये कूच बिहार ज़िले का एक एससी समुदाय हैं. इन्होंने भी कामतापुर के लिए अलग राज्य की मांग की थी.

जिसमें उत्तरी बंगाल के आठ में से सात ज़िले और असम के चार ज़िले- कोकराझार, बोंगाईगांव, धुबरी और गोलपारा, किशनगंज शामिल थे.

यह मांग पहली बार 1995 में एक सशस्त्र उग्रवादी संगठन कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (केएलओ) के गठन के बाद उठाई गई थी.

हालाँकि, 2000 के दशक की शुरुआत में केएलओ और ऑल कामतापुर स्टूडेंट्स यूनियन (एकेएसयू) के कई कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के कारण आंदोलन विफल हो गया.

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