HomeAdivasi Dailyसरना धर्म के नाम पर आदिवासी सेंगल अभियान की राजनीति क्या है?

सरना धर्म के नाम पर आदिवासी सेंगल अभियान की राजनीति क्या है?

आदिवासी सेंगल अभियान सरना धर्म के बहाने आदिवासी इलाकों मे धुर्वीकरण की योजना पर ही काम करता हुआ नज़र आता है.

झारखंड (Jharkhand) के एक संगठन आदिवासी सेंगल अभियान (Adivasi Sengal Abhiyan) भारत बंद (bharat bandh) की घोषणा की है. यह ‘भारत बंद’ 30 दिसंबर  को किया जाएगा.

इस संगठन ने दावा किया है कि उसके सभी कार्यकर्ता सड़कों और रेल मार्ग को बाधित करेंगे.

आदिवासी सेंगल अभियान (एएसए) की लंबे समय से ये मांग है की आदिवासियों के सरना धर्म (Sarna dharam) को बाकी धर्मों की तरह एक अलग पहचान दी जाए.

इनका कहना है कि जनगणना के धर्म वाले कॉलम में सरना धर्म (sarna dharam code) को स्वतंत्र श्रेणी के तौर पर रखा जाए.

इस मांग के समर्थन में नवंबर 2020 में झारखंड विधानसभा में सर्वसम्मति द्वारा एक प्रस्ताव (proposal of sarna dharam code in Jharkhand vidhanshaba 2020) पारित किया गया था.

इस प्रस्ताव के लिए झारखंड विधान सभा का एक दिन का विशेष सत्र भी बुलाया गया था.

जिसके बाद यह प्रस्ताव केंद्र सरकार तक पहुंचा, लेकिन आदिवासियों की लंबे समय से चल रही इस मांग पर केंद्र सरकार ने कुछ नहीं कहा है.

एएसए (ASA) के अध्यक्ष सालखन मुर्मू (Salkhan Murmu) ने कहा कि सरना धर्म कोड देश के 15 करोड़ आदिवासियों की पहचान है और आदिवासी समुदाय के धर्म को मान्यता न देना “संवैधानिक अपराध के समान” है.

उन्होंने कहा कि समुदाय को अन्य धर्मों को अपनाने के लिए मजबूर करना उन्हें अन्य धर्म की गुलामी स्वीकार करने के लिए मजबूर करने  जैसा है.

सरना धर्म के पक्ष में आंदोलन करने वाले आदिवासी सेंगल अभियान के नेता सालखन मुर्मू बीजेपी के सांसद रहे हैं.

इसके अलावा वे जब भी सरना धर्म या आदिवासियों से जुड़े किसी अन्य मसले को उठाते हैं तो वे निशाने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेते हैं.

जबकि ये दोनों ही राज्य और उनके मुख्यमंत्री सरना धर्म का समर्थन करते हैं. उसके विपरीत सालखन मुर्मू बीजेपी या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में सोच-समझ कर शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.

जबकि सच्चाई ये है कि सरना धर्म कोड को मान्यता देने का फ़ैसला केंद्र सरकार के हाथ में है. दरअसल आदिवासी सेंगल अभियान सरना धर्म के नाम पर परोक्ष रूप से आदिवासी इलाकों में धर्मातंरण को मुद्दा बनाने का प्रयास ही कर रहा है.

क्या है सरना धर्म से जुड़ा राजनीतिक इतिहास

ब्रिटिश इंडिया के समय यानी 1871 में पहली बार जनगणना हुई थी, तब आदिवासियों के लिए अलग से धर्म कोड की व्यवस्था की गई थी. ये व्यवस्था 1941 तक लागू रही.

लेकिन आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो आदिवासियों को शेड्यूल ट्राइब्स यानी अनुसूचित जनजाति कहा जाने लगा और जनगणना में ‘अन्य’ नाम से धर्म की कैटेगरी बना दी गई.

2011 के समय भी जब जनगणना की गई तो उस समय भी करीब 49 लाख से ज्यादा लोगों ने धर्म के कॉलम में अन्य नहीं ‘सरना’ भरा था. इन 49 लाख लोगों में से 42 लाख लोग झारखंड में रहते हैं.

1951 के बाद से ही सरना धर्म की ये मांग चली आ रही है.

क्या है सरना धर्म?

सरना धर्म के लोग वो है जो प्रकृति की पूजा करते हैं. झारखंड में सरना धर्म को मानने वालों की बड़ी संख्या है और ओडिशा, बंगाल में इनकी कुछ आबादी रहती है.

2011 की जनगणना के अनुसार 79 लाख से ज्यादा लोगों ने धर्म के कॉलम में ‘अन्य’ भरा. लेकिन 49 लाख से ज्यादा ने धर्म के कॉलम में लोगों में अन्य नहीं ‘सरना’ भरा.

सरना धर्म के लोग खुद को प्रकृति के पुजारी बताते हैं और किसी ईश्वर या मूर्ति की नहीं बल्कि प्रकृति की पूजा करते हैं.

खुद को सरना धर्म से जुड़ा हुआ मानने वाले लोग तीन तरह की पूजा करते हैं. पहले धर्मेश की पूजा. दूसरी सरना मां की पूजा. और तीसरा जंगल की पूजा.

वहीं इनमें पूर्वजों की पूजा के लिए समर्पित त्योहार भी होते हैं. सरना धर्म के लिए आंदोलन कर रहे आदिवासी कहते हैं कि उनका धर्म, हिंदू धर्म से अलग है

सरना को अलग धर्म बनाने की मांग 80 के दशक से चली आ रही है. तब से लेकर अब तक ना जाने कितनी सरकार आई और गई, लेकिन किसी ने भी इनकी ये मांग अब तक पूरी नहीं की है.

अब देखना ये होगा की क्या आगमी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इनकी ये मांग पूरी होती है?

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