HomeAdivasi Dailyमुंबई में आदिवासी क्यों कर रहे हैं GMLR प्रोजेक्ट का विरोध

मुंबई में आदिवासी क्यों कर रहे हैं GMLR प्रोजेक्ट का विरोध

आदिवासियों ने राज्यपाल रमेश बैस, मुख्य सचिव नितिन करीर और आदिवासी विभाग को पत्र देते हुए अपनी दिक्कतों के बारे में बताया है. आदिवासियों का कहना है कि सर्वेक्षण का विरोध करने पर न केवल महिलाओं की पिटाई की गई, बल्कि जोगेश्वरी के बीएमसी अस्पताल में आरे पुलिस की मंजूरी के बिना चिकित्सा सहायता देने से भी इनकार कर दिया.

हबलेपाड़ा और नागरमुडी पाड़ा (habalepada and nagarmunda pada) में रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगया है की उनके क्षेत्र में गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड (GMLR project) के लिए जबरन सर्वेक्षण किया गया है.

आज इन आदिवासियों ने राज्यपाल रमेश बैस, मुख्य सचिव नितिन करीर और आदिवासी विभाग को पत्र देते हुए अपनी दिक्कतों के बारे में बताया है.

आदिवासियों का कहना है कि सर्वेक्षण का विरोध करने पर न केवल महिलाओं की पिटाई की गई, बल्कि जोगेश्वरी के बीएमसी(Brihanmumbai Municipal Corporation) अस्पताल में आरे पुलिस की मंजूरी के बिना चिकित्सा सहायता देने से भी इनकार कर दिया.

बुधवार को हबालेपाड़ा और नागरमुडी पाड़ा के आदिवासियों ने गोरेगांव-मुलुंड लिंक रोड के लिए हो रहे सर्वेक्षण कार्य के विरोध में प्रदर्शन किया था.

इसके अलावा वे जुड़वां सुरंगों के निर्माण के खिलाफ धरने पर भी बैठ थे. यह जुड़वा सुरंग संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (SGNP) की पहाड़ियों के नीचे से होकर खिंडीपाड़ा तक होगी.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक जब बीएमसी की सर्वे टीम पुलिस सुरक्षा के साथ पहुंची तो आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया.

आदिवासी प्रदर्शनकारियों का कहना है की 2019 में उन्होंने वन अधिकार अधिनियम 2006 (FRA 2006) के तहत अपनी ज़मीन के दावे किए थे.

उन्होंने ये भी कहा, “एक आरटीआई प्रतिक्रिया के माध्यम से हमें पता चला कि वे सुरंग बनाने के लिए कट और कवर विधि का उपयोग करने जा रहे हैं जो हमारे घरों और कृषि भूमि को नष्ट कर देगी और इनमें से किसी भी प्रोजेक्ट के बारे में हमसे सलाह नहीं ली गई थी.”

2017 में स्लम पुनर्वास प्राधिकरण, मुंबई (Slum Rehabilitation Authority, Mumbai) द्वारा हबलेपाड़ा निवासियों को सर्वेक्षण करने के लिए नोटिस दिया गया था. जबकि आदिवासियों का ये दावा है की जनजातीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में पहले से ही हबलेपाड़ा को आदिवासी पाड़ा के रूप में बताया गया है, तो सर्वेक्षण की क्या आवश्यकता है?

आदिवासी हक संवर्धन समिति (आदिवासी समुदाय द्वारा संचालित संगठन) के सदस्य दिनेश शंकर हबाले ने बीएमसी पर आरोप लगाते हुए कहा की वे आदिवासी भूमि को झुग्गी-झोपड़ियों घोषित करने की रणनीति बना रहे है, ताकि वे पारियोजनाओं के लिए आदिवासियों की भूमि का इस्तेमाल कर सके.

जीएमएलआर परियोजना (GMLR Project) का लक्ष्य राज्य के पश्चिमी और पूर्वी उपनगरों को जोड़ना है. ऐसा कहा जा रहा है की इसे जोड़ने से यात्रा में लगने वाला समय 1 घंटे कम हो जाता है.

इस मामले से जुड़े एक आधिकारी बताते है की इस परियोजना को 1991-1992 विकास योजना के तहत शामिल किया गया था और सरकार ने यह ज़मीन कई साल पहले सड़क विकास योजना के तहत आवंटित की थी.

आरे आंदोलन से जुड़ी अमृता भट्टाचार्जी ने बताया की आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम, 2006 (forest right act) के तहत व्यक्तिगत कृषि भूमि और वन भूमि (जिसका उपयोग वे लकड़ी, सब्जियां, जड़ी-बूटियां आदि इकट्ठा करने के लिए करते हैं) पर सामुदायिक अधिकार के लिए दावा दायर करने का आधिकार देता है.

उन्होंने ये भी बताया की जब एफआरए दावों (FRA claims) का मूल्यांकन करने की प्रक्रिया बीएमसी द्वारा की जा रही थी, तो उसी समय यह सर्वेक्षण क्यों किया गया?

ये भी पता चला है की इस सर्वेक्षण से पहले आदिवासी पाड़ा द्वारा गठित ग्राम सभा की सहमति भी नहीं ली गई थी.
इसके अलावा उन्होंने बीएमसी पर आरोप लगाते हुए कहा की बीएमसी ने जीएमएलआर परियोजना घोषित करने से पहले कोई सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन भी नहीं किया, जो अनिवार्य होता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments