HomeAdivasi Dailyअबूझमाड़िया: दुर्गम पहाड़ी जंगल में रहने वाले आदिवासी कौन हैं

अबूझमाड़िया: दुर्गम पहाड़ी जंगल में रहने वाले आदिवासी कौन हैं

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के नारायणपुर ज़िले में अबूझमाड़िया (Abujmaria) रहते हैं. यह एक दुर्गम इलाका है जहां के करीब 249 गांवों में ये आदिवासी रहते हैं. इन आदिवासियों को विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति (PVTG) की श्रेणी में रखा गया है.

‘अबूझमाड़िया’ जैसा की इसके नाम से ही पता चलता है, वो आदिवासी समुदाय जो पर्वतीय भूमि पर निवास करते हो.

अबूझमाड़ क्षेत्र और क्षेत्रवासियों को अबूझमाड़ या अबूझमाड़िया शब्द बाहरी समाज द्वारा दिया गया है. अबूझमाड़िया स्वयं को ‘मेटा कोईतोर’ और ‘पर्वतीय भूमि के निवासी’ कहते हैं और अपने क्षेत्र को मेटाभूम कहते है.

अबूझमाड़ शब्द हिन्दी भाषा के अबूझ+माड़ से मिलकर बना है, जिसमें अबूझ का मतलब अनजान और माड़ का  मतलब पहाड़ के निवासी है अर्थात अबूमाड़ का अर्थ ‘अनजान पहाड़ी भूमि के निवासी’ है.

ऐसा भी कहा जाता है की पहली बार अबूझमाड़ शब्द को उपयोग अंग्रेज़ अफ़सर कैप्टन सी.एल.आर. गलसफर्ड ने अपनी रिपोर्ट में ‘उबूझमार्ड’ शब्द के रूप में किया था.

यह आदिवासी छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले के ओरछा की सबसे बड़ी जनजाति है और राज्य की पांच पीवीटीजी( विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति) समुदायों में से एक है. 

अबूझमाड़ का क्षेत्रफल लगभग 3905 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जहां 23330 आदिवासी निवास करते है.

2015-16 में आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, रायपुर के सर्वेक्षण के अनुसार इस सर्वेक्षण अबूझमाड़िया जनजाति की जनसंख्या 23330 है, जिसमें 11456 पुरुष और 11874 महिलायें रहती है.

इतिहास

अबूझमाड़िया जनजाति की उत्पत्ति कैसे हुई है, इस बात का प्रमाण इतिहास में बहुत कम मौजूद है. पं. केदारनाथ ठाकुर के बस्तर भूषण (1908) नामक ग्रंथ के अनुसार माड़िये तीन प्रकार के हैं- वर्तमान में अबूझमाड़िया, कुवाकोंडा हल्के माड़िये और तेलंगे माड़िये (माड़िया अर्थात कोया) ये लोग गोंड हैं.

इसके अलावा अंग्रेज प्रशासक सर डब्ल्यू. वी. ग्रिगसन ने माड़िया समुदाय को उनके निवास के आधार पर दो भागों में बाटां था. पहला अबूझमाड़ पर्वतों में निवास करने वाले हिल माड़िया और दूसरा इंद्रावती नदी के दक्षिण भाग में निवास करने वाले बायसन हार्न माड़िया.

यह भी कहा जाता है की यह गोंड आदिवासियों की उपजनजाति है. इसलिए इस समुदाय में गोंड बोली का स्थानीय स्वरूप प्रचलित है.

माड़िया बोली को गोंड बोली का स्थानीय स्वरूप गियर्सन की लिग्विस्टिक सर्वे ऑफइंडिया भाग-IV में कहा गया है.

बस्तियां और घरों की बनावट

अबूझमाड़ क्षेत्र गहने वन और पहाड़ों से ढके हुए होते है और यहां के ग्राम छोटे-छोटे भागों में विभाजित होते है, जिन्हें पारा कहा जाता है.

इन पारा के मुख्य भाग में गली के दोनों ओर आवास होते हैं.

श्मशान व स्मृति स्तंभ क्षेत्र ग्राम से कुछ दूरी पर होता है. हालांकि कुछ ग्रामों में स्मृति स्तंभ ग्राम के भीतर स्थापित किए जाते हैं.

इसके अलावा ग्राम देवी और दूसरे देवी- देवताओं का मंदिर और ग्राम के मध्य में ‘घोटुल’ (युवागृह) होता है, जो चारों ओर लकड़ी के खंबों से घिरा हुआ होता है.

घोटुल क्या है

यह घोटुल अविवाहित युवक-युवतियों का मनोरंजन, सहशिक्षा केन्द्र अतिथि गृह तथा सभागृह होता है. ग्राम के अविवाहित युवक-युवतियाँ प्रतिदिन शाम को घोटुल में एकत्रित होते है.

इन युवक युवतियों को मनोरंजन के साथ-साथ जीवनोपयोगी शिक्षा व प्रशिक्षण दिया जाता है.

घोटुल के पास की बस्ती में रहने वाले बच्चे जैसे ही 8 से 10 वर्ष के होते है, उन्हे घोटुल भेजा जाता है और इनकी सदस्यता तब तक चलती है, जब तक इन युवक- युवती की शादी ना हो जाए.

यहां लड़कों को लेयोर और लड़कियों को लयस्कू कहा जाता है.

घोटुल का मुख्य सदस्य पटेल होता है. अगर घोटुल में कोई अतिथि रूकता है तो उनके खाने की व्यवस्था आदिवासी बस्तियों में रहने वाले लोग सब मिलकर करते हैं.

इसके अलावा विवाह, शोक, ग्राम सुरक्षा, ग्राम सेवा और त्योहार में घोटुल की मुख्य भूमिका होती है.

रहन-सहन

पुरूष धोती, लुंगी, बनियान तथा महिला साड़ी, ब्लाउज पहनते थे, लेकिन बाहरी लोगों के सम्पर्क आने के बाद वर्तमान में अबूझमाड़िया स्त्री-पुरूष की वेशभूषा में बदलाव आया है.

धोती, लुंगी और बनियान की जगह अब टी-शर्ट, शर्ट, हाफपेंट, फूलपेंट ने ले ली है.

इसके अलावा अबूझमाड़िया आभूषण के रूप में गले में ‘उबिंग’ (सिक्कों की माला), चीप माला, विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक व मोतियों की माला, गिलट के आभूषण, कलाई में कांच व विभिन्न धातुओं की चूड़ियां, अंगूठी, तोड़ा (पैरों में पहनने का आभूषण), पड़ी (पायल) पहनते है और त्योहार में नृत्य के लिए युवक- युवती के पास विशेष पोशाक व आभूषण होते है.

परंपराए

विवाह:- अबूझमाड़िया जनजाति में एकल और बहुपत्नी विवाह का प्रचलन है. यहां विवाह जून और मई महीने में ककसाड़ त्योहार के बाद किए जाते है.

इसमें विवाह के अवसर पर दुल्हे का परिवार, दुल्हन के परिवार को पैसे, शराब, कोसरा अनाज, मुर्गा, दो कपड़े और पिंगोड़ गेतलांग देते है.

जन्म:- अबूझमाड़िया जनजाति के लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. इसलिए नवजात शिशु के नामकरण के पहले अनेक विधियों से यह ज्ञात करने की कोशिश की जाती है की नवजात शिशु का जन्म किस पूर्वज के रूप में हुआ है.

उसके पिछले जन्म के नाम के आधार पर नवजात शिशु का नाम रखा जाता है.

मृत्यु:- मृत्यु होने के बाद अंतिम संस्कार दफनाकर या जलाकर किया जाता है. यदि मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई हो तो शव को दफनाया जाता है और यदि मौत दुर्घटना, बीमारी या वन्य प्राणी के हमले द्वारा हुआ हो तो शव को जलाया जाता है.

देवी-देवता:-  अबूझमाड़िया समुदाय मुख्य स्तर दो प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा करते है. तालुर स्तर को स्थानीय स्तर भी कहा जाता है.

तालुर उस क्षेत्र को कहा जाता है, जहां तक ग्राम को भू-आधिकार दिया गया हो या जहां तक ग्राम को खेती करने का आधिकार हो और इसी तालुर क्षेत्र के किसी पहाड़ में तालुर (भू-देवी) का निवास होता है.

इसलिए आदिवासी का माना है की इनका मंदिर कभी भी दूसरे स्थान में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है. अबूझमाड़िया समुदाय यह मानते है की तालुर(भू-देवी) उनकी फसलों की रक्षा करती है और आपदा आने पर उनकी रक्षा करती है.

इसके अलावा अबूझमाड़िया ग्राम स्तर पर ग्राम मातृदेवी या तालोक देवी की पूजा करते है. मातृदेवी की पूजा मातागुड़ी (मंदिर) में करते हैं, जो ग्राम के मध्य में स्थित होता है.

मातृदेवी की पूजा मानता या पुजारी द्वारा ग्रामीण त्यौहारों तथा अन्य अवसरों की जाती है.

आदिवासियों का ये माना है की मातृदेवी जंगली पशु‌ओं प्राकृतिक आपदाओ, बुरी शक्तियां और रोक से रक्षा करती है.

इसके अलावा हर परिवार के आवास में एक कमरा गृह देवता या मृत पूर्वजों या “अनाल पेन” के लिये होता है. “अनाल पेन” के रूप में घर के मृत पुरूष मुखिया की आत्मा होती है.

खान- पान

अबूझमाड़िया भोजन के रूप में कोसरा, कोदो-कुटकी, चावल, मक्का, मूंग, उड़द दाल एवं सब्जियों खाते है. इनके भोजन में भात, पेज अनिवार्य रूप से होता है. इसके अलावा अबूझमाड़िया मुर्गा, बकरा, सूअर आदि पालतू पशु के माँस भी खाते हैं.

इनके दैनिक, भोज्य पदार्थ में वन से प्राप्त अनेक प्रकार की भाजिया एवं कंदमूल भी शामिल होती हैं.

आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था

अबूझमाड़िया जनजाति का आर्थिक जीवन वनोपज संकलन, शिकार, पशुपालन, आदिम कृषि और परंपरागत कृषि पर आधारित है.

वनोपज संकलन

खाद्य वस्तु:- पत्तिया, फूल, फल, बांस का नवीन कोमल तना और विभिन्न प्रकार के मशरूम इनमें शामिल है.

बाजार में बेचने वाली वस्तु:- आंवला, आम, इमली, जामुन, कोसा शहर, महुआ इत्यादि इसमें शामिल है.

पशुपालान:-

अबूझमाड़िया माँस, बलि और आय के लिए गाय, बैल, बकरी, सुअर और मुर्गी का पालते है.

ऐसा भी कहा जाता है की वह बकरी दूध नहीं निकालते है क्योंकि इनका माना है की बकरी के दूध पर बछड़े का ही हक होता है.

कृषि:-

खेती अबूझमाड़िया जनजाति के आर्थिक जीवन का मुख्य भाग है. अबूझमाड़िया समाज में तीन प्रकार की खेती मुख्य रूप से देखी जाती है.

स्थानांतरित कृषि, दिप्पा कृषि और हल-बैल द्वारा स्थायी कृषि.

सामाजिक व्यवस्था:

यह जनजाति आज भी अपने समाजिक व्यवस्था से जुड़ी हुई है. अबूझमाड़िया के ग्राम में अनेक पारा होते है.

इस एक पारा के मुख्य को पंच या पारा मुखिया कहा जाता है और अनेक पारे से बने ग्राम के प्रमुख को पटेल कहा जाता है. पटेल पारा के मुख्य का नेतृत्व करता है.

इसके अलावा अनेक ग्रामों से मिलकर परगना बनता है. सम्पूर्ण अबूझमाड़ क्षेत्र अनेक परगनों में विभाजित है. इन परगनों के प्रमुख को परगाना मांझी कहा जाता है.

परगना मांझी का कार्य क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाये रखने का होता है और एक से अधिक गाँवों से संबंधित मामलों का निपटारा तथा पटेल द्वारा किसी विवाद या समस्या का उचित समाधान न कर पाने पर उसका उचित समाधान करना है.

वर्तमान में अनेक कारणों से परम्परागत अबूझमाड़िया राजनैतिक संगठन का प्रभाव कम हो रहा है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments