HomeAdivasi Dailyअरुणाचल के आपातानी: प्राचीन प्रथाओं का आधुनिक समाज

अरुणाचल के आपातानी: प्राचीन प्रथाओं का आधुनिक समाज

पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी समुदायों (Indigineous groups) में से एक आपातानी को प्रगतिशील और आधुनिक समुदाय कहा जा सकता है. इस समुदाय ने कई प्रथाओं को पीछ छोड़ दिया है. फिर भी चलता प्राचीन प्रथाओं से ही है.

नाक में काले रंग की लकड़ी की ठेपियां, माथे से ठोढ़ी तक लंबी काली लाइन…ये अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में रहने वाली अपातानी जनजाति (Apatani Tribe) की महिलाओं की पहचान है. आपातानी समुदाय अरुणाचल प्रदेश की ज़ीरो घाटी (Ziro Valley) में रहता है.

अपतानी जनजाति की महिलाओं के चेहरे पर एक टैटू होता है- जिसे टिप्पी कहा जाता है, जो सुअर की चर्बी और चिमनी से निकले कालिख के मिश्रण से बना होता है. इसे पौधे के कांटे की मदद से चेहरे पर बनाया जाता है. कांटे को त्वचा पर रखा जाता है और फिर एक छोटे हथौड़े से तब तक मारा जाता है जब तक कि चेहरे पर स्याही न लग जाए. 

इस परंपरा को ‘यापिंग हुर्लो’ कहा जाता है. इस विशिष्ट टैटू पैटर्न में एक काली रेखा होती है जो एक महिला के चेहरे को माथे के केंद्र से नीचे उसकी नाक की नोक तक पार करती है और पांच अन्य रेखाएं निचले होंठ को ठोड़ी से जोड़ती हैं. 

वहीं अपतानी जनजाति की महिलाओं के नाक में नज़र आने वाली काले रंग की लकड़ी की ठेपियों को खासतौर पर जंगल से लाया जाता है.

चेहरे पर टैटू के बारे में कई धारणाएं

अपतानी जनजाति के पास महिलाओं के नाक में लगी ठेपी और चेहरे पर बने टैटू के अपने ही तर्क है. ऐसा बताया जाता है कि ज़ीरो घाटी में रहने वाली अपातानी जनजाति के आसपास कई अन्य जनजातियों के लोग रहते थे.

इन सबके बीच अपातानी महिलाएं अपनी सुंदरता के लिए मशहूर थीं. उनकी इस खूबी के कारण अन्य जनजातियों के पुरुष उनका अपहरण कर लेते थे. यही वजह है कि घुसपैठियों से बचाने के लिए अपतानी महिलाओं के चेहरे पर तरह-तरह के प्रयोग किए गए और उनका चेहरा खराब कर दिया गया.

वहीं दूसरा तर्क है कि इसके जरिये संकेत दिया जाता था कि लड़की अब वयस्‍क हो गई है. जब लड़कियों को पहली बार मासिकधर्म होते थे तो उनकी नाक में ये लकड़ी की ठेपी फ़िट कर दी जाती थी, जिससे पता चल जाता था कि लड़की बड़ी हो गई है.

इन दोनों ही बातों में से ना जाने कौन सी बात सही है. क्योंकि आपातानी समुदाय पर जो थोड़े बहुत शोध या अंग्रेज अधिकारियों के यात्रा वृतांतों से इस बारे में कुछ ख़ास पता नहीं चलता है. 

वैसे ज़्यादातर लोग यह मानते हैं कि महिलाओं को अपहरण से बचाने के लिए ही उनके चेहरे पर टैटू बनाया जाता था.  

आपातानी महिलाओं को हमलावरों से बचने के लिए यह भले ही काम में आया लेकिन अपातानी महिलाओं के स्वास्थ के लिए यह मुसीबत बनता चला गया. ऐसे में धीरे-धीरे इसका विरोध शुरु हुआ. आखिरकार 1970 के आस-पास सरकार ने इस परंपरा को बंद करने का आदेश दिया गया. 

इस तरह ये परंपरा बंद हो गई. लेकिन गांव की बुजुर्ग महिलाएं अब भी इसके साथ नजर आ जाती हैं.

IIT गुवाहाटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि इस परंपरा को समाप्त करने में बदलते वक्त और स्थानीय लोगों की सक्रियता ने अहम भूमिका निभाई. अब जो नई पीढ़ियां हैं उन्हें नाक में ठेपी लगाने की परंपरा ‘यापिंग हुर्लो’ का दर्द नहीं झेलना पड़ता है. 

अब अपातानी जनजाति की महिलाएं शिक्षित हो रही हैं. कुछ तो उच्च शिक्षा हासिल करके अपने यहां लोगों को आगे बढ़ाने का काम भी कर रही हैं. 

अपातानी जनजाति की ख़ासयित

अपातानी परंपरागत रूप से भारत के पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश के निचले सुबनसिरी जिले की जीरो घाटी में सात गांवों में बसे हैं. अपातानी समुदाय के लोग का अपनी जमीन, जंगल, पानी और कृषि के साथ गहरा रिश्ता हैं. अरुणाचल प्रदेश में आपातानी समुदाय अपने संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करते हैं.

अपातानी जनजाति के लोगों कृषि प्रणाली काफी प्रभावशाली हैं. इनका चावल उगाने का अनोखा सिस्टम यूनेस्को द्वारा प्रमाणित है.यहां  बिना किसी आधुनिक मशीन या फिर जानवरों के इस्तेमाल के भी प्रोडक्टिविटी बहुत ज्यादा होती है.  यूनेस्को ने अपातानी समुदाय की ज़ीरो वैली को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित करने की बात कही है.

दरअसल, अपातानी लोग खेती की एक ख़ास तकनीक या तरकीब का इस्तेमाल करते हैं. यहां चावल की दो किस्में (मिप्या और इमोह) उगाई जाती हैं. लेकिन ख़ास बात ये है कि धान के खेतों में मछली की एक किस्म (न्गीही) को भी पाला जाता है. 

अपातानी किसान 1960 के दशक से अरुणाचल प्रदेश के अपने पहाड़ी इलाकों में एकीकृत चावल-मछली की खेती कर रहे हैं. धान की खेती के साथ-साथ मछली पालन एक कम लागत और पर्यावरण के अनुकूल प्रैक्टिस है. 

वहीं मछलियां व्यावहारिक रूप से धान के खेतों के प्राकृतिक खाद्य स्रोतों पर निर्भर करती हैं. इसलिए किसानों को मछली के लिए अलग से खाना नहीं डालना पड़ता है. 

अपातानी लोगों को पूर्वोत्तर भारत में सबसे उन्नत जनजातीय समुदायों में से एक माना जाता है. वे दशकों से अपनी समृद्ध अर्थव्यवस्था और भूमि, वन और जल प्रबंधन के अच्छे ज्ञान के लिए जाने जाते हैं. 

कस्टमरी लॉ और आस्थाएं

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अरुणाचल प्रदेश का आपातानी समुदाय काफी बदला है. पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी समुदायों (Indigenous Groups) में इस समुदाय ने शायद खुद को सबसे अधिक बदला है.

एक ज़माने में यह समुदाय कई ऐसी प्रथाओं का पालन करता था जिसे आधुनिक युग में स्वीकार नहीं किया जा सकता है. मसलन इस समुदाय में चोरी की सज़ा मृत्युदंड भी होती थी. ऐसी कई प्रथाएं हैं जो अब यह समुदाय छोड़ चुका है.

लेकिन अभी भी यह समाज कस्टमरी लॉ यानि प्रथागत कानूनों से ही गाइड होता है. यानि यहां की प्रशासनिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियां प्रथागत कानूनों के अनुसार ही चलती हैं. उदहारण के लिए यह समुदाय अभी भी समाज या समुदाय के संगठन में महिलाओं को हिस्सेदारी नहीं बनाता है.

इस समुदाय में अभी पुरूष एक से अधिक पत्नी रख सकता है. इस समुदाय का जातीय संगठन इतना मजबूत है कि उसकी अनुमति या सहयोग के बिना ज़ीरो घाटी में सरकार की कोई भी योजना लागू नहीं हो सकती है. 

इस समुदाय के बारे में एक बात जानना बेहद ज़रूरी है कि समुदाय के लोग अपने परिवार या समाज का सम्मान बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

इस मामले में यह समाज काफी भावुक है. ख़ासतौर से इस समुदाय की ज़मीन, प्रथाओं या प्रतिष्ठा से जुड़ी कोई भी कार्रावाई अगर इन्हें बुरी लगे तो आफ़त टूट सकती है.

इस समुदाय में अगर कोई बीमार होता है या किसी परिवार में कुछ अप्रिय घठ जाता है तो लोग मानते हैं कि ये कुछ आत्माओं के कारण हो रहा है. ऐसे में वे मुर्गियों, गायों और अन्य घरेलू पशुओं की बलि देते हैं.

अपातानी जनजाति अपनी खूबसूरत संस्कृति के लिए विभिन्न त्योहारों, जटिल हथकरघा डिजाइनों, बेंत और बांस शिल्प में कौशल के लिए जानी जाती है. 

ये लोग हर साल मार्च में एक पूरे महीने चलने वाले भव्य तरीके से मित्रता और समृद्धि के त्योहार मायोको (Myoko) मनाते हैं. वहीं जुलाई में मनाया जाने वाला त्योहार ड्री (Dree) खासतौर पर कृषि के लिए समर्पित होता है.

इस जनजाति के बुजुर्गों की मान्यताओं को गर्व से धारण करते हुए आधुनिकीकरण को अपनाने का इनका तरीका बेहद अलग है.

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