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पश्चिम बंगाल: खाना चुराने के आरोप में भीड़ के कथित हमले के बाद 12 वर्षीय आदिवासी लड़के की मौत

पुलिस ने अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया है. जिसमें मनोरंजन मल भी शामिल है, जिस पर लिंचिंग को भड़काने और इसमें हिस्सा लेने का आरोप है.

पश्चिम बंगाल (West Bengal) के पश्चिम मेदिनीपुर (West Medinipur) जिले में भीड़ द्वारा कथित तौर पर हमला किए जाने के बाद 12 वर्षीय एक आदिवासी लड़के की मौत हो गई. जिससे पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई.

लोढ़ा शाबर समुदाय (Lodha Shabar community) के सदस्य और सबांग के बोरोचारा गांव के निवासी सुभा नायेक (Subha Nayek) को एक पेड़ से बांध दिया गया और कथित तौर पर खाना चुराने के लिए यातना दी गई.

यह घटना बुधवार, 27 सितंबर को हुई. जब एक स्थानीय फूड स्टॉल का मालिक कुछ देर के लिए अपनी दुकान से बाहर गया था. वापस लौटने पर उसे खाने का सामान गायब मिला और उसने किसी पर चोरी का आरोप लगाते हुए शोर मचा दिया.

आसपास के निवासियों ने भी बताया कि मवेशियों को खिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एल्यूमीनियम का बर्तन भी गायब हो गया था. जिसके बाद उन लोगों को दुकान के सामने अपनी झोपड़ी के पास बैठे सुभा नायेक पर संदेह हुआ. लोगों का एक समूह नायक के घर में घुस गया और यह पुष्टि करने के लिए सब कुछ खंगाल दिया कि उसने कुछ चोरी तो नहीं किया है. बाद में उन्होंने उसे छोड़ दिया.

लेकिन फिर स्थानीय तृणमूल कांग्रेस नेता मनोरंजन मल के घटनास्थल पर आने के बाद स्थिति बदल गई. उन्होंने कथित तौर पर उत्तेजित स्थानीय लोगों को मामले को अपने हाथ में लेने और संदिग्ध को सबक सिखाने के लिए उकसाया.

जिसके बाद सुभा को एक कमरे में ले जाया गया जहां उसे शारीरिक यातनाएं दी गईं और उसका सिर मुंडवा दिया गया.

एक प्रत्यक्षदर्शी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “यहां तक कि नेता (मनोरंजन मल) भी उसे फुटबॉल की तरह किक कर रहे थे. वह भूखा था और बार-बार पानी मांग रहा था. लेकिन वे कह रहे थे कि लोढ़ा चोर होता हैं. उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए.”

दरअसल, लोढ़ा शाबर समुदाय को केंद्र सरकार द्वारा 75 ‘विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों’ (PVTG) में से एक में वर्गीकृत किया गया है और इसे अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है.

लेकिन विशेष जनजाति को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और अपमानजनक रूप से उसे ‘आपराधिक जनजाति’ करार दिया जाता है. इस घटना की तरह चोरी या अपराध की स्थिति में दशकों पुराने कलंक के कारण संदेह की सुई समुदाय के सदस्यों पर जाती है.

अगली सुबह सुभा का निर्जीव शरीर उसकी झोपड़ी के सामने पाया गया. उसके पूरे शरीर पर चोटों के निशान थे. शुरुआत में स्थानीय राजनेताओं ने इसे आत्महत्या का मामला बताने का प्रयास किया, यह कहते हुए कि लड़के ने जहर खाया था.

सुभा की माँ बालिका नायेक ने कहा, “हमारे पास खेती करने के लिए जमीन नहीं है, खाने के लिए खाना नहीं है, हम जहर क्यों रखेंगे? नेता हमें क्यों नहीं मार सकते? हम शाबर दलित हैं इसीलिए बाबू (नेता) हमें फंसाते हैं और इस तरह मार देते हैं.”

पुलिस ने अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया है. जिसमें मनोरंजन मल भी शामिल है, जिस पर लिंचिंग को भड़काने और इसमें हिस्सा लेने का आरोप है.

आदिवासी अधिकार मंच की नेता गीता हांसदा ने मांग की है, “लोढ़ा शाबर समुदाय, जिससे सुभा नायेक आते थे. उन्होंने पिछले पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को वोट नहीं दिया था और इस बात नाराजगी हो सकती थी. अब उन्होंने बदला ले लिया है. मंत्री डॉ मानस रंजन भुंइया दोषियों को संरक्षण देते रहे हैं. हम निष्पक्ष जांच और दोषियों के लिए मौत की सजा चाहते हैं.”

वहीं डॉ. मानस रंजन भुंइया ने आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ”मैंने आरोपियों को गिरफ्तार कराने की पहल की. लड़के की पीट-पीटकर हत्या करने के बाद उसने घर लौटकर जहर पी लिया, जिससे उसके मुंह से एसिड निकलने लगा. इस मामले में स्थानीय पंचायत सदस्य भी शामिल हैं. मैंने पुलिस को सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है और इसमें कोई राजनीति शामिल नहीं होगी.”

सीपीआई (एम) पश्चिम बंगाल इकाई के सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा, “दिल्ली से लेकर सबांग तक कट्टरपंथी और सांप्रदायिक राजनीति के साथ-साथ गरीबों के प्रति नफरत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. यह सत्ता के क्रूर अहंकार और क्रूर बहुसंख्यकवाद का परिणाम है.”

इस घटना ने एक बार फिर राज्य में ऐतिहासिक रूप से कलंकित और हाशिये पर पड़े लोढ़ा शाबर समुदाय की असुरक्षा को उजागर कर दिया है. लोढ़ा मुख्य रूप से जंगली जड़ें, कंद और खाने योग्य पत्तियां इकट्ठा करने और जीविका के लिए शिकार पर निर्भर हैं. उन्हें पश्चिम बंगाल के पश्चिम मेदिनीपुर और झाड़ग्राम जिलों में केंद्रित आर्थिक रूप से वंचित जनजाति माना जाता है.

1992 में इस समुदाय की पहली महिला स्नातक चुन्नी कोटल ने अधिकारियों द्वारा वर्षों के उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के बाद आत्महत्या कर ली थी. प्रसिद्ध लेखक-कार्यकर्ता महाश्वेता देवी ने 1994 में अपनी पुस्तक ब्याधखंडा में समुदाय के जीवन और चुनौतियों पर प्रकाश डाला था.

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