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आंध प्रदेश के एजेंसी इलाके में रोज़गार में आदिवासी आरक्षण की मांग उठी

आंध्र प्रदेश (Tribes of Andhra Pradesh) के आदिवासियों की यह मांग है की आदिवासी इलाकों में मुख्य रूप से अनुसूचित जनजातियों के लिए ही सीटें आरक्षित हो.

अल्लूरी सीतारामा राजू ज़िले के आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही मांग, एक बार फिर सुर्खियों में आई है.

रविवार को आदिवासियों ने अपनी  मांग के समर्थन में राज्य के एजेंसी इलाके (tribal protest in agency area) में प्रदर्शन किया है.

इस प्रदर्शन में आरकु, पडेरू और अन्य मंडलों के आदिवासी संगठन शामिल थे. इसके अलावा तेलुगु देशम पार्टी (टीडीएम) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्यों ने भी प्रदर्शन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

यह भी पता चला है की प्रदर्शन के दौरान आरकू, पडेरू और ज़िले के अन्य मंडलों पर बस सुविधा प्रभावित रही.

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग है की राज्य में सरकार का आदेश नंबर 3 लागू किया जाए. इस आदेश के अनुसार आदिवासी इलाकों की सभी सरकारी सीटें आदिवासियों के लिए ही आरक्षित करने का प्रावधान है.

आदिवासियों का आरोप है की इलाके में कई सारी सरकारी और प्राइवेट संस्थान खोले गए है. इसके बावजूद इलाके के कई आदिवासी बेरोज़गार है.

इस प्रदर्शन में मौजूद आदिवासी संगठन ने यह भी मांग रखी की राज्य सरकार आदिवासियों के लिए शिक्षक पदों पर भर्ती निकाले, जिसमें सिर्फ आदिवासियों को ही नियुक्त किया जाए.

उन्होंने यह भी बताया की कई बार प्रदर्शन करने के बावजूद भी सरकार ने शिक्षा वालंटियर की सेवा सीमा को नहीं बढ़ाया था.

इसलिए इस प्रदर्शन में उनकी यह भी मांग रही है की वालंटियर की सेवा फिर से शुरू की जाए.  ये वालंटियर स्कूलों में पढ़ाते हैं.

आदिवासी इलाकों में बच्चों को तेलुगु या अंग्रेज़ी भाषा में पढ़ने में समस्या ना आए उसके लिए शिक्षा वॉलेंटियर की नियुक्ति की जाती थी.

ये वॉलेंटियर आदिवासी बच्चों को क्लास 1 से 3 तक उनकी अपनी भाषा में पढ़ाते हैं. इससे बच्चों को स्कूल में पढ़ने और सीखने में आसानी होती है.

लेकिन पिछले कई महीने से इन वॉलेंटियर्स की सेवा समाप्त कर दी गई है.

आरकु घाटी और आस-पास के आदिवासी इलाकों में ये दोनों ही मांगें काफी समय से चल रही हैं. लेकिन सरकार ने अभी तक इस बारे में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है.

उम्मीद है कि अब लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं और आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनाव भी बहुत दूर नहीं हैं. इन हालातों में हो सकता है कि राज्य सरकार आदिवासियों की सुध ले.

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