HomeAdivasi Dailyमणिपुर: हिंसा में फंसे राज्य के लोगों के वोट समुदाय के नेता...

मणिपुर: हिंसा में फंसे राज्य के लोगों के वोट समुदाय के नेता तय करेंगे

15 अप्रैल को गृहमंत्री अमित शाह ने इंफ़ाल में एक चुनाव सभा को संबोधित किया. उन्होंने अपने भाषण में कहा कि एक तरफ बीजेपी है जो मणिपुर को जोड़ कर रखना चाहती है और दूसरी तरफ वो लोग हैं जो मणिपुर को बांटना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता मणिपुर की एकता को बनाए रखते हुए यहां शांति कायम करना होगी.

लोकसभा चुनाव 2024 के सिलसिले में पूरे देश में चुनावी माहौल है लेकिन मणिपुर में चुनाव की तारीखों के ऐलान और उम्मीदवारों के नामांकन होने के बाद भी मतदान को लेकर कोई उत्साह नहीं है.

राज्य सरकार 19 अप्रैल से शुरू होने वाले दो चरणों में अपनी दो लोकसभा सीटों – इनर मणिपुर और आउटर मणिपुर के लिए मतदान करने की तैयारी कर रही है.

वहीं मैतेई और कुकी-ज़ोमी समुदायों के बीच मतभेद पहले से कहीं अधिक गहरे दिखाई दे रहे हैं और इसका असर मतदान के दौरान महसूस होने की संभावना है.

इंफाल और चुराचांदपुर जिले, जो जातीय संघर्ष के दौरान परेशानी का केंद्र बने हुए हैं. वहां पर मतदाताओं, उम्मीदवारों और चुनाव से जुड़े बाकी लोगों से बात करने पर एक बात स्पष्ट हो जाती है कि समुदायों के एकजुट होने के बावजूद इस बात पर बहुत कम सहमति है कि उनका वोट किसे जाना चाहिए. कई लोगों ने निर्णय को अपने समुदाय के नेताओं पर छोड़ दिया है.

इस चुनाव में अनुमानित 50 हज़ार आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों ने राहत शिविर के करीब मतदान करने के लिए पंजीकरण कराया है.

चुनाव आयोग ने बताया है कि आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों की क्षेत्रीय सीमाओं के बाहर, उनके राहत शिविरों के पास मतदान करने की अनुमति देने के लिए 94 विशेष मतदान केंद्र स्थापित किए जाएंगे. लेकिन लोगों को यही नहीं पता कि मैदान में कौन उम्मीदवार है.

कुकी वॉलंटियर कुकी-बहुल चुराचांदपुर जिले के कांगवई गांव, जो मैतेई-बहुमत बिष्णुपुर जिले की सीमा के करीब स्थित है, वहां प्रवेश करने वाले लोगों की पहचान सत्यापित करते हैं.

वहीं मैतेई-प्रभुत्व वाले घाटी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार शांत है या फिर न के बराबर है. इस संवेदनशील क्षेत्र में “रक्षा समिति” के प्रमुख लेन हाओकिप कहते हैं कि यहां चुनावी अभियानों का कोई मतलब नहीं है. हमारे नेता फैसला करेंगे और हम वोट करेंगे.

आउटर मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र

कांग्रेस उम्मीदवार अल्फ्रेड के. आर्थर (Alfred K Arthur) ने 9 अप्रैल को चुराचांदपुर का दौरा किया था और वहां नागरिक समाज संगठन के नेताओं से मुलाकात की. मणिपुर के सभी कुकी-ज़ोमी बहुल क्षेत्र आउटर मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, जो अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीट है.

यह निर्वाचन क्षेत्र, जो राज्य के आदिवासी-बहुल पहाड़ी जिलों तक फैला हुआ है, इसमें घाटी के मैतेई-बहुल काकचिंग और थौबल जिलों और जिरीबाम के मिश्रित जिले के आठ विधानसभा क्षेत्र भी शामिल हैं.

इस सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के नागा नेता, लोरहो पफ़ोज़ (Lorho Pfoze) कर रहे हैं. आमतौर पर नागा और कुकी-ज़ोमी सांसदों के बीच बारी-बारी से यह सीट आती है.

हालांकि, इस बार पिछले साल 3 मई को हिंसा शुरू होने के बाद से कोई भी कुकी-ज़ोमी उम्मीदवार मैदान में नहीं है और सभी चार उम्मीदवार नागा हैं.

दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों ने नागा उम्मीदवारों का समर्थन किया है. कांग्रेस ने उखरुल के पूर्व विधायक अल्फ्रेड के. आर्थर को मैदान में उतारा है. जबकि भाजपा एनपीएफ उम्मीदवार, रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट टिमोथी ज़िमिक का समर्थन कर रही है. 

नामांकन प्रक्रिया के दौरान कुकी इंपी मणिपुर और इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम सहित प्रमुख सामुदायिक संगठनों ने निर्देश दिया था कि समुदाय से किसी को भी चुनाव नहीं लड़ना चाहिए और ऐसा ही हुआ है.

लेकिन कुकी छात्र संगठन के पदाधिकारी जमखोमांग खोंगसाई ने जोर देकर कहा कि हर कोई स्पष्ट रूप से मानता है कि उनके समुदाय के सभी लोगों को एक साथ खड़ा होना चाहिए.

वे कहते हैं, “हमारे समुदाय को कांग्रेस या भाजपा से टिकट नहीं मिला, जो इंफाल में स्थित हैं और उसके बाद कुकी इंपी मणिपुर के राजनीतिक विभाग ने फैसला किया कि हमें अपना उम्मीदवार नहीं रखना चाहिए. इसलिए अब एक और बैठक होगी और अगले सप्ताह तक निर्णय लिया जाएगा कि आगे क्या होगा. बहिष्कार का रुख अपनाएं, नोटा के साथ जाएं या किसी एक उम्मीदवार के साथ जाएं.”

कुकी समुदाय ने यह देखा है कि संसद या विधान सभा में फ़िलहाल उनकी राजनीतिक आवाज़ गुम हो गई है. इसके बावजूद समुदाय के नेताओं ने यह निर्णय लिया कि उनके समुदाय का कोई भी नेता चुनाव नहीं लड़ेगा.

कुकी समुदाय के पास कोई मौजूदा सांसद नहीं है और 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में इसके 10 विधायक सुरक्षा मुद्दों के कारण इंफाल की यात्रा करने में असमर्थता का हवाला देते हुए हिंसा की शुरुआत के बाद से दो विधानसभा सत्रों का हिस्सा नहीं रहे हैं.

8 अप्रैल को इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) के नेताओं ने इस पर चर्चा के लिए नौ जनजातियों के नेताओं के साथ एक अहम बैठक बुलाई थी. आईटीएलएफ के सचिव मुआन टोम्बिंग ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि समुदाय मतदान करेगा या नहीं.

उन्होंने कहा कि हम समुदाय के नेताओं और उम्मीदवारों के साथ बैठकें करेंगे ताकि हम उनके घोषणापत्र सुन सकें और समझ सकें कि क्या वे हमारे हितों का प्रतिनिधित्व करेंगे. उसके बाद हम अपने लोगों को स्थिति से अवगत कराएंगे कि कौन सा उम्मीदवार हमारी मदद करेगा.

टोम्बिंग ने आगे कहा कि हम चाहते हैं कि इस बार हमारा वोट एक साथ पड़े. अगर हमारे वोट बिखर गए तो हमारी आवाज कमजोर हो जाएगी. स्थिति में कुछ भी सामान्य नहीं है. यह एक संकट है, यही वजह है कि लोग हमारे फैसले का इंतजार कर रहे हैं.

कुकी-ज़ोमी उम्मीदवार को मैदान में न उतारने का निर्णय लेने के लिए विभिन्न समुदाय के नेताओं के पास अलग-अलग कारण हैं. एक ने कहा कि लड़ाई की कोई संभावना नहीं है. जबकि इस सीट पर 4.6 लाख से अधिक नागा मतदाता हैं और लगभग 3.2 लाख कुकी ज़ोमी मतदाता हैं.

समुदाय के नेता ने कहा कि घाटी क्षेत्रों के 2.5 लाख मैतेई मतदाता कुकी-ज़ोमी प्रतिनिधि के खिलाफ वोट कर सकते हैं.

दूसरे ने कहा कि हमारे पास अपने क्षेत्रों के बाहर स्वतंत्र आवाजाही नहीं है और हम स्वतंत्र रूप से प्रचार नहीं कर पाएंगे.

वर्तमान में राजनीति में नागा आवाज़ों की कमी पर एक 26 वर्षीय छात्र ने कहा, “निश्चित रूप से हम अपना स्वयं का प्रतिनिधि चाहेंगे. हम दबा हुआ महसूस करते हैं और हमें आवाज उठानी चाहिए. मुझे नहीं लगता कि कोई भी मौजूदा उम्मीदवार हमारे मुद्दे में ज्यादा दिलचस्पी लेगा.”

कुकी-ज़ो समुदाय जिस मुख्य मांग पर जोर दे रहा है वह राज्य के उन हिस्सों के लिए “अलग प्रशासन” की स्थापना है जहां वे बहुमत में हैं.

उबल रहा असंतोष

चुनाव को कैसे आयोजित किया जाना चाहिए, इस बारे में मतभेदों के बावजूद हिंसा से निपटने के केंद्र सरकार  के तरीके पर सभी पक्षों में असंतोष है. चुराचांदपुर में एक कुकी छात्र ने कहा कि वह चाहेंगे कि उनका वोट इसे व्यक्त करे.

उन्होंने आगे कहा, “जब गृह मंत्री अमित शाह 29 मई (पिछले साल) को हिंसा के बाद मणिपुर आए थे तो उन्होंने बहुत सारे वादे किए और कुकी समूहों से भी मुलाकात की. लेकिन जब वह यहां थे तब भी हिंसा नहीं रुकी और गोलीबारी हो रही थी. जब उन्होंने मणिपुर छोड़ा तो वे सारे वादे भी उनके साथ चले गए.”

कई अन्य छात्रों की सोच बहुत सख्त है और वह चुनाव प्रक्रिया में किसी भी तरह के जुड़ाव का विरोध करते हैं.

उनका कहना है कि हम एक अलग प्रशासन चाहते हैं और आउटर मणिपुर के चुनाव में हिस्सा लेने का मतलब यह स्वीकार करना है कि हम अभी भी मणिपुर का हिस्सा हैं. यहां तक कि नोटा का विकल्प चुनने का मतलब है कि हम इस प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं. यह हमारी मांग के अनुरूप नहीं है.

एक और छात्र का कहना है कि मैंने और मेरे दोस्तों ने किसी भी व्यापक फैसले की परवाह किए बिना वोट न देने का फैसला किया है. साथ ही हमारे परिवार के लोग भी वोट नहीं देंगे.

हालांकि आईटीएलएफ के टॉम्बिंग का अलग नजरिया है, ”हम बीजेपी के खिलाफ या किसी अन्य पार्टी के पक्ष में नहीं हैं. लेकिन हमारे सबसे बड़े दुश्मन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह हैं. उनके सहयोगी भी हमारे दुश्मन हैं. हमारा मुख्य ध्यान किसी ऐसे व्यक्ति पर है जो जनजातीय हितों के प्रति सत्यनिष्ठा रखता हो.”

घाटी के हालात

मणिपुर घाटी के कौट्रुक हारोफाम गांव, जहां मैतेई बहुसंख्यक हैं, वहां की महिलाएं पिछले साल मई से बंकरों में अपनी रातें गुजार रही हैं. वे पूरा दिन अपने गांव के सामुदायिक हॉल में परिवारों के लिए एक साथ खाना पकाने में बिताती हैं और कुछ मीटर दूर एक बंकर में अपनी रातें बिताती हैं.

गांव के लोग हथियारों से लैस हैं और इंफाल पश्चिम की सीमा पर कुकी-ज़ोमी बहुल कांगपोकपी जिले के पास हैं.

इस जैसे क्षेत्र और कांगवई जहां घाटी और कुकी-ज़ोमी बहुसंख्यक पहाड़ी क्षेत्र मिलते हैं शुरू से ही लगातार गोलीबारी की स्थिति के साथ करीब करीब लगातार संघर्ष की स्थिति में रहे हैं.

एक महिला का कहना है कि 11 महीनों से यही सब चल रहा है. कोई काम पर नहीं जा रहा, कोई पैसा नहीं कमाया जा रहा. बस यही है.

एक अन्य महिला का कहना है कि हम बहुत परेशान हैं. हिंसा कम हो गई है क्योंकि हर कोई लोगों की दुर्दशा पर ध्यान दिए बिना चुनाव में व्यस्त हो गया है. इसका मतलब है कि उनमें संघर्ष ख़त्म करने की क्षमता है.

उन्होंने कहा कि उनके पास चुनने के लिए कई विकल्प हैं और इनर मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतरे सभी छह प्रतियोगियों के लिए जातीय संघर्ष चुनावी एजेंडे के केंद्र में है, जो मणिपुर की अधिकांश घाटी को कवर करता है.

यह घोषणा करते हुए कि उनके पास चुनाव के लिए समय नहीं है, वह कहती हैं कि “हमारे लिए सबसे अच्छा कौन होगा” पर आम सहमति बनाने के बाद मतदान करेंगे.

इनर मणिपुर सीट से इस बार छह उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

भाजपा के उम्मीदवार बसंत सिंह, जो राज्य में कैबिनेट मंत्री हैं. उनका चुनावी मुद्दा मणिपुर के मूल निवासियों को बचाने के लिए केंद्र द्वारा इनर लाइन परमिट व्यवस्था शुरू करना, भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का निर्णय लेना, म्यांमार के साथ मुक्त आवाजाही व्यवस्था को रोकना, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) शुरू करने के लिए कदम उठाना और अवैध अप्रवासियों की पहचान शुरू करना है.

वहीं मणिपुर की स्थिति से निपटने के भाजपा के तरीके की आलोचना करते हुए, कांग्रेस उम्मीदवार बिमोल अकोइजम “अवैध आप्रवासन” को संबोधित करने की आवश्यकता का समर्थन करने के अलावा सुलह की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं.

जबकि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के महेश्वर थौनाओजम ने “नार्को आतंकवादियों” के खिलाफ कार्रवाई का भी वादा किया है.

वहीं राज्य की मीरा पैबिस का कहना है कि वे “किसी ऐसे व्यक्ति को चुनेंगी जो स्थानीय लोगों का विश्वास जीत सके”. अपने इलाके की अन्य महिलाओं पर नज़र रखते हुए 44 वर्षीय मीरा पैबी ने कहा कि भाजपा ने यह नहीं सुना कि लोग क्या चाहते हैं. हम एक संघर्ष की स्थिति में रह रहे हैं और उन्होंने हमारा दिल जीतने के लिए कुछ भी नहीं किया है.

उन्होंने कहा कि उनमें से कई लोग कांग्रेस उम्मीदवार अकोइजाम को संभावित प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं. जबकि आरपीआई (ए) के थौनाओजाम के शुभचिंतकों की भी अच्छी खासी हिस्सेदारी है. दोनों अपने-अपने तरीके से संकट के बारे में मुखर रहे हैं.

कई महिलाओं ने कहा कि उन्हें मौजूदा सरकार पर भरोसा नहीं है.

चुनाव से पहले फिर हुई हिंसा

वहीं एक महीने से अधिक समय तक हिंसा में दिखी कमी के बाद मणिपुर में शुक्रवार को दो सशस्त्र समूहों के बीच एक ताजा गोलीबारी में कम से कम दो लोग घायल हो गए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने बताया कि यह घटना हेइरोक थाने से लगभग 30 किमी पूर्व में तेंगनौपाल और काकचिंग जिलों के आसपास के इलाकों में हुई.

तेंगनौपाल जिले में मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय की बसाहट है, जिसमें ज़ो-कुकी समुदाय भी शामिल हैं, जबकि काकचिंग जिला मेईतेई के प्रभुत्व वाली घाटी में स्थित है.

बताया गया है कि करीब 1 बजे पहाड़ियों से हथियारबंद बदमाशों ने घाटी क्षेत्र की ओर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी और ग्रामीण स्वंयसेवकों ने भी जवाबी कार्रवाई की. सुबह 8 बजे तक चली गोलीबारी में गांव का एक स्वंयसेवक- 24 वर्षीय निंगथौजम जेम्स घायल हो गए, जिन्हें इंफाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

गोलीबारी की सूचना मिलने पर राज्य बलों की एक टीम पल्लेल से असम राइफल्स की एक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रण में लाया गया.

अमित शाह आक्रमक नज़र आए

15 अप्रैल को गृहमंत्री अमित शाह ने इंफ़ाल में एक चुनाव सभा को संबोधित किया. उन्होंने अपने भाषण में कहा कि एक तरफ बीजेपी है जो मणिपुर को जोड़ कर रखना चाहती है और दूसरी तरफ वो लोग हैं जो मणिपुर को बांटना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता मणिपुर की एकता को बनाए रखते हुए यहां शांति कायम करना होगी.

मई 2023 से शुरू हुई हिंसा के बाद गृहमंत्री अमित शाह का राज्य में यह दूसरी यात्रा है. गृहमंत्री अमित शाह के भाषण में हिंसा के सवाल पर आक्रमकता थी.

उन्होंने राज्य की हिंसा का समाधान नहीं होने पर किसी तरह का अफ़सोस प्रकट नहीं किया. बल्कि उन्होंने कांग्रेस के शासन में हुई हिंसा घटनाएं गिनवाईं.

पिछले साल 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से न सिर्फ 200 से अधिक लोगों की जान गई है बल्कि 50 हजार से अधिक लोग विस्थापित भी हुए हैं.

यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments