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मध्य प्रदेश के आदिवासियों से कांग्रेस पार्टी के तीन वादे, क्या बाज़ी पलट सकते हैं?

कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में आदिवासियों से तीन बड़े वादे किए थे. ऐसा माना जा रहा है की वादे इस साल के विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर हो सकते हैं.

12 अक्टूबर को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मंडला (Mandla) की चुनाव रैली (election rally) में पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने आदिवासियों से तीन बड़े वादे किये.

  • 50 प्रतिशत अधिक आदिवासी आबादी वाले इलाकों में छठी अनुसूची लागू की जाएगी.
  • पेसा (पंचायत एक्सटेंशन ओवर शिड्यूल्ड एरियाज़) को जमीनी स्तर पर लागू किया जाएगा.
  • तेंदू पत्ता में मिलने वाली दर को 3000 से बढ़ाकर 4000 तक किया जाएगा.

कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में यह दावा कर रही है कि उसने हमेशा आदिवासी के सशक्तिकरण का काम किया है. इस सिलसिले में पार्टी उसके ज़माने में पास कई कानूनों का हवाला देती है.

मसलन वन अधिकार कानून 2006, भोजन का अधिकार कानून, शिक्षा का अधिकार कानून, मनरेगा और पेसा कानून.

कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रियंका गांधी ने आदिवासियों से जो वादे किये हैं वे काफी बड़े वादे हैं जिन्हें लागू करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है.

ये वादे नीतिगत फैसलों से भी जुड़े हैं और इनका आर्थिक पक्ष भी है. आइए पहले इन वादों को समझने की कोशिश करते हैं –

छठी अनुसूची का आदिवासियों के लिए क्या मतलब है?

संविधान की छठी अनुसूची को 1996 में लाया गया था. अभी ये देश के मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा और असम राज्य में लागू है.

इसके अंतर्गत ये प्रावधान दिया गया है की आदिवासी बहुल इलाकों में स्वायत्त जिला परिषद का गठन किया जाएगा.

इन स्वायत्त परिषदों को नीतिगत और वित्तीय फैसले लेने का अधिकार होगा. दरअसल ये स्वायत्त परिषद आदिवासी इलाकों में विधान सभा की तरह काम करती हैं.

आदिवासियों के लिए विधान सभाओं और लोक सभा में आरक्षण का प्रावधान है. लेकिन अक्सर आदिवासी प्रतिनीधियों की आवाज़ को बड़े राजनीतिक दल अनसुना कर देते हैं.

लेकिन स्वायत्त परिषदों के गठन से आदिवासियों का अपनी संस्कृति और संसाधनों पर पूरी तरह से नियंत्रण रहता है.

वह अपने इलाके और समुदाय के विकास के फैसलों में भागीदार ही नहीं रहता बल्कि खुद ही फ़ैसले कर रहा होता है.

मसलन राज्य के सबसे बड़ी और पवित्र नदी नर्मदा के आस पास के आदिवासी इलाकों में कई बांध बनाए जा चुके है और कई बांध बनाने का प्रस्ताव है.

जिसके अंतर्गत कई आदिवासी इलाकों में विस्थापन हुए. इसमें खारक बांध, बसनिया बांध, बरगी बांध आदि शामिल है.

यानि राज्य में अगर छठी अनुसूची लागू हो जाती है तो फिर आदिवासियों पर कोई सरकार फैसले थोप नहीं पाएगी.

राज्य में पेसा होगा लागू

राज्य सरकार द्वारा ये दावा दिया जाता है की पांचवी अनुसूची को एक साल पहले नवंबर के महीने में लागू किया गया था.

जिसके अंतर्गत ग्राम पंचायत को ग्राम सम्मेलन और प्रशासनिक निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है.

इसका अर्थ ये हुआ की पांचवी अनुसूची के अतंर्गत आने वाले इलाकों में कोई भी कार्य करने से पहले ग्राम पंचायत को प्रस्ताव देना होता है और उनके अनुमति के बाद ही कार्य किया जा सकता है.

हालांकि कांग्रेस पार्टी ने कई बार दावा किया है की इसे अभी तक ज़मीनी स्तर पर लागू नहीं किया गया है.

पार्टी के वादों के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी वाले इलाकों में छठी अनुसूची और बाकी अन्य आदिवासी इलाकों में पांचवी अनुसूची ज़मीनी स्तर पर लागू की जाएगी.

तेंदू पत्ता की दर को बढ़ाना

कांग्रेस पार्टी ने अपने तीसरे वादे में कहा की वे तेंदू पत्ता के दर को भी बढ़ाएगी. अभी तक 45 लाख आदिवासी तेंदू पत्ता के व्यवसाय से जुड़े हुए है.

मौजूदा वक्त में तेंदू पत्ता से आदिवासियों को 3000 रूपये मिलते हैं. जिसे बढ़ाकर कांग्रेस इसका दर 4000 रूपये तक कर देगी.

2018 चुनाव में कांग्रेस ने पलटा था गेम

राज्य में साल 2003 से 20013 तक आदिवासी इलाकों में बीजेपी को अच्छी सफलता मिलती रही थी. लेकिन साल 2018 में कांग्रेस पार्टी ने बाज़ी को पलट दिया था.

इस चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित कुल 47 सीटों में से कांग्रेस पार्टी ने 31 सीटें जीत ली थीं. यानि 2018 में कांग्रेस पार्टी की सत्ता आदिवासी के दम पर ही कायम हुई थी.

2018 से पहले सभी चुनावों में लगभग बीजेपी ने ही बाज़ी मारी थी. 2003 के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए बढ़िया साबित हुए. उस समय बीजेपी के खाते में आदिवासी आरक्षित सीटों में से 37 सीटें और कांग्रेस को सिर्फ दो ही सीट हासिल हुई.

क्या है आदिवासी सीटों की गणना

मध्य प्रदेश वो राज्य है जहां हर दूसरे ज़िले में आदिवासियों का बसेरा है. इस राज्य में 21.1 प्रतिशत यानि 1,53,16,784 आदिवासी रहते हैं. इतना ही नहीं राज्य के 52 ज़िलों में से 46 आदिवासी ज़िले है. अगर राजनीतिक नज़रिये से देखे तो यहां 230 विधानसभा सीटें है. जिसमें से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. देश में सबसे ज्यादा आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटें मध्यप्रदेश में ही है.

कांग्रेस के वादे फिर गेम चेंजर साबित होंगे?

मध्य प्रदेश में बीजेपी ने साल 2018 की हार से सबक लेते हुए आदिवासी इलाकों में काफी ध्यान दिया है. लेकिन उसके ज़्यादातर काम भावनात्मक स्तर पर हुए हैं.

मसलन रेलवे स्टेशन या स्टेडियम के नाम आदिवासी नायकों के नाम पर रखे गए हैं. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में जो वादे किये हैं वे सचमुच में आदिवासी की दुनिय बदलने का दम रखते हैं…बशर्ते वे लागू हो जाएं.

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