मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले के छोटे से गांव सागौरिया में रहने वाले बच्चों का जीवन अंधकार में नजर आ रहा है. दरअसल, सागौरिया में प्राइमरी स्कूल बंद होने के कारण बच्चों के अशिक्षित रहने का ख़तरा है. इस गांव में यही एक मात्र प्राइमरी स्कूल था. उसे सरकार ने 2015 में बंद कर दिया. इस वजह से छोटे बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. जबकी शिक्षा अधिनियम कहता है सारे बच्चे को शिक्षा का अधिकार है.
भोपाल से छतरपुर जिले का मुख्यालय लगभग 270 किमी दूर है. यहां आदिवासी की जनसंख्या अधिक है. 2011 की जनगणना के अनुसार पढ़ने लिखने वाली आबादी 55.6 प्रतिशत है. प्राइमरी स्कूल न होने के कारण वहां के बच्चे दिन भर खेलते रहते हैं और गांव की स्थिती बिल्कुल ठीक नहीं है.
गांव में शिक्षा की स्थिति
2015 में प्राइमरी स्कूल सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था और सबसे नजदीकी प्राइमरी स्कूल 6 किमी से भी दूर हिनौता गांव में है. हिनौता गांव के स्कूल में जाने के लिए जंगल और नदी पार करना पड़ता है. इसलिए सागौरिया गांव के रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहें हैं.
उसी स्कूल के संतोष यादव का कहना है की लगभग आठ साल पहले प्राइमरी स्कूल बंद हो गया था, इसलिए मिडिल स्कूल में छात्र नहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ 37 वर्षीय आदिवासी जाहर का कहना है मेरे चार बच्चे हैं, जिनकी उम्र 10, 7, 5 और 3 साल है. जो की कोई स्कूल नहीं जाता है. स्कूल दूर होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते.
सागौरिया के सरपंच नानेलाल यादव का कहना है. हमारे गांव से पंचायत मुख्यालय से 15 किमी दूर है और कोई सड़क नहीं है. सगौरिया से एक और रास्ता है लेकिन वह भी जंगल और नदी के उस पार से गुजरता है. ऐसे में हमारे गांव के बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे? सरपंच नानेलाल यादव ने सड़क बनाने और स्कूल को फिर से शुरू करने के लिए कई बार जिला शिक्षा अधिकारी को आवेदन दिया और मुलाकात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
सागौरिया के रहने वाले पुरषोत्तम यादव ने बताया कि जिन लोगों का आर्थिक स्थिती ठीक वह गांव छोड़ कर जा रहे हैं. स्कूल के पास किराये के मकान ले रहे हैं. ताकी उनकी तरह बच्चे मजदूरी और ईट ढोने का काम न करें और अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिला पायें.