HomeGround Reportलहरीबाई को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, भूमि का अधिकार नहीं मिला

लहरीबाई को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, भूमि का अधिकार नहीं मिला

लहरीबाई को मिलेट्स एंबेसडर घोषित किया गया है. उन्होंने फोन नहीं लिया है क्योंकि वे डरती हैं कि फोन बार बार बजता रहेगा और उनके काम का नुकसान होगा. लहरीबाई के काम की सराहना खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की है. आज पूरा देश उन्हें जानता है. लेकिन वे दुखी हैं, क्योंकि सरकार ने उन्हें सम्मान दिया लेकिन अधिकार नहीं दिया है.

मैं भी भारत की टीम 17 दिसबंर को मध्य प्रदेश के डिंडोरी (Dindori) पहुंची थी. यहां हमें बैगा आदिवासियों (Baiga Adivasi) से मिलना था. इस सिलसिले में हमारी सूचि में दो नाम प्राथमिकता पर थे.

पहला नाम लहरी बाई (Lahari Bai) का था जिन्हें पूरा देश में मिलेट्स एंबेसडर (Millets ambassador) के तौर पर जानता है. दूसरा नाम था पद्मश्री अर्जुन सिंह धुर्वे, जिन्होंने बैगा नाच और संस्कृति के लिए अथक काम किया है. 

अर्जुन सिंह धुर्वे से संपर्क करने में कोई परेशानी नहीं हुई थी. मंडला के मित्र दिनेश भारतीय के ज़रिए हम आसानी से उन तक पहुंच गए थे. लेकिन लहरी बाई से संपर्क नहीं हो पा रहा था. 

22 दिसबंर तक हम कोशिश करते रहे कि उनसे संपर्क साधा जा सके, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इस कोशिश में हमने उनके गांव एक आदमी भी भेजा था. लेकिन उन्होंने संदेश दिया कि लहरीबाई गांव में नहीं हैं.

23 दिसंबर को हमें दिल्ली के लिए निकलना था और शाम 6 बजे तक हर हाल में जबलपुर पहुंचना था. लेकिन हम लहरीबाई से मिले बिना डिंडोरी छोड़ना नहीं चाहते थे. 

लेकिन दुविधा ये थी कि लहरी बाई का गावं और जबलपुर विपरीत दिशाओं में थे. डिंडोरी से करीब 80 किलोमीटर दूर उनका गांव है जिसका नाम सिलपीढ़ी है.

हमने तय किया कि हम लहरीबाई के गांव जाएंगे और हम तुरंत निकल पड़े. उस समय सुबह के करीब 9 बजे होंगे. हम लोग करीब 11.00 बजे सिलपीढ़ी पहुंच गए. लेकिन गांव में लहरीबाई के घर पर ताला लगा था. 

हम लोग पास ही गांव के प्राइमरी स्कूल की तरफ गए तो एक बुजुर्ग दिखाई दे गए. उन्होंने बताया कि लहरीबाई खेत में मिल सकती है. उन्होंने इतना कंफर्म कर दिया था कि लहरीबाई गांव लौट आई हैं. 

अपने ड्राइवर की सलाह के खिलाफ़ हमने यह ठाना कि हम लहरीबाई के खेत में जाएंगे. हम जंगल में खेतों पर काम करते लोगों से पूछते हुए उनके खेत तक पहुंच गए.

जो दृश्य हमारे सामने था, उसकी कल्पना हमने बिलकुल भी नहीं की थी. एक मैली-कुचेली मैक्सी पहने लहरी बाई खेत में कोदो की कटी हुई फ़सल को जमा कर रही थी.

उनके पिता एक लंगोट और स्वेटर में थे. उनकी मां भी खेत में काम में जुटी थीं. लहरीबाई से बातचीत शुरू हुई तो सबसे पहले मैने उनसे शिकायत दर्ज कराई कि एक सप्ताह से हम उनसे मिलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे पता नहीं कहां गायव थीं.

इस पर जवाब दिया था, “फोन ले लूं तो सारा दिन फोन ही आता रहता है, खेत में काम करने का समय ही नहीं बचता है.” 

इसके बाद उनके माता-पिता से पहले बातचीत हुई. इस बातचीत में यह पता चला कि उन्हें इस बात का अहसास है कि उनकी बेटी का नाम दूर दूर तक लोग जानते हैं. लेकिन जब मैने उनसे पूछा कि क्या उन्हें पता है कि उनकी बेटी को कौन सा राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला है, तो वे जवाब नहीं दे पाये.

वैसे लहरीबाई को भी नहीं जानती हैं कि पारंपरिक बीजों को बचाने और उनके प्रसार-प्रचार के लिए जो पुरुस्कार मिला है उसका नाम क्या है. 

लहरीबाई से लंबी बातचीत हुई जिसमें उन्होंने अपनी जीवन यात्रा, बेवर खेती (Jhoom Cultivation), बीजे बैंक (Seed Bank) के बारे में बताया.

लेकिन इस बातचीत के खत्म होते होते वे थोड़ी सी दुखी होने लगीं. इस दुख का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि जिस खेत पर उनका परिवार पीढियों से खेती कर रहा है, उस वनभूमि पर अभी तक उन्हें मालिकान अधिकार देने वाला पट्टा नहीं मिला है.

उन्होंने बताया कि पिछले डेढ़ साल से प्रशासन लगातार आश्वासन दे रहा है,. लेकिन पट्टा नहीं. अफ़सोस की बात ये है कि इन डेढ़ सालों में लहरीबाई को बिना कोई ख़र्च दिये प्रशासन कई कार्यक्रमों में बुलाता रहा है.

बीज बैंक में 150 से ज्यादा वैरायटी

लहरी बाई के घर में मिट्टी की जुड़ाई और खपरों से बने तीन कमरे हैं. एक कमरे में उनका परिवार रहता है. दूसरे में घर के अन्य सामान और तीसरे में सामुदायिक बेवर बीज बैंक है जिसमें 150 से ज्यादा वैरायटी के बीज उपलब्ध हैं. इसके लिए लहरी बाई ने बड़ी-बड़ी मिट्टी की कोठी भी बनाई है ताकि उसे सुरक्षित लंबे समय के लिए सुरक्षित रखा जा सके. 

लहरी बाई को उनके प्रयासों के लिए सरकार ने इसी साल यानि सिंतबंर 2023 में प्लांट जीनोम सेवियर फार्मर पुरस्कार से भी सम्मानित किया है.

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