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उत्तराखंड की  सिल्क्यारा टनल में 12 दिनों से फंसे मज़दूरों में 6 थारु आदिवासी शामिल हैं

उत्तराखंड के  सिल्क्यारा टनल के अंदर 12 नवंबर देर रात 41 मज़दूर काम कर रहे थे. जिनमें से 6 मज़दूर आदिवासी है. यहां काम के दौरान अचानक सुरंग के भीतर से मलबा आया और देखते ही देखते सुरंग मलबे से भर गई और सभी मज़दूर टनल के अंदर ही फंस गए.

12 नवंबर की रात जब पूरा देश दीपावाली माना रहा था. तब थारू जनजाति (tharu tribe) के 6 आदिवासी उत्तराखंड (uttrakhand) के  सिल्क्यारा टनल (Silkyara tunnel) के अंदर देर रात तक मज़दूरी कर रहे थे.   

यहां काम के दौरान अचानक सुरंग के भीतर से मलबा आया और देखते ही देखते सुरंग मलबे से भर गई और सभी मज़दूर टनल के अंदर ही फंस गए.

इस घटना के बारे में मिली जानकारी के अनुसार उस समय कुल 41 मज़दूर सुरंग में काम कर रहे थे. इनमें से 6 मज़दूर आदिवासी हैं.  

इस घटना को अब 12 दिन हो चुके हैं. लेकिन अभी तक किसी भी मज़दूर को निकाला नहीं जा सका है.

सुरंग में फंसे मज़दूरों में शामिल थारू आदिवासी मज़दूरों के नाम अकीत कुमार, जय प्रकाश, राम सुंदर, संतोष कुमार, सत्यादेव, राम मिलाल बताए जा रहे हैं.

दरअसल तीन महीने पहले एक ठेकेदार के द्वारा इन छह आदिवासियों को उत्तरकाशी टनल प्रोजेक्ट (Uttarkashi tunnel project) के अंतर्गत मज़दूरी का काम मिला था.

ये आदिवासी उत्तरप्रदेश की ग्राम पंचायत मोतीपुर के रहने वाले है. जो नेपाल बॉडर के काफी नज़दीक है. यह इलाका घने जंगलों से ढका हुआ है.

इन्हीं घने जंगलों में से एक आदिवासी मज़दूर राम मिलान पैसे कामने के लिए शहर की तरफ निकला था.

वे अपने परिवार में आर्थिक रूप से मदद करने वाला इकलौता है.

राम के चार बच्चे और पत्नी सुनिता देवी (उम्र 40 साल) 12 दिन बाद भी उसके घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं.

इस बारे में मिली अब तक की जानकारी के मुताबिक बंद टनल के अंदर पाइप डाली गई है. जिसकी सहायता से इन्हें खाने की सामग्री पहुंचाई जा रही है.

लेकिन अभी तक किसी भी मज़दूर के बचाव की खबर सामने नहीं आई है.  

राम मिलाल के बेटे न कहा, “ मेरी बड़ी बहन अर्चना बीएससी कर रही है और मैं 11वी कक्षा में पढ़ता हूं. मैं बड़े होकर किसी सरकारी दफ्तर में इंजीनियर बना चाहता हूं . ताकि मेरे पिता को कभी भी ऐसे टनल में जाकर मज़दूरी ना करनी पड़े. बस एक बार मेरे पिता घर लौट आए फिर में उन्हें कभी भी मज़दूरी के लिए नहीं जाने दूंगा. ”

अक्सर ये देखा गया है की जिस काम में खतरा आधिक होता है. वहां आदिवासी ही मज़दूरी के लिए रखे जाते है क्योंकि आदिवासी मज़दूर काम में मिलने वाले खतरों से अवगत नहीं होते और कम पैसे में काम करने के लिए तैयार हो जाते है.

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