HomeAdivasi Dailyसौरा या सबर आदिवासी (PVTG)आधुनिक दुनिया से दूर क्यों है?

सौरा या सबर आदिवासी (PVTG)आधुनिक दुनिया से दूर क्यों है?

ओडिशा में सरकार की ही एक रिसर्च में इनकी स्थिति के बारे में कई चौकने वाले तथ्य सामने आए है. यह रिसर्च साल 2016 से 2021 के बीच गजपति ज़िले में 58 सौरा आदिवासी गांवों के माइक्रो प्रोजेक्ट के असर को देखने के लिए की गई थी.

ओडिशा (odisha), मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी वाला राज्य है. इसी राज्य में सबसे ज्यादा पीवीटीजी (PVTG) यानी विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति भी मौजूद है.

पीवीटीजी वे आदिवासी समुदाय हैं जिन्हें पहले आदिम जनजाति (Primitive Tribal Groups) कहा जाता था.

इन आदिवासी समुदायों को अब पीवीटीजी (Particularly Vulnerable Tribal Groups) यानि विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति कहा जाता है.

देश में 75 पीवीटीजी रहते है, जिनमें से 13 पीवीटीजी ओडिशा में हैं. इन्हीं 13 पीवीटीजी में से एक है,

“सौरा आदिवासी ”. सौरा (saora tribe) को साओरा, सोरा, सावरा, सवारा या सबर के नाम से भी जाना जाता है.

ओडिशा के आदिवासियों के कुल जनसंख्या का 5 प्रतिशत सौरा आदिवासियों (Saora tribe of Odisha) का है. ओडिशा के अलावा ये बिहार, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में रहते हैं.

लेकिन इनकी अधिकतम जनसंख्या आंध्र प्रदेश और ओडिशा में रहती है.

2011 की जनगणना के अनुसार इनकी कुल जनसंख्या लगभग 8 लाख है, जिसमें से लगभग 7 लाख सौरा आदिवासी ओडिशा में ही रहते हैं.

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सामाजिक और आर्थिक जीवन

सौरा आदिवासी एक समय में अन्य आदिवासी समुदायों की तरह झूम खेती किया करते थे. झूम खेती के समय वे एक स्थान को तीन सालों के लिए उपयोग करते थे, उसके बाद जैसै ही ये जमीन अपना ऊपजाऊपन खो देती थी, वे दूसरे स्थान पर चले जाते थे.

अपने समुदाय द्वारा बनाई गए सीमा में ही वे दूसरा स्थान खेती के लिए चुनते थे. इसलिए यह भी देखा गया है कि उस समय में उनके गांव या बस्तियां स्थाई नहीं होती थीं.

इसके अलावा खेती के लिए वे हमेशा मिश्रित अनाज उगाते थे, यानि वे झूम खेती में एक साथ कई फ़सलों के बीज बोते थे.

पहले वे इस अनाज को अपने परिवार के लिए उगाते थे, लेकिन समय के साथ- साथ सौरा आदिवासी पर भी मुख्यधारा का प्रभाव पड़ने लगा और उन्होंने खेती पर मिलने वाले अनाज को बाज़ारो में बेचना शुरू कर दिया.  

ओडिशा में इन आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने और उनकी बस्तियों तक आधुनिक सुविधाएं पहुंचाने के लिए माइक्रो प्रोजेक्ट शुरू किये गए. आंध्र प्रदेश में भी कुछ इस तरह की योजनाएं चलाई गई थीं.

सौरा आदिवासियों की खेती का तरीका माइक्रो प्रोजेक्ट के बाद से बदलना शुरू हुआ. सरकार अपनी पांचवी योजना (1974-1978) में माइक्रो प्रोजेक्ट लाई थी. ये माइक्रो प्रोजेक्ट खास तौर पर पीवीटीजी के लिए ही बनाए गए थे.

इस प्रोजेक्ट के तहत सौरा आदिवासियों के खेती के तरीके को भी बदला गया. इन योजनाओं के तहत इन आदिवासियों को फलों के पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है. इसके अलावा उन्हें खेती में नई तकनीक अपनाने के लिए भी प्रेरित किया गया है.

सौरा आदिवासियों की बस्तियां

सौरा समुदाय की एक बस्ती में 600 से 800 लोग रहते हैं. इनकी बस्तियां अक्सर पहाड़ी ढलानों पर मिलती हैं. इनके घरों को बनाने के तरीके में कुछ ख़ास पैटर्न इस्तेमाल नहीं होता है.

सौरा बस्तियों के प्रवेश द्वार में लकड़ी के दो खंभे है, जिसे गसादासुम या किंतुगसुम कहा जाता है.

आदिवासियों का माना है की ये उनके रक्षक है. यह परंपरा कई अन्य समुदायों में मिलती है. मसलन गोंड समुदाय में भी ऐसी ही परंपरा पाई जाती है.

सौरा समाज की शादियों की प्रथा

सौरा आदिवासी समाज में आर्थिक हैसियत के हिसाब से एक पुरुष एक से ज़्यादा पत्नी रख सकता है. सौरा समाज में एक से ज्यादा शादी करना बुरा नहीं माना गया है.

सौरा समाज की ज़्यादातर शादी में लड़के वालों की तरफ से लड़की का हाथ मांगा जाता है. लड़के का परिवार लड़की के घर शराब और मीट ले जाते है. अगर दोनों ही पक्ष शादी से सहमत होते है तो गाँव के कुछ मुख्यों के साथ मिलकर परिवार के सभी लोग खाते-पीते हैं.

देश के कई अन्य आदिवासी समुदायों की तरह से ही सौरा समुदाय में वधू मूल्य देने का रिवाज है. यानि लड़के का परिवार लड़की के परिवार को उपहार देता है.

सौरा आदिवासियों की संस्कृति और चित्रकला

सौरा भित्ति चित्रकला को इटालोन या आइकॉन भी कहा जाता है. ये पेंटिग सौरा आदिवासी के मुख्य देव इडिटल को समर्पित है. इसे लाल या पीला गेरू मिट्टी के उपर चित्रित किया जाता है.

इस कला में सफेद पत्थर, रंगीन मिट्टी, सिंदूर तथा इमली के बीज, फूल और पत्ते का उपयोग होता है. इसके साथ ही इसे बनाने के लिए बांस की कोमल टहनियों का इस्तेमाल होता है.

ये ओडिशा के प्रसिद्ध लोक चित्रकलाओं में से एक है और सौरा आदिवासियों के लिए धार्मिक महत्व रखती है.

सौरा आदिवासियों के नाच गाने

सौरा आदिवासी के हर एक महिला और पुरूष को अपने पारंपरिक गाने और नाच भलीभांति आते है. वे सभी सजावट के लिए किसी भी तरीके की चमक-दमक नहीं बल्कि सादगी में विश्वास रखते हैं.

सौरा आदिवासी पुरूष और महिलाएं दोनों ही नाच-गाने के समय मुर्गे के पंख और मोर के पंख को सर पर पहनते हैं.

सौरा आदिवासी नाचते समय में गाना भी गाते है और अलग- अलग वाद्य यंत्र का इस्तेमाल भी करते हैं. जिसमें सारंगी वाद्य यंत्र सौरा आदिवासियों के शादियों में प्रमुख माना गया है.

सरकार द्वारा बनाई गई योजना

सौरा की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को देखते हुए, सरकार ने इनके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं. इन योजनाओं को लागू करने के लिए माइक्रो प्रोजेक्ट चलाए गए हैं.

लेकिन इन प्रयासों और दावों के बावजूद अभी भी सौरा आदिवासी मुख्यधारा और विकास से काफी दूर है.

यह आदिवासी अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और जीविका के साधनों के मामले में वंचित समाज ही कहा जाएगा.

मसलन ओडिशा में सरकार की ही एक रिसर्च में इनकी स्थिति के बारे में कई चौकने वाले तथ्य सामने आए है. यह रिसर्च साल 2016 से 2021 के बीच गजपति ज़िले में 58 सौरा आदिवासी गांवों के माइक्रो प्रोजेक्ट के असर को देखने के लिए की गई थी. इस रिपोर्ट में जो बाते सामने आई उनमें से कुछ ये थीं –    

  • 12.6 प्रतिशत सौरा आदिवासियों के पास आज भी कोई घर नहीं है
  • 12 गाँव को वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि पट्टा नहीं दिया गया है
  • 18 गाँव में आज भी कोई सिंचाई की सुविधा मौजूद नहीं है.
  • 48 गाँव में कोई भी आंगनवाड़ी मौजूद नहीं है, जिसका मुख्य काम कुपोषण से लड़ना है
  • 58 गाँव में से 35 गाँव में कोई सड़क नहीं है, वहीं 2 गाँव अत्यंत खराब स्थिति में हैं और पांच गाँव में पीने के लिए स्वच्छ पानी अभी तक मौजूद नहीं है.

15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के पीवीटीजी समुदायों के विकास के लिए कई बड़ी घोषणाएं की हैं. उनकी सरकार ने इन समुदायों के विकास के लिए 15000 करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया है.

लेकिन सरकार इस पैसे को इस पैसे को ख़र्च करने के लिए एक विस्तृत स्टडी करानी होगी. क्योंकि इन समुदायों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अलग अलग है. इसलिए उनकी ज़रूरतें भी अलग अलग होंगी.

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