HomeAdivasi Dailyझारखंड के माल पहाड़िया आदिवासी हो रहें विलुप्त, PSM करेगी शोध

झारखंड के माल पहाड़िया आदिवासी हो रहें विलुप्त, PSM करेगी शोध

झारखंड के माल पहाड़ियां विलुप्त होते जा रहे हैं. प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन ज़ल्द ही कारण जाने के लिए शोध करेगी.

झारखंड के माल पहाड़िया आदिवासी हो रहें विलुप्त, PSM करेगी शोध

झारखंड जनजाति का राज्य है. यहां जनजातियों की कुल जनसंख्या 26.2 प्रतिशत है. (PVTG) में माल पहाड़िया को अति  कमजोर जनजाति समुदाय में रखा गया है. माल पहाड़िया अधिक झारखंड और पश्चिम बंगाल में रहते हैं. वहीं देखा गया है की अन्य भारतीय की तुलना में जनजाति कम जीते हैं.

 जनजातियों की रहन-सहन और खान पान को लेकर और  जीवन शैली को रिम्स का प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (PSM) विभाग शोध करेगा.  शोध के द्वारा यह पता लगाया जाएगा की माल पहाड़िया समुदाय कम क्यों जीते हैं. शोध के दौरान अन्य देश की आदिवासी समुदाय की  रहन-सहन, खान-पान और उनकी जीवन शैली को भी देखा जाएगा.

रिम्स का प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (PSM) विभाग के प्रबंधन का कहना है कि यह रिसर्च यूरोप के स्वीडन की सामी जनजाति को आधार में रखकर की जाएगी. सामी जनजाति जो की उत्तरी स्वीडन फिंलैंड और रुस के कोला प्रायद्वीप में बसने वाले आदिवासी समुदाय का नाम है.

सामी जनजाति और माल पहाड़िया का जीवन

 रिम्स प्रबंधन ने यह भी बताया है की माल पहाड़िया का औसत आयु 60 वर्ष से कम है जबकी सामी जनजाति का औसत आयु 80 वर्ष से ज्यादा है.  रिसर्च का एक मात्र उद्देश्य यह की झारखंड में विलुप्त हो रही आदिवासी समुदाय के खान-पान में सुधार लाए और ज्यादा उम्र तक स्वस्थ और जीवित रह सकें.

जनजाति अन्य लोगों के तुलना में कम जीतें हैं

2019 में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय बताया था आदिवासी समुदाय अन्य के तुलना में कम जीतें हैं. जनजातियों की जनसंख्या की जीने का उम्र 63.9 वर्ष है, जबकि अन्य लोगों की जनसंख्या की जीवित रहने की उम्र 67 वर्ष है.

जनजातियों का कम आयु के कारणों में  विभिन्न स्वास्थ्य और पोषण संकेतक, शिक्षा स्तर, गरीबी स्तर, अनुसूचित जनजाति पीड़ित हो रहें हैं.   

झारखंड जनजाति का राज्य है. यहां जनजातियों की कुल जनसंख्या 26.2 प्रतिशत है. (PVTG) में माल पहाड़िया को अति  कमजोर जनजाति समुदाय में रखा गया है. माल पहाड़िया अधिक झारखंड और पश्चिम बंगाल में रहते हैं. वहीं देखा गया है की अन्य भारतीय की तुलना में जनजाति कम जीते हैं.

 जनजातियों की रहन-सहन और खान पान को लेकर और  जीवन शैली को रिम्स का प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (PSM) विभाग शोध करेगा.  शोध के द्वारा यह पता लगाया जाएगा की माल पहाड़िया समुदाय कम क्यों जीते हैं. शोध के दौरान अन्य देश की आदिवासी समुदाय की  रहन-सहन, खान-पान और उनकी जीवन शैली को भी देखा जाएगा.

रिम्स का प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (PSM) विभाग के प्रबंधन का कहना है कि यह रिसर्च यूरोप के स्वीडन की सामी जनजाति को आधार में रखकर की जाएगी. सामी जनजाति जो की उत्तरी स्वीडन फिंलैंड और रुस के कोला प्रायद्वीप में बसने वाले आदिवासी समुदाय का नाम है.

सामी जनजाति और माल पहाड़िया का जीवन

 रिम्स प्रबंधन ने यह भी बताया है की माल पहाड़िया का औसत आयु 60 वर्ष से कम है जबकी सामी जनजाति का औसत आयु 80 वर्ष से ज्यादा है.  रिसर्च का एक मात्र उद्देश्य यह की झारखंड में विलुप्त हो रही आदिवासी समुदाय के खान-पान में सुधार लाए और ज्यादा उम्र तक स्वस्थ और जीवित रह सकें.

जनजाति अन्य लोगों के तुलना में कम जीतें हैं

2019 में संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय बताया था आदिवासी समुदाय अन्य के तुलना में कम जीतें हैं. जनजातियों की जनसंख्या की जीने का उम्र 63.9 वर्ष है, जबकि अन्य लोगों की जनसंख्या की जीवित रहने की उम्र 67 वर्ष है.

जनजातियों का कम आयु के कारणों में  विभिन्न स्वास्थ्य और पोषण संकेतक, शिक्षा स्तर, गरीबी स्तर, अनुसूचित जनजाति पीड़ित हो रहें हैं.   

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