HomeIdentity & Lifeआदिवासी इस देश के प्रथम नागरिक हैं – जयपाल सिंह मुंडा

आदिवासी इस देश के प्रथम नागरिक हैं – जयपाल सिंह मुंडा

(भारत का संविधान तैयार करने की प्रक्रिया में संविधान सभा में देश के आदिवासियों और उनके अधिकारों लंबी बहस हुई. इस बहस में आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया. उन्होंने संविधान सभा में अपने तर्कों के साथ यह साबित किया कि आदिवासी इस देश का मूल मालिक है. इसी भाषण में उन्होंने कहा था, “मुझे अपने जंगली होने पर गर्व है”. पढ़िए उनका यह भाषण)

मैं उन लाखों अज्ञात लोगों के ओर से बोलने के लिए यहाँ खड़ा हुआ हूँ, जो सबसे महत्वपूर्ण लोग हैं, जो आदिवासी के अनजान लड़ाके हैं, जो भारत के मूल निवासी हैं और जिनको बैकवर्ड ट्राइब्स, प्रिमिटिव ट्राइब्स, क्रिमनल ट्रइब्स और जाने क्या-क्या कहा जाता है. पर मुझे अपने जंगली होने पर गर्व है, क्योंकि यह वही संबोधन है, जिसके द्वारा हम लोग इस देश में जाने जाते हैं. हम जंगल के लोग आपके संकल्प को अच्छी तरह समझते हैं. अपने तीन करोड़ आदिवासियों की ओर से मैं इस संकल्प का समर्थन करता हूँ. इस भय से नहीं कि इसे भारत के राष्ट्रीय कांग्रेस के एक बड़े नेता प्रस्तावित किया है.

हम इसका समर्थन करते हैं, क्योंकि यह देश के हर नागरिक की धड़कन और उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति करता है. इस संकल्प के एक भी शब्द के साथ हमारा कोई झगड़ा नहीं है. जंगली और आदिवासी होने के नाते संकल्प की जटिलताओं में हमारी विशेष दिलचस्पी नहीं है. लेकिन हमारे समुदाय का कॉमन सेंस कहता है कि हममें से हर एक ने आजादी के लिए संघर्ष की राह पर एक साथ मार्च किया है. मैं सभी से कहना चाहुँगा की अगर कोई देश में सबसे ज्यादा दुर्व्यवहार का शिकार हुआ है तो हमारे लोग हैं. पिछले छह सालों से उनकी अपेक्षा हुई है और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया है.

मैं जिस सिंधुघाटी सभ्यता का वंशज हूँ, उसका इतिहास है की आप मे से अधिकांश लोग, जो यहां बैठे हैं, बाहरी हैं, घुसपैठिए हैं. जिनके कारण हमारे लोंगो को अपनी धरती छोड़कर जंगलों में जाना पड़ा. इसलिए यहां जो संकल्प पेश किया गया है. वह आदिवासियों को लोकतंत्र सिखाने जा रहा है. आप सब आदिवासियों को लोकतंत्र सिखा ही नहीं सकते, बल्कि आपको ही उनसे लोकतंत्र सीखना है. आदिवासी पृथ्वी पर सबसे अधिक लोकतांत्रिक लोग हैं.
हमारे लोगों की आंकाक्षा वे अधिकाधिक सुरक्षाएँ नहीं है. जिन्हें नेहरु ने संकल्प में रखा है. आज उनकी जरुरत सरकार से सुरक्षा की है. हम कोई अतिरिक्त या विषेश सुरक्षा की मांग नहीं कर रहे हैं.

हम बस यही चाहते है की जो नागरिक बरताव सबके साथ हो, वही हमारे साथ भी हो. आदिवासियों को भी बराबर का नागरिक समझा जाए. हिंदुस्तान हमारी समस्या है. पाकिस्तान हमारी समस्या है. आदिवासी भी समस्या है. अब ऐसे में भिन्न- भिन्न दिशाओं में चिल्लाते हुए लोग एक दूसरे से भिड़ने लगें, एक दूसरे अलग-अलग भवनाएँ रखने लगें, तो हम सभी एक दिन खत्म हो जाएंगे और यह देश क्रबिसतान बनकर रह जाएगा. पंडित नेहरु के शब्दों पर विश्वास करते हुए मैं भी कहुँगा कि हमारे लोंगो का पूरा इतिहास गैर- आदिवासियों के अंतहीन उत्पीड़न और बेदखली को रोकने के लिए किए विद्रोहहों का इतिहास है. मैं आप सब के कहे हुए पर भी विश्वास कर रहा हूँ. कि हम लोग एक नये अध्याय की शुरुआत करने जा रहे हैं.

स्वत्रंत भारत के एक नए अध्याय की, जहाँ सभी समान होंगे, सबको बराबर का हिस्सा मिलेगा और एक भी नागरिक उपेक्षित नहीं होगा. इस सभा में बैठे हुए सभी पुरुष हैं.

श्रीमती के भी, की के लिए सहभागिता कोई प्रावधान के बारे में सोचा जा रहा है. हमारे समाज में जाति के लिए कोई भी जगह नहीं होगी. हम सभी बराबर होंगे. कैबिनेट मिशन की तरह किसी के साथ कोई उपेक्षा व अन्याय नहीं होगा, जैसा की तीन करोड़ लोंगो के साथ किया गया है. हमें उस राजनैतिक दृष्टिकोण पर विचार करना चाहिए कि क्यों इस संविधान सभा में सिर्फ 6 ही आदिवासी प्रतिनिधि मौजूद हैं. इसके कारण क्या है? संविधान सभा में भी आदिवासियों की भागीदारी हो, इसके लिए राष्ट्री कांग्रेस ने क्या किया ? क्या और आदिवासियों, वह भी केवल पुरुष नहीं, महिलाओं के भी, की सहभागिता के लिए कोई प्रावधान या नियम के बारे में सोचा जा रहा है?

इस सभा में बैठे हुए सभी पुरुष हैं. श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित की तरह हमे इस सभा में और महिलाएँ चाहिए जिन्होंने अमरीका में नस्लवाद को पछाकर जीत हासिल की है. हमारे लोग आपके नस्लवाद से, हिन्दुओं और उन जैसे बाहरी लोंगों के नस्लवादी से पिछले छे हजार सालों से उत्पीड़ित हैं. उससे जूझ रहे हैं. हमारे आदिवासी लोग भी भारतीय हैं और उनका भी देश मे उतना ही सरोकार कि किसी और का. इसलिए एडवाजरी कमेटी में, जिसके सदस्यों का चयन होना है . हमारे लोगों को मिशन को जो पहला मेमोरेंडम दिया था. उसके 20वें सेक्शन की भाषा इस प्रकार थी.

लेकिन जनब मुझे कमांड पेपर 6821 मिला. जिससे इसे फिर से छापा गया था . तो इसकी भाषा बदल दी गई है. अब इसे इस प्रकार से लिखा गया है. मेरा विचार कि शब्दों की ऐसी बाजीगरी और कुछ नहीं हमारे साथ धोखा है. मुझे वे सारे भाषण और संकल्प याद आ रहें हैं. जिनमें आदिवासियों के साथ सम्मानजक व्यवहार की बातें की जाती रही हैं. यदि इतिहास ने हमें कोई सबक दिया है तो वह मुझे संकल्प के प्रति अविश्वासी बना रहा है . पर मैं ऐसा नहीं करने जा रहा हूँ. हम सब एक नए पथ की ओर अग्रसर है. यह बहुत ही सामान्य अपेक्षा है कि हम एक-दूसरे पर विश्वास करना सीखें और मैं उन दोस्तों से, जो आज उपस्थित नहीं है.

कहना चाहूँगा कि वे आएँ और कहें कि हन सभी को एक-दूसरे पर विश्वास है. निश्चित समय से यह समय हम सभी से पूर्ण विश्वास है. एक- दूसरे पर विश्वास करने का एक नया माहौल हम सभी को मिल-जुलकर रचना ही होगा. सभा में पार्टीज और माइनोरिज को लेकर इतनी बहस हो गई है कि मेरा मन इससे खिन्न हो गया है. मैं हमारे आदिवासी समुदाय को माइनोरिटी नहीं मानता. सदन में वैसे भी सुबह से सुन चुका हूँ की आदिवासियों को वेचित वर्ग मानना चाहिए . अगर आप आदिवासियों को जो इस देश के मूल निवासी हैं. उनके साथ भूमिहीन और सामाजिक रुप से बाहरी जातियों को जोड़ना चाह रहे हैं.

तो हम इसका विरोध करेंगे, क्योंकि हम आदिवासी का हक – हकूक को देश पर पहला है. जिसे खारिज करने का अधिकार किसी को नहीं है. मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना है. मैं पंडित द्वारा पेश किए गए संकल्प से सहमत हूँ और चाहूँगा कि सदन में उपस्थित सदस्य शब्दों के जुगाली किए बिना की रचना संभव नहीं है. जो हमें सच्ची आजादी की तरह ले जानेवाला है. मौलाना अबुल कलाम आजाद ने रामगढ़ कांग्रेस में कहा था. कांग्रेस अपनी परिभाषा किसी पर भी थोपना नहीं चाहती है. अधिकारों के लिए किसी को भी बहुसंख्यकों पर निर्भर रहने की कोई जरुरत नहीं है. जानता हूँ की अल्पसंख्यकों आदिवासियों की समस्याओं का समाधान आनेवाला दिनों में संभव है. यहाँ मैंने सिर्फ इशारा ही किया है.

जिसका समाधान राज्यों के साहसी से पुनर्गठन से ही हो सकेगा. रामगढ़ कांग्रेस की सदारत करते हुए आपने डॉ. राजेंद्र प्रसाद कहा था. बिहार के इस भू- भाग में जहाँ हम सब इकट्ठा हुए हैं. इसकी अपनी विशेषताएँ हैं . यह वह क्षेत्र है, जहाँ भारत के प्राचीन बाशिंदे रहते हैं . पूरे भारत में फैले आदिवासी लोग आर्यों से निंतात भिन्न प्रजाति के हैं. दूसरे क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी आदिम संस्कृति को बचाए रखा है. इसलिए मैं फिर दोहराऊँगा की आप आदिवासियों को लोकतंत्र नहीं सिखा सकते. आर्यों की फौज लोकतंत्र को खत्म करने पर तुली है.

पंडित नेहरु ने अपनी सध: प्रकाशित पुस्तक डिस्करी ऑफ इंडिया में सिंधु- घाटी सभ्यता के बारे में लिखा है. आदिवासियों के बहुत सारे गणतांत्रिक समाज- राज्य थे. आदिवासियों के वे गणतांत्रिक समाज अभी भी हैं. जो भारत की आजादी की लड़ाई में हिरावल दस्ता रहे हैं. मैं दिल से इस संकल्प का समर्थन करते हुए उम्मीद करता हूँ कि जो सदन में मौजूद हैं और जो बाहर हैं, वे सभी देश के आदिवासियों के विश्वास की रक्षा करेंगे . हम साथ लड़े हैं, साथ बैठे हैं और काम भी साथ करेंगे. सभी की सच्ची आजादी के लिए.

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