HomeAdivasi Dailyएक डॉक्टर जो 50 साल से आदिवासियों की सेवा में जुटा है

एक डॉक्टर जो 50 साल से आदिवासियों की सेवा में जुटा है

करेल के वायनाड में आदिवासियों का इलाज करने के साथ ही उनमें सिकल सैल एनीमिया कि बीमारी खोजने वाले डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव(Dr. Dhananjay Diwakar Sagdeo) को दवा के क्षेत्र में साल 2021 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

आज देश के आदिवासी इलाकों में सिकल सेल एनीमिया नाम की बीमारी से युद्ध स्तर पर निपटने की तैयारी हो रही है.

स्वंय प्रधानमंत्री ने इस बीमारी को आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती बताया है.

लेकिन एक समय था जब इस बीमारी के बारे में किसी को अंदाज़ा ही नहीं था. साल 1972 केरल के आदिवासियों में सिकल सेल बीमारी के बारे में पहली बार पता चला था.

तब डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव(Dr. Dhananjay Diwakar Sagdeo) ने आदिवासियों के बीच इस बीमारी को लेकर जागरूता फैलाने के साथ ही इस सिकल सेल एनीमिया बीमारी से संक्रमित आदिवासियों की चिकित्सा भी की थी.

धनंजय दिवाकर सागदेव को इस क्षेत्र में बेहतरीन काम करने के लिए साल 2021 में पदम् श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव

पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. धनंजय दिवाकर सागदेव महाराष्ट्र के नागपुर शहर के रहने वाले है.

उनका जन्म 16 अगस्त 1956 में नागपुर में हुआ.

उन्होंने ने साल 1980 में नागपुर के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज से अपनी एमबीबीएस पढ़ाई पूरी करके एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की.

जिसके बाद उन्होंने नागपुर के ग्रामीण इलाकों में लोगों कि चिकित्सा की और इसी दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि आदिवासियों के पास चिकित्सा और दूसरी जरूरतों की कमी है.

आदिवासी क्षेत्रों में सेवा को चुना

तब डॉ. धनंजय आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS- Rashtriya Swayamsevak Sangh) से जुड़े हुए थे. उन्होंने तय किया कि वे संघ परिवार के साथ आदिवासी इलाकों में काम करेंगे.

केरल के वायनाड में जाने के बाद डॉ. धनंजय ने साल 1980 में यहां के स्थानीय लोगों की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने वाला एक छोटा क्लिनिक खोलकर चिकित्सा सेवा शुरू की. जो आज एक सुसज्जित अस्पताल की तरह है.

उनके द्वारा शुरु गए इस छोटे से क्लिनिक में 36 बिस्तर, आदिवासियों के लिए मुफ्त भोजन, उपचार प्रयोगशाला, मल्टीस्पेशलिटी क्लीनिक, ईसीजी, एम्बुलेंस, मोबाइल डिस्पेंसरी और उपकेंद्र जैसी सुविधाएं उपलब्ध है.

इसके अलावा डॉ. धनंजय ने स्वास्थ्य मित्र समूह नाम का एक समूह भी बनाया है.

वह ऐसे पहले व्यक्ति है जिन्होंने वायनाड के आदिवासियों में सिकल सेल एनीमिया बीमारी की खोज की था.

जिसके बाद उन्होंने सरकार को अपने संदेह के बारे में सूचित किया.

डॉ. धनंजय की संदेह के बाद साल 1997 से लेकर 2001 तक नई दिल्ली के एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(AIIMS- All India Institute Of Medical Science) के द्वारा सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anaemia) की जांच और प्रबंधन के लिए पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था.

क्योंकि सिकल सेल एनीमिया का कोई इलाज नहीं है तो काउंसलिंग और इस से अगली पीढ़ी तक पहुंचने से रोकना ही इस बीमारी को फैलने से रोकने का एकमात्र समाधान है.

पुरस्कार

पद्म श्री पुरस्कार के अलावा भी डॉ धंनजय को समाज के अलग-अलग वर्गों के द्वारा अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.

उन्हें आईएमए, रोटरी क्लब, लॉयन्स क्लब, जेकीस और कई दूसरे संगठनों के द्वारा पुरस्कारों से नवाज़ा गया हैं.

पुरस्कार के अलावा उनके निःस्वार्थ और उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें स्थानीय एंव राष्ट्रीय अखबारों और पत्रिकाओं में भी प्रदर्शित(Featured) किया गया है.

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