HomeAdivasi Dailyआदिवासी हस्ती: कौन है पद्म श्री हिरबाई इब्राहिम लोबी

आदिवासी हस्ती: कौन है पद्म श्री हिरबाई इब्राहिम लोबी

हिरबाई इब्राहिम लोबी गुजरात के जूनागढ़ शहर के जम्बूर गांव की रहने वाली है. उन्होंने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया. इसके बावजूद उन्होंने ऐसा काम किया कि उन्हें पद्म श्री अवार्ड दिया गया है.

देश के राष्ट्रपति  हर साल किसी भी क्षेत्र में अच्छा काम करने वाले को पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ते है. जिसने भी समाज के लोगों के लिए, प्रकृति के लिए या फिर समाज के लिए कुछ अच्छा काम किया है. उनको इस पुरस्कार से नवाज़ा जाता है.

साल 2023 में यह पद्म श्री पुरस्कार कुल 91 लोगों को मिला है. जिसमें गुजरात की एक आदिवासी महिला, हिरबाई इब्राहिम लोबी(Hirbai Ibrahim Lobi) का नाम भी शामिल है. उनको यह पद्म श्री सामाजिक कार्य  क्षेत्र में मिला है.

उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा सिद्दी आदिवासी महिलाओं के उत्थान और बच्चों की शिक्षा में बिताया है. उनके प्रयास से अब तक 700  से ज्यादा महिलाओं और अनगिनत बच्चों की जिंदगी बदल चुकी हैं.

हिरबाई इब्राहिम लोबी

आदिवासी हिरबाई इब्राहिम लोबी गुजरात के जूनागढ़ शहर के जम्बूर गांव की रहने वाली है. उन्होंने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था. जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी ने किया है.

उन्होंने सिद्दी समुदाय के बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की भावना से बच्चों के लिए कई स्कूलों की स्थापना की है. वह आदिवासी महिला संघ की अध्यक्ष है. जिसे सिद्दी महिला संघ के नाम से भी जानते है.

उन्होंने गुजरात में रहने वाले आदिवासी सिद्दी समुदाय के महिलाओं और बच्चों की काफी मदद की है.

उन्होंने इस आदिवासी समुदाय के महिलाओं को वित्तीय रूप से स्वतंत्रत बनाने के लिए और बच्चों को शिक्षा दिलाने में अहम भूमिका निभाई है.

हिरबाई इब्राहिम लोबी ने कुछ पहल का नेतृत्व भी किया है. जिसमें सहकारी आंदोलन, परिवार नियोजन, सामुदायिक विद्यालय जैसे कुछ पहल शामिल हैं.

उन्होंने एक इंटरव्यू में अपने काम के अनुभव के बारे में बात करते हुए कहा था “हिरबाई इब्राहिम लोबी ने यह कहा है कि बब्बर शेरों से घिरे सिद्दी समुदाय की महिलाओं की आजीविका लकड़ी काटने पर निर्भर थी.

मैंने जंगल में पेड़ तो नहीं उगाये हैं. लेकिन मैंने जंगल को कटने से बचाया है और अपने समुदाय की महिलाओं का समर्थन करने का बीड़ा उठाया है.”

उन्हें रोडियो सुनना बेहद पंसद है. बचपन से ही उन्होंने रेडियो के माध्यम से महिला विकास योजनाओं की जानकारी मिलती रहती थी.

योगदान

पहले हिरबाई इब्राहिम लोबी ने आगाखान फाउंडेशन से जुड़ीं और फिर किसानों के संगठन BAIF (Bharatiya Agro Industries Foundation) के साथ जुड़कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम क शुरू किया.

उन्होंने अब तक 700 से ज्यादा महिलाओं को बैंक में खाता खोलना और पैसे बचाना सिखाया है.

महिलाओं को आगे लाने में उनकी बड़ी अहम भूमिका रही है. उन्होंने महिलाओं को खेती सिखाने के साथ ही रेडियो के माध्यम से और सामाजिक संगठनों की मदद से महिलाओं को रोजगार भी दिलाया है.

उन्होंने वर्ष 2004 में महिला विकास फाउंडेशन की स्थापना की और सिद्दी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अथक प्रयास किया है.

हिरबाई इब्राहिम लोबी के इन प्रयासों के कारण जंबूर की महिलाएं किराने की दुकानों और सिलाई का काम करके अपने परिवार की मदद करती थीं.

इसके अलावा अब तक उन्हें अलग-अलग पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. लेकिन जब उन्हें 500 डॉलर का पहला पुरस्कार मिला था.  तो उन्होंने सारा पैसा गांव के विकास में लगा दिया था.

पुरस्कार

हिरबाई इब्राहिम लोबी को देश के महत्वपूर्ण पद्म श्री पुरस्कार से नवाजने से पहले भी कुछ पुरस्करों से सम्मानित किया गया है.

उन्हें जूनागढ़ में गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा सम्मान पत्र, ग्रामीण जीवन में महिलाओं की रचनात्मकता के लिए महिला विश्व शिखर सम्मेलन फाउंडेशन के पुरस्कार और 2006 में उत्कृष्ट महिला ग्रामीण उद्यमी के लिए जानकी देवी बजाज पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों की प्राप्त किया हैं.

सिद्दी आदिवासी

सिद्दी आदिवासियों के बारे में माना जाता है कि यह आदिवासी अफ्रीका के हैं क्योंकि इनके शारीरिक बनावट वैसी ही दिखाई देती है.

सिद्दी आदिवासी गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य के पश्चिमी तट पर रह रहे हैं. ये कर्नाटक में मुख्य रूप से धारवाड़, बेलगावी और उत्तर कन्नड़ ज़िले में रहते हैं. इसके अलावा यह आदिवासी हैदराबाद में भी रहते है.

केंद्र सरकार ने 2003 में सिद्दीयों को पीवीटीजी यानी विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह में शामिल किया है.   

इतिहास

सिद्दी आदिवासी पूर्वी अफ्रीका के बंटू लोगों के वंशज की है.

7वीं शताब्दी की शुरुआत में सिद्दी आदिवासियों के पूर्वजों को बड़े पैमाने में अरबों के द्वारा दास के रूप में भारत लाया गए थे. जिसके बाद पुर्तगाली और ब्रिटिश ने भी यही किया.

एक ज़माने में जंगल में शिकार और भोजन जमा करके जीने वाले सिद्दी आदिवासी अब धीरे धीरे मुख्यधारा का हिस्सा बन रहे हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments